ईवीएम,चुनाव,राजनीति व लोकतंत्र

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

*कुमार राकेश

देश में ऐसा क्या हो गया है कि सभी विपक्षी दल अपना गुस्सा और हताशा अब बेचारी चुनावी मशीन ईवीएम पर निकालने पर तुल गयी है.विपक्ष अब विश्वास के बजाय भ्रम,शक,सुबहा और अविश्वास की राजनीति को बढ़ावा देने में जुट गया है,ऐसा क्यों?

ईवीम का मतलब सीधा चुनाव आयोग,जो कि हमारे लोकतंत्र में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय है.आयोग की निष्पक्षता को लेकर हारने वाले दल अक्सर अपना विरोध जताते रहे है और आज भी जता रहे है.शायद उसे वे अपना लोकत्रांतिक अधिकार के तौर पर देखते हैं.मेरे विचार से मुद्दा यहाँ पर ईवीम नहीं,बल्कि चुनावी हार का अंदेशा है.उस अंदेशे से सभी विपक्षी दल अलग अलग किस्म के तनाव से ग्रस्त हैं ,जिसका सम्बन्ध आम जनता की हितों से तो बिलकुल नहीं है.यदि उन सबको आम जनता पर भरोसा होता तो वे सब ऐसी हरकते और उपक्रम कतई नहीं करते.

ईवीएम् पर हाय-तौबा मची हुयी है.आपको जानकार आश्चर्य होगा कि ये हंगामा सिर्फ देश में नहीं विदेशी मीडिया का भी हिस्सा बनाया चूका है.इस मसले पर पिछले दो दिनों में देश के अलावा कई देशो से संदेश और व्हाट्स एप संदेशो की बाढ़ से मै अचंभित हूँ .लगता है भारत में अब सब कुछ बर्बाद हो चूका है.पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,भाजपा,नरेन्द्र मोदी .प्रधानमंत्री श्री मोदी,मोदी सरकार और अब एक उच्च सम्वैधानिक व्यबस्था को तार तार करने की असफल कोशिशे अनवरत जारी है.राजनीतिक तौर पर संघ,भाजपा,मोदी सरकार का विरोध को तो एक सजग लोकतंत्र का हिस्सा कहा जा सकता है.विरोध के लिए विरोध भी मान लेते हैं.लेकिन विरोध के नाम पर राष्ट्र की अस्मिता का अपमान कहाँ तक उचित है.वो चाहे कोई भी दल हो.उन सभी को ऐसे निम्न कोटि के विरोध से बचना चाहिए.परन्तु वे अपने निहित स्वार्थों को सामने रखकर राष्ट्र हितों का अपमान करते है तो वे सभी सम्बन्धित दल या नेता क्षमा योग्य बिलकुल नहीं हैं.

ईवीएम् को लेकर कई कहानियां है.कई किस्से है.कई रोचक दास्ताँ है.ईवीम बेचारी हो गयी हैं तो  कभी वह राजदुलारी हो जाती है तो कभी अंनाथ.वैसे ईवीएम पर जो जीता वही सिकंदर वाली कहावत फिट बैठती है.

बेचारी ईवीएम, जब भी चुनाव होता है तो वह चर्चा के केंद्र बिंदु में आ जाती है.2015, 2017,2018  में भी चर्चा में रही.ईवीएम को कई प्रकार से विवादों के केंद्र में लाने की कोशिश की गयी.चुनाव आयुक्त को भी विवादों का मोहरा बनाने की कोशिशें की गयी.जबकि कांग्रेस के जमाने में नवीन चावला जैसे को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था,जिनकी संस्था को एक कांग्रेस नेता के द्वारा सांसद विकास निधि से भारी मात्रा में धनराशि लेने का आरोप था.पर वे अच्छे थे और सच्चे भी कांग्रेस के मुताबिक.

कहते समय बड़ा बलवान होता है,हर मायने में.याद और भूलने दोनों मायने में.इसलिए एक बार फिर भूलने और  भुला देने की कांग्रेस की सुविधापूर्ण राजनीति के विशेष फार्मूले के तहत फिर एक नया हंगामा किया गया.काफी हंगामा हुआ और हो रहा है .चुनाव आयोग,राष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय उस चर्चा की परिधि में आये हैं .उच्चतम न्यायालय के कई फैसले भी दिए,पर कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी दल  हैं,जो कुछ भी सच मानने को राजी नहीं.क्योकि उन्हें आम जनता पर भरोसा नहीं..

अब 2009 में ईवीएम् बिलकुल सच्ची थी .क्योकि उस वक़्त कांग्रेस की सरकार आई थी .पर आज बिलकुल उलट.उस वक़्त भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाया था. 2004 से सरकार में रही और आने वाली कांग्रेस सरकार ने 2009 में ईवीएम् को सबसे सच्चा,अच्छा और अति विश्वसनीय संयंत्र बताया था.जिस पर विपक्ष के दिग्गज नेता श्री आडवाणी ने भरोसा भी कर लिया था.पर आज सबकुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है.सभी विरोधी सच जानकर भी जानबूझकर भ्रम और अविश्वास का माहौल बनाने में जुट गए हैं.लेकिन जो होना है ,वो होकर रहेगा.जिसको जीतना है वो जीतेगा ही.

इस हंगामा के पीछे की  अहम वजह ज्यादातर मीडिया संस्थानों और टीवी चैनलों का एग्जिट पोल का विश्लेषण बताया जा रहा है.उस विश्लेषण से विपक्ष के सभी नेताओ के चेहरे पर हवाईयां उडी हुई हैं.उनके दिनों के चैन और रातों की नींद गायब हो गयी है.उनके गुस्से के निशाने पर सिर्फ भाजपा के नरेद्र मोदी और उनकी भावी नई एनडीए सरकार है.जो लोक सभा के 17 वां कार्यकाल के लिए होगा.

सभी सर्वे और एग्जिट पोल के परिणामों में एक जैसी समानता हैं.सब के सब मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं.उन चैनलों में जो कांग्रेस भक्त चैनल है ,वे भी हर हर मोदी-घर घर मोदी के नारे लगा रहे हैं.पर अब क्या होगा? कुछ नहीं हो सकता.कहते है-आयेंगे तो मोदी ही,(ATM)चाहे कोई कुछ भी कर ले.क्योकि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के नेताओ ने पाने अपने चुनाव प्रचार में अपने किये गए जन कार्यों के मद्देनजर आम जन से समर्थन माँगा.कार्यों का ब्योरा दिया.उन सभी लाभार्थियों का जिक्र किया.जिससे मोदी सरकार के कर्म और वचन में समानता दिखी.

परन्तु चुनाव प्रचार में विपक्ष के नेताओं ने क्या किया? ममता बनर्जी,मायावती,अखिलेश यादव,प्रियंका गाँधी,राहुल गाँधी,चंद्रबाबू नायडू,शरद पवार,तेजस्वी यादव,सीताराम येचुरी के साथ अन्य नेता गणों के चुनाव प्रचार का विश्लेष्ण किया जाये तो आप पाएंगे कि इन सभी नेताओं के प्रचार का केंद्र बिंदु प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ गाली,अपमान जनक टिप्पणियां,और सिर्फ मोदी की खिलाफत.विकास और मुद्दे पर तो शायद ही किसी नेता ने विस्तार से अपनी बातें आम जन तक पहुंचाई हो.पर एक बात सबने चर्चा की और करवाने की कोशिशें की-महा गठबंधन में प्रधानमंत्री कौन कौन नेता बन सकते हैं और क्यों.इन तमाम पहलुओ के मद्देनजर मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले नेता रामविलास पासवान को दाद देनी पड़ेगी.क्योकि वे इस बार सिर्फ एक गाना और धुन बार बार गा रहे थे,गवा रहे थे और गुनगुना भी रहे थे –फिर एक बार,मोदी सरकार.मोदी है तो सब मुमकिन है.

वैसे इस ईवीएम्  चर्चा में पूर्व कांग्रेस नेता और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखेर्जी भी शरीक हो गए है.शायद कही उनकी एक बार पुनर्वापसी हो जाये मुख्य धारा में और वे प्रधानमंत्री बन जाये -जो कि उनके जीवन की एक अतृप्त इच्छा है.

*कुमार राकेश .

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.