हम इस संसार को अपने चश्मे से देखते हैं। हम खुद के बारे में एक तय किये हुए नजरिये से सोचने के लिए बंधे हुए हैं और हमारी धारणाएं भी बाहर की दुनिया से परिलक्षित या प्रभावित होती हैं। अगर आप सोचते हैं कि आप खुबसूरत हैं तो यह दुनिया भी आपको खुबसूरत लगेगी। अगर आप असुरक्षित और दुविधा में महसूस करते हैं तो आप उन गुणों को अपने आस-पास के लोगों में ढ़ूंढ़ने में सक्षम हो जायेंगे। जो कुछ भी आप सोचते हैं, आपकी दुनिया आपके उस सोच या व्यक्तित्व का प्रतिबिंब बन जाता है। अगर चीजें आपके हिसाब से नहीं होती है या उस तरह से नहीं होती जिस तरह से आप उसे देखते हैं तो, आपका यह वाताकूलित या शर्तों से बंधा मन उस अकथ्य पीड़ा का कारण बन जाता है। इसलिए प्राचीन काल से संतों ने हमेशा खुद के बेहतर या उत्तम होने की और स्वयं को उस रूप में बनाए रखने की बात कही है।
स्व सर्व-व्यापक है। यह असीम चेतना है जिसने ब्रह्मांड सहित हमारा भी गठन किया है। यह सभी प्राणियों में व्याप्त है और हर वस्तु का अस्तित्व इससे है। स्वयं एक बर्तन में भरे हवा की तरह है। अगर आप बर्तन तोड़ भी देते हैं, तो भी हवा का अस्तित्व रहेगा। इसलिये जब आप अपना शरीर छोड़ देते हैं तो चेतना के रूप में आपका अस्तित्व लगातार बना रहेगा। स्वयं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए और खुद को सीमित विश्वासों से मुक्त कराने के लिए अष्टावक्र कहते हैं, “अपने ध्यान को माफी, ईमानदारी, दया, सादगी और सच्चाई की ओर मोड़ो।” जब आप खुद के उत्तम रूप में होते हैं तो आप किसी भी महौल में सुखद और शांत महसूस करेंगे। जब आपको अपनी शुद्ध चेतना की अनुभूति होती है और वहां कोई धागा नहीं जुड़ा होता है, जब आप वर्तमान स्थिति से परिचित हो जाते हैं, जब किसी व्यक्ति से करुणा और दया की वापसी की उम्मीद किए बिना आप सार्वभौमिक मूल्यों जैसे दया और करुणा पर काम करते हैं, अहंकार की भावना लाए बिना जब आप किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो, इसका अर्थ है कि आप एक आध्यात्मिक अभ्यासकर्ता बन गये हैं।
आपकी चेतना शुद्ध है जो इस ब्रह्मांड के पदार्थ के रूप में मौजूद है। यह ब्रह्मांड आपके भीतर मौजूद है। अपनी स्वार्थी इच्छाओं के खिलाफ जाने की चेतावनी देते हुए बाबा अष्टावक्र कहते हैं, “छोटी बुद्धि के मालिक मत बनो।” हम ब्रह्मांड को इस शरीर में समाए हुए हैं। बाहर जो कुछ भी है वह हमारी अनुभवी दुनिया का अविभाज्य हिस्सा है। संक्षेप में, हमारे अधिकार में एक छोटा सा ब्रह्मांड है। हमसबों को बस इस बात का अहसास करने की आवश्यकता है। हम सबों को यह बात भी याद रखने की जरूरत है कि कई छोटे-छोटे ब्रह्मांड मिलकर स्वयं या स्व का निर्माण करते हैं।