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सम्मासती”

“अप्प दिपो भव:….सम्मासती” अपने दीए खुद बनो

अंशु सारडा'अन्वि'।  जब इस कॉलम को कागज-कलम लेकर लिखने बैठती हूं तब न जाने कितने विषयों के विचारों की लहरें दिमाग में ठोकर मार रही होती हैं क्योंकि आंखें दिमाग तक वह सब कुछ पहुंचा चुकी होती हैं जो वह देख रही होती हैं, पढ़ रही होती हैं। अब…
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