संकट में केंद्रीय सूचना आयोग
केंद्रीय सूचना आयोग का अस्तित्व संकट में है। सरकार की उपेक्षा और लापरवाही के चलते आम लोगों को सूचना पाने का अधिकार खतरें में है। मंगलवार 20 नवम्बर को मुख्य सूचना आयुक्त आर के माथुर सहित चार सूचना आयुक्त रिटायर हो जाएंगे। सूचना आयोग में आयुक्तों के 15 पद हैं मगर मंगलवार के बाद केवल तीन सूचना आयुक्त ही रह जाएंगे। आयोग के पास लगभग 25 हजार मामले लंबित हैं सूचना आयुक्त के पास फाईल की तरह एक आवेदन को आने में आज नौ से दस माह लगते हैं। मगर एक साथ चार आयुक्तों की रवानगी के बाद अब आवेदन के आयुक्त टेबुल तक पहुंचने में एक साल से भी ज्यादा समय लग जाने की उम्मीद है। यानी सूचना पाने की उम्मीद पर पानी फिरने वाली है। इसकी सारी सूचना से परिचित होने के बाद भी केंद्र सरकार की और से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर अभी सक्रिय भी नहीं हुई है। जिससे सूचना के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक्टीविस्टों का संघर्ष जारी है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सूचना के अधिकार को जनता का मौलिक अधिकार की तरह लागू किया इसको नियोजित तरीके से आरंभ किया गया। इसके 31 साल गुजर जाने के बाद जहां जहां आमलोगों को सरकारी की गोपनीय सूचनाओं तक पहुंच बनी तो इस अधिकार से अधिकारियों को गोपनीयता के नाम पर घोटाले घपलों आर्थिक हेराफेरी को दबा लेना कठिन हो गया। इस अधिकार से सरकारी कामकाज पर भी असर पड़ता था। केंद्र की मोदी सरकार को भी सूचना के अधिकार से दिक्कत होने लगी तो इसको बेदम करने के लिए सरकार ने आयुक्तों की नियुक्ति पर ही रोक लगा दी। मुख्य सूचना आयुक्त समेत चार आयुक्तों की सेवानिवृत्ति के बाद जहां केवल बस नामभर ही आयुक्त रह गये। वही इनकी नियुक्ति के लिए काम करने वाला विभाग डिपार्टमेंट अॉफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ( DOPT) ने नियुक्तियां संबंधित सुचना देने वाली नोडल एजेंसी डीओपीटी के हवाले कर दी। और इस बाबत तमाम सूचनाओं को देने से इंकार कर दिया है। आवेदकों को आरटीआई एक्ट के सेक्शन 8 (1) (1) तहत खारिज कर दिया गया है। इस एक्ट के अनुसार सूचना देने की बाध्यता नहीं भी है। सूचना आयोग से खबर की दिक्कतों को लेकर सूचना एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सूबे की मांग करती रही। इस मामले को लेकर सुश्री भारद्वाज ने सूचना आयोग को सुप्रीम कोर्ट में भी तलब कर दी उन्होंने सरकार पर आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता की भी मांग की। उन्होंने कहा कि आयुक्तों की नियुक्ति में देर होने से आरटीआई का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। कोर्ट में बताया गया है कि यदि डीओपीटी आज से भी इसकी तैयारी करे तो सभी आयुक्तों के लिए विज्ञापन निकालने आवेदन मंगवाने और प्रशिक्षण के बाद नियुक्ति करने तक में कोई आठ-दस माह लग ही जाएंगे। सुश्री भारद्वाज ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना देने के सभी रास्तों को बंद करने पर आमादा है। कोर्ट में भी इसकी सुनवाई में अभी तीन माह काऊ समय बाकी है। संभव है कि चुनाव का हवाला देकर सरकार सूचना आयोग को सूचना निरोधक आयोग बनाने के लिए आमादा है देखना यही दिलचस्प होगा कि हजारों इसके एक्टिविस्टो का सामूहिक संग्राम से सूचना आयोग पर काबिज इसके दुश्मनों की कलई खोलती है या संकटग्रस्त सीआईसी को फिर से बीमार बनाकर ही दम लेगी। यानी हालत पर संकट बरक़रार है।
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