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बुझा भी नहीं सकते

“किरण की आभा”

डॉ कविता"किरण" नख़रे तमाम उनके उठा भी नहीं सकते रूठे हुए सनम को मना भी नहीं सकते जबरन किसी से रिश्ते निभा भी नहीं सकते जबरन किसी को दिल से भुला भी नहीं सकते ख्वाहिश की गिनतियों को घटा भी नहीं सकते खुशियों के चंद्रमा को बढ़ा भी…
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