स्टील बर्तनों की लुप्त होती चमक / अनामी शरण बबल
धनतेरस और दीपावली त्यौहार के गुजर जाने के बाद भी स्टील उद्योग के कारोबारियों का दर्द कम नहीं हो पाया है। साल दर साल बाजार में स्टील बर्तनों की घटती मांग से इस उद्योग पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बदलते समय के साथ बर्तनों की वैराइटी और डिजाइनर बर्तनों के कारण भी धीरे-धीरे गृहिणियों एवं घरेलू सदस्यों की दिलचस्पी अब स्टील में नहीं रही। क्रॉकरी चाईनीज और टपरवेयर के बर्तनों की बढ़ती संख्या और लोकप्रियता के आगे स्टील बेदम होने लगा है। आमतौर पर धनतेरस के दिन पूरे देश में स्टील बर्तनों की चमक सब पर भारी रहता था । स्टील बर्तनों का सालाना कारोबार 40 हजार करोड़ रुपये की है। जिसमें असंगठित छोटे कारोबारियों का हिस्सा करीब बारह हजार करोड़ रुपये की है। केवल एक धनतेरस के दिन बर्तनों की मांग को पूरा करने के लिए सारा स्टील उधोग कई माह पहले से ही जुट जाता था। स्टेनलेस स्टील के ट्रेडर्स के जानकारों का कहना है कि केवल धनतेरस और शादी विवाह के लग्न मौसम में स्टील के आधे बर्तन खप जाते थे। हालांकि स्टील बर्तनों की चमक बिखेरने वाले दुकानदारों का कहना है कि आज आधुनिकता और बर्तनों की बहुलता के बावजूद स्टील के बर्तनों की खपत है और रसोई की शोभा तो स्टील के ही बर्तन है। आज स्टील के सामने दिक्कत है कि शादी विवाह और धनतेरस में स्टील की मांग कम हो रही है। और लगभग 30% स्टील की मांग में कमी आ गयी।
: वजीरपु स्टील मैन्यूफैक्चरिंग हब के राजसिंह चौहान को हैरानी है कि लागत बढ़ रही है मजदूर मंहगे हो चुके हैं पर मांग और खपत का अंतर बढ़ गया है। जिससे कल तक अच्छी कमाई करने वाले स्टील कंपनियों के लाभांश में कमी आई है।: स्टील विक्रेता संघ का मानना है कि स्टील के विकल्प बने अन्य बर्तनों का सेल अॉनलाईन हो रहा है। जबकि स्टील के बर्तनों को लेकर इस तरह की प्लानिंग छोटे स्तर पर है आज विज्ञापनों पर यकीन करके अॉनलाईन बाजार सबसे प्रमुख हो चला है और असंगठित बाजार को संगठित करके अॉनलाईन सेल पर भी जोर देना होगा। स्टील कारोबार के जानकारों का तर्क है कि छोटे शहरों और ग्रामीण बाजारों में स्टील को नयी योजना के साथ फिर से पांव जमाना होगातभी कर्जों से डूबते बर्तनों की धूम और चमक को बरकरार रखा जा सकता है।