इक थी सोने की चिड़िया
इक थी सोने की चिड़िया
इक थी सोने की चिड़िया, उन्मुक्त गगन में उड़ती थी।
गाती थी गीत अपनी धुन में, डालों पे चहका करती थी।।
पथ में आते सहस्र तरुवर, पर्वत सरिता और खेत-खलिहान।
तरु के आँचल में थे फल मधुर, नीचे था ऋषियों का ज्ञान…
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