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Every human being is a mask

हर इंसान एक मुखौटा, एक खामोश चेहरा!

*संजय स्वतंत्र मनुष्यों में अब पहले जैसी सादगी, सच्चाई और ईमानदारी नहीं दिखती। नैतिक मूल्य तो दूर की बात है। हम सब ने इन गुणों को मुखौटों में बदल लिया है। जब जहां जरूरत पड़ी, उसे पहन लेते हैं। अब इसे आप समाज, राजनीति और सांस्कृतिक…
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