राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही विपक्षी दलों के चेहरे मुरझा गए हैं। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रबल दावेदारी को ज्यादातर विपक्षी दल पचा नहीं पा रहे हैं। सांसदों के गणित में काफी पीछे रहने के बावजूद सपा बसपा टीएमसी ने आपत्ति जता दी है। महागठबंधन बनने से पहले ही खींच तान उठा पटक और विरोध के फूटते स्वर और बग़ावती बुलबुले से विपक्षी गठबंधन को देशव्यापी महागठबंधन आकार देने के भविष्य पर ही सवाल खड़ा खड़ा कर सकता है। – उल्लेखनीय है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रधानमंत्री की दावेदारी को लेकर कोई माहौल नहीं था। इस पद के संभावित उम्मीदवारी का सपना ममता बनर्जी , मायावती का सपना था। बसपा के साथ सईईपा के े सब अखिलेशका एक ही सूर है। दक्षिण भारत के कई नेता भी काफी सक्रिय हैं मगर पीएम की कुर्सी रेस सब बाहर है। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चंद्रबाबू नायडू की सक्रियता और सघन संपर्क अभियान से विपक्षी एकता को नयी गति दी है। वे राहुल गांधी के भी उतने ही करीब है जितने कि ममता बनर्जी और मायावती के भी विश्वास पात्र हैं।
महागठबंधन के लिए आज कुछेक दलों की बैठक होने वाली है। जिसमें कांग्रेस की जीत पर महागठबंधन के ढेरों चेहरे पर संतोष नहीं है। बसपा सपा टीएमसई और आप के अरविंद केजरीवाल का गठबंधन से बाहर रहने के फैसले से भी महागठबंधन जनता के लिए ठगबंधन सा हीं प्रतीत हो रहा है। लोकसभा चुनाव से मात्र चार माह। पहले तक विपक्ष का एकजुटता के लिए पैमाना का तय नहीं है। अब देखना यही दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी को लेकर विपक्षी नजरिया क्या रहता है, क्योंकि कल का पप्पू बाबा को पास मानना ही विपक्षी दलों की एकता का कामयाब जांदू मंतर हो सकता है।
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