वसुधा की संपदा के स्मरण की धनतेरस
लोकसमुदाय का अपना लालित्य है और लोकजीवन की अपनी लालिमा। लोक के लोचन स्मृतियों का सुरमा आंजते हैं। लोक के कान सदियों के स्वर सुनते हैं और नाक को प्रिय गंध मिट्टी की सौरभ वाली होती है। लोक की अपनी लीला लहर और लज्जा, सज्जा के लहरिया हैं।…
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