सेहत के लिए ही सही किसी शहर में हर दिल अजीज पानी पुरी पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो पानी पुरी प्रेमियों के लिए इससे बुरी खबर शायद कोई हो नहीं सकती। क्योंकि पानी पूरी का मतलब ही है जिसे देखकर ही मुंह में पानी आना। गुजरात के वडोदरा (बडौदा) नगर पालिका ने इस मॉनसून के मद्देनजर शहर में पानी पूरी की बिक्री पर रोक लगा दी है। नपा का कहना है कि पानी पूरी बनाने में साफ-सफाई का समुचित ध्यान नहीं रखा जाता। इसके खाने से लोगों को टाइफाइड, पीलिया और फूड प्वाइजनिंग जैसी बीमारियां हो रही थीं। इसके लिए नपा अधिकारियों ने कई जगह छापे मारे और करीब चार हजार किलो पानी पुरी, साढ़े तीन हजार किलो आलू और काबुली चना तथा 1200 लीटर पानी पूरी का चटापटा पानी बेरहमी से फेंक दिया। खबर में यह साफ नहीं है कि यह पानी पूरी पर रोक कितने दिनो के लिए है और इसके हटने तक बडोदरावासी किस तरह अपने दिन गुजारेंगे?
Forget cleanness to eat water balls Forget cleanness to eat water balls
स्वच्छता के आग्रह से इंकार नहीं, लेकिन चाट और खासकर पानी पूरी प्रेमियों के लिए यह खबर गाज गिरने जैसी है। यूं पानी पुरी हर मौसम के लिए मुफीद और जरूरी है। लेकिन रिमझिम बारिश में पानी पूरी गटकने का अलग ही मजा है। वैसे भी यह शुद्ध भारतीय व्यंजन है और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की पसंद है। पानी पूरी को कई नामों से जाना जाता है। पश्चिमी भारत में यह पानी पूरी है तो उत्तर भारत और दिल्ली में ये गोल गप्पा है। गोल गप्पा इसलिए कि इसे मुंह में एक साथ गपा जाने में ही रोमांच है। इसे फुल्की, फुचका, पानी पतासे, गुपचुप और पकौड़ी के नाम से भी जाना जाता है। पानी पुरी का शाब्दिक अर्थ है ‘पानी की रोटी।‘ पानी पूरी शब्द चलन में कैसे आया यह शोध का विषय है। लेकिन इसका आकार छोटी कड़क पूरी की तरह और इसकी जान इसके चटपटे पानी में है। इसे नाश्ते में भी खाया जाता है। लेकिन पार्टियों में लोग अक्सर इसे मेन कोर्स निपटाने के बाद सूतना पसंद करते हैं। कई लोगों के लिए मुखशुद्धि की तरह है। लिहाजा शादी या अन्य पार्टियों में पानी पूरी का स्टॉल उतना ही जरूरी माना जाता है जितना कि दुल्हन का मंगल सूत्र।
गुजरात में लोग शराबबंदी भले झेल गए हों, लेकिन पानी पूरी पर रोक शायद ही गवारा करें। गुजरात ही क्यों पानी पूरी इस देश की ज्यादातर आबादी के मुंह लगी है। यह हकीकत में धर्म निरपेक्ष है और अपने झन्नाटेदार स्वाद और उसे खाने की बेतकल्लुफ अदा के कारण हर दिल अजीज है। और फिर गुजरात में तो पानी पूरी तक तक में बिजनेस नवाचार हो चुका है। पिछले ही साल बापू के जन्मस्थान पोरबंदर में एक गोल गप्पा व्यवसायी ने जियो रिलायंस अनलिमिटेड की तर्ज पर दो स्कीमें लांच की थीं। जिसके तहत पहली स्कीम में ग्राहक 100 रू. में डेली और हजार रू. में पूरे माह अनलिमिटेड गोल गप्पे खा सकते थे। बताया जाता है कि इस स्कीम के बाद अंबानी की तरह उसका धंधा भी खूब फला-फूला।
भारतीय संस्कृति पर गर्व करने वालों के लिए भी पानी पूरी देशाभिमान का विषय इसलिए है कि पिज्जा बर्गर के दौर में भी पानी पूरी अपनी हैसियत कायम रखे हुए है। इसका आविष्कार भी भारतीयो ने ही किया है। भरी सड़क पर किसी खोमचे पर बेतकल्लुफी के साथ पानी पूरी खाना हम भारतीयों की जीवटता की निशानी है। इसे खाने वाले की रससिक्त मुद्राएं जीवन के प्रति रस जगाती हैं। बताया जाता है कि प्राचीन काल में पानी पूरी सबसे पहले पानी मगध (आज का दक्षिण बिहार) में बनाई गई। वहां इसे फुल्की नाम से ही जाना जाता है। पानी पूरी के जन्म की एक कथा महाभारत आख्यान से भी जुड़ती है। कहते हैं कि जब द्रौपदी शादी के बाद ससुराल आई तो पांडव वनवास में थे। तब सास कुंती ने नई बहू से वहां उपलब्ध आटे और आलू से ही कुछ खाने के लिए बनाने को कहा। तब कुंती ने पानी पूरी (फुल्की) बनाई। तब से आज तक यह हमारी खाद्य संस्कृति का अहम हिस्सा है।
पाक शास्त्र की दृष्टि से भी पानी पूरी बनाने की विधि बहुत कठिन नहीं है। आजकल तो यह मशीन से भी बनती है। रवे और मैदे से बनी पानी पूरी ज्यादा खस्ता होती है। पानी पूरी के भी कई प्रकार हैं, जैसे खट्टी पानी पूरी, मीठी पानीपूरी, तीखी पानीपूरी आदि। यूं खाली पूरी भी खाने में अच्छी लगती है, लेकिन बिना चटपटे पानी के वह वैसी ही है जैसे बिना चाशनी के जलेबी। दरअसल पानी पूरी का पानी ही स्वाद की असली कसौटी है। पानी और पूरी का रिश्ता तबले और डग्गे जैसा है। इसका पानी उसे बनाने वाले के हाथ (और पसीने का भी) का कमाल होता है। अमूमन इसे इमली, सोंठ, पुदीना, गुड़ और नमक आदि मिलाकर बनाया जाता है। कुछ लोग तीखा पानी पसंद करते हैं तो कुछ खट्टे-मीठे स्वाद वाला। आजकल इसके मॉडर्न वर्जन जैसे पानी पूरी मार्गरीटा, पानी पूरी शॉट्स और चाकलेट पानी पूरी भी आ गए हैं। यहां तक कि आइसक्रीम पानी पूरी भी लोकप्रिय हो रही है। हालांकि पानी पूरी को हाई कैलोरी फूड माना जाता है।
लेकिन स्वाद की दुनिया के सिपाही ऐसी बातों से डरा नहीं करते। पानी पूरी खुद स्त्रीलिंगी शब्द है और इस नाते वह महिलाओं की भी पहली पसंद है। चाट की दुकानों मे सबसे ज्यादा जमावड़ा इन्हीं का मिलेगा। तीन साल पहले झांसी में एक किशोरी ने इसलिए खुदकुशी कर ली थी कि घर वालों ने उसे पानी पूरी खाने के लिए पैसे देने से इंकार कर दिया था। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पानी पूरी बिजनेस की सही-सही जानकारी होती तो वे युवाओं को पकौड़ों के बजाए पानी पूरी बनाने की सलाह देते।
इस पानी पूरी महात्म्य के बावजूद अगर बडोदरा नगर पालिका ने इस पर रोक लगाने की हिमाकत की है तो इस पानी पूरी सम्प्रदाय इसे स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि यह एक ऐसा व्यंजन है, जिसमें सफाई से ज्यादा स्वाद की अहमियत है। दस्ताने पहन कर गोल गप्पे परोसना वैसा ही है जैसा कि कैलोरी चार्ट देखकर रबड़ी खाना। ऐसी चीजो का केवल भरपूर आनंद लिया जाता है। ऐसा आनंद, जो खाने के सुरूर को अपने चरम पर पहुंचा दे। यह तो खाए जाअो वाली संस्कृति का अग्रदूत है। पानी पूरी की बिक्री पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन उनका क्या, जो पानी पूरी के लिए ही जी रहे हैं? किसी कवि ने कहा भी है-चल तो देते हम भी हिमालय ये मोह सब त्याग के, पानीपुरी तेरा ही फिर खयाल ज़हन में आ जाता है।
(अजय बोकिल, वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं)