दो गज जमीन भी मिल ना सकी कूच-ए- यार में /अनामी शरण बबल

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 2020 के बाद कहां दफनाए जाएंगे मुस्लिम?

 नयी दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट को सही माने तो अगले डेढ़ दो साल के बाद दिल्ली में मुस्लिमों की मौत के बाद उन्हें दफनाने के लिए दिल्ली के किसी भी कब्रिस्तान  में कोई जगह नहीं बचेगी।  हालांकि कानूनी दांव-पेंच की वज़ह से 16 कब्रिस्तान को निकाल बाहर करने से शायद मृतकों के दफनाने का संकट टल सकता है। मू अरविंद केजरीवाल भी इस समस्या के समाधान के लिए  जुटे हैं।

: उल्लेखनीय है कि दिल्ली में मुस्लिमों की आबादी करीब 12 लाख से भी अधिक हैं। कहने को तो दिल्ली में कोई 700 कब्रिस्तान हैं। जिसमें केवल 135 कब्रिस्तानों में 16 विवादास्पद है। केवल 115 कब्रिस्तान ही दफनाए जाने के लिए काम में आते  हैं। जिसमें अब केवल 30 हजार शवों को ही दफनाया जा सकता है। हर साल करीब 13 हजार मुस्लिमों के शव दफनाने के लिए जमीन की जरूरत होती है। और यदि यही संख्या बनी रहीं तो अगले दो साल के बाद  दिल्ली के सारे कब्रिस्तान पैक हो जाएंगे।  हालांकि वैकल्पिक इंतजाम के तहत लगभग एक सौ खत्म हो गये कब्रिस्तानों को पुनर्जीवित करने के लिए स्थान दूरी और इलाकों का आंकलन कराने को लेकर विचार कर सकतीं हैं। वक्फ बोर्ड और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग विवादित मामले के लिए सलाह लेगी। वहीं 40 कब्रिस्तानों पर अवैध कब्जा हो चुका है। वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन मतीन अहमद ने आने वाले समय में  यह संकट और विकराल रूप धारण कर सकता है। लोजपा के दिल्ली सचिव दर्शनलाल ने सरकार से कब्रिस्तान के लिए भूमि आवंटित करने की मांग की है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पैदा हो गये कब्रिस्तानों को पुनर्जीवित करने और कुछ स्पेस निकालने पर जोर दिया। केजरीवाल ने भी कुछ नये शमशान घाट बनाने की योजना पर जोर दिया है। अब देखना है कि सरकारी पहल से कब्रिस्तानों में स्थानों की कमी  से निपटना कितना सफल हो पाया है। कभी तो एकं शव को दफनाने के लिए कई जगह जमीन में गडठा खोदना पड़ता है। जहां पर जमीन की खुदाई की जाती है तो वहां पर पहले से ही कोई शव दफनाया मिलता है। मिनी मुगलों के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को तो अंतिम समय में रंगून जेल में कैद कर लिया गया था। अपने देश से बाहर होने वालीं मौत पर बादशाह जफर की पीड़ा थी । “_कितना है बदनसीब ज़फ़र  दफन के लिए  / दो गज जमीन भी न मिल सकी कूच ए यार मैं।। यह पीड़ा थी  जेल में बंद बादशाह की — इंतकाल से पहले अपनी पीड़ा जेल की दीवार पर लिखकर बता गये। मगर दिल्ली के लाखों मुस्लिमों की तो बदनसीबी ज़फ़र से भी ज्यादा है कि अपने देश में भी दफनाने के लिए दो ग़ज़ जमीन महफूज नहीं हैं।
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