जब सिनेमा झूठ को तोड़ता है: राष्ट्र, नैरेटिव और आतंकवाद की सच्ची कहानी
पूनम शर्मा
भारतीय समाज में सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं रहा। वह स्मृति बनता है, सोच गढ़ता है और कई बार इतिहास को दोबारा जनता के सामने रख देता है। दशकों तक कुछ खास नैरेटिव्स — विशेषकर आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और “सेक्युलर बनाम राष्ट्र” — एक…
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