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आधुनिक काव्य की बढ़ती गद्यात्मकता-चिन्तन व चिंता का कारण

*डॉ. वरुण कुमार मृदु मंद मंद मंथर मंथर लघु तरणि हंसिनी-सी सुंदर तिर रही खोल पालों के पर                 ------------------------------          (पंत) हम नदी के द्वीप हैं हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाए   …
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