जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की मार से आहत सेव उद्योग
—-: नयी दिल्ली। पेड़ों की लगातार कटाई से विरल होते जंगलों की हरियाली से जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के जगता विख्यात सेवो की मांग खपत और गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। विदेशों में भी सेव की मांग में काफी कमी आई है।
खराब मौसम के कारण कश्मीरी और हिमाचली सेवो के स्वाद और गुणवत्ता में कमी आईं हैं। सबसे अधिक उत्पादक राज्य होने के बाद भी अधिकतर किसान दूसरे फसल की ओर मुड़ते जा रहे हैं। गर्मी में सेव की उपलब्धता के लिए स्टोरेज के लिए सेव की मात्रा में कमी आई है।
—-पिछले दस सालों में सेव के उत्पादन का रिकॉर्ड 8-9 लाख टन का रहा है। मगर सेव की खेती में लगातार कमी का यह परिणाम है कि 2018 में इसका उत्पादन मात्र चार लाख टन तक सिमट गया है।एक दशक के भीतर मांग रहने के बाद भी सेव के पैदावार का यह हाल चिंताजनक है। जलवायु परिवर्तन के कारण कम उंचाई के क्षेत्रों में सेव के बजाय दूसरे फल फूलों और मौसमी सब्जियों की खेती और उत्पादन में लग गए हैं।
—-शहरी विकास और आबादी विस्तार से सालों से जंगली क्षेत्रों में कमी आई है। बाग लगाने के लिए लोगों ने ढलाव इलाकों का प्रयोग करते हैं। इससे पानी के स्त्रोतओ पर असर पड़ा है। जलवायु के साथ सात मौसम के मिजाज में भी बदलाव आया है। सेव के सर्वाधिक उत्पादक शिमला कुल्लू मनाली जिले के पैदावार पर भी इसका कुप्रभाव दिखने लगा है।
—हिमाचल प्रदेश के सेव उत्पादकों की पीड़ा के बारे में आजादपुर फल सब्जी मंडी के पूर्व महासचिव राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि सेव के बाग लगाने के लिए जंगली क्षेत्रों की कटाई से इलाके में जलसंकट गहराने लगा है। पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं है। जमीन की नमी कम हो रही है, जिसमें सेव के उत्पादन और स्वाद में कमी आ रही है। मालूम हो कि कश्मीरी सेव की खाल में मुलाईमियत और नमी को लोग पसंद करते हैं। मार्च तक स्टोर में कश्मीरी सेव रहते हैं जबकि जून तक हिमाचली सेव स्टोर रहता है। इसके बाद नया फ़सल बाजार में आ जाता है। मगर उत्पादन की कमी से आने वाले समय में सेव कहीं दूर के ढोल की तरह कहीं सपना बनकर ना रह जाए। मौसम परिवर्तन और शहरी विकास में जंगलों की तरह कहीं सेव भी दूर के ढोल की तरह ना हो जाए।।