स्वामी सूर्यदेव।
माघ पूर्णिमा के दिन को त्रिपुरसुंदरी के जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन ही भगवती त्रिपुरसुंदरी का प्राकट्य हुआ था।
महाविद्याओं में तीसरे स्थान पर विद्यमान महा शक्ति त्रिपुर सुंदरी, तीनो लोकों में, सोलह वर्षीय कन्या स्वरूप में सर्वाधिक मनोहर तथा सुन्दर रूप से सुशोभित हैं। देवी का शारीरक वर्ण हजारों उदयमान सूर्य के कांति कि भाति है, देवी की चार भुजाये तथा तीन नेत्र ( त्रि-नेत्रा ) हैं। अचेत पड़े हुए सदाशिव के ऊपर कमल जो सदाशिव के नाभि से निकली है, के आसन पर देवी विराजमान हैं। देवी अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, धनुष तथा बाण से सुशोभित है। देवी षोडशी पंचवक्त्र है अर्थार्त देवी के पांच मस्तक या मुख है, चारो दिशाओं में चार तथा ऊपर की ओर एक मुख हैं। देवी के पांचो मस्तक या मुख तत्पुरुष, सद्ध्योजात, वामदेव, अघोर तथा ईशान नमक पांच शिव स्वरूपों के प्रतिक हैं क्रमशः हरा, लाल, धूम्र, नील तथा पीत वर्ण वाली हैं।
इनके सम्बंध में संक्षिप्त जानकारी निम्न प्रकार है —-
* मुख्य नाम : महा त्रिपुर सुंदरी।
* अन्य नाम : श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।
* भैरव : कामेश्वर।
* तिथि : मार्गशीर्ष पूर्णिमा।
* भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान परशुराम।
* कुल : श्री कुल ( इन्हीं के नाम से उत्पन्न तथा संबंधित )।
* दिशा : उत्तर पूर्व।
* स्वभाव : सौम्य।
* सम्बंधित तीर्थ स्थान या मंदिर : कामाख्या मंदिर, ५१ शक्ति पीठो में सर्वश्रेष्ठ, योनि पीठ गुवहाटी, आसाम।
* कार्य : सम्पूर्ण या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।
* शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।
ये अत्यंत ही दयालु हैं।
इनकी आराधना से भुक्ति- मुक्ति सहज सुलभ हो जाता है।
माघपूर्णिमा,,,
दो पूर्णिमा जगत में प्रसिद्ध हैं,,उनमें से एक है शरद पूर्णिमा,,उस रात्रि का शारिरिक और मानसिक दृष्टि से स्वास्थ्य लाभ अद्भुत होता है,,
एक है गुरु पूर्णिमा,, वैसे तो महर्षि वेदव्यास के निर्वाण पर्व के रूप में यह मनाई जाती है लेकिन इसी दिन अपने गुरु इष्ट की सेवा सत्कार सत्संग के भी सुयोग शुभ माने जाते हैं,,
यह तीसरी पूर्णिमा उपरोक्त दोनों पूर्णिमाओं से भिन्न है,, लेकिन इस जगत में जहां पद पैसा प्रतिष्ठा परिवार पहनावे पहचान आदि बनाने में ही जीवन खप जाता है वहां कौन परवाह करे ऐसे पवित्र दिन की,,
माघ पूर्णिमा,,प्रयागराज संगम में तो माघ #मेला भरता है बड़ा भारी,,हल्के फुल्के दस बीस देशों की जितनी जनसंख्या होती है उससे ज्यादा पब्लिक तो माघ मेले में घूमने चली जाती है यहां,, लेकिन अब जब हर चीज भूलने का रिवाज सा बन गया है और सिर्फ परंपराएं ही हाथ में बची हैं तो खोजबीन करने की पड़ी भी क्या है,,
एक समय होता था जब पृथ्वी पर जहां कहीं भी तीर्थ हैं,, जहां कहीं भी पर्वत शिखर हैं,, जहां कहीं भी नदी निर्झर हैं,, वहां वेदवेत्ता #ब्रह्मवेत्ता तपस्वी ऋषि इक्कठे हो जाया करते थे,,ऐसे मृत्युंजयी संत जिन्होंने इह लोक में रहते रहते परलोक सिद्ध कर लिया है,, ऐसे ब्रह्मज्ञानी जिनका अब इस पृथ्वी पर दोबारा लौटना न हो सकेगा,, ऐसे तत्ववेत्ता जिनके लिए न्यायदर्शन में महर्षि #गौतम लिखते हैं–न तत्र #पुनरागमनं वर्तते–जिनका फिर दोबारा आगमन नहीं देखा जाता,,
सनातन के चार पुरुषार्थ ( धर्म अर्थ काम #मोक्ष )में चतुर्थ पुरुषार्थ मोक्ष के अधिकारी ऋषि,, वे इसी #माघपूर्णिमा को अपना शरीर छोड़ा करते थे अपनी इच्छा से,, अपने संकल्प से,, यह उन मुक्तात्माओं की पूर्णिमा है जिन्हें देखने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा करता था #प्रयागराज संगम जैसे तीर्थों में जिसे आप माघ मेला कह रहे हैं वह उन ऋषियों के प्रयाण का साक्षी रहा है युगों युगों तक,,
चलो जीवन्मुक्त न सही,,पलभर ही सही,, घड़ीभर ही सही पोस्ट पढ़ते ही ऊपर छत पर जाएं,, चंद्रमा को निहारें,, उसकी किरणों में देह को भीग जाने दें,, कुछ समय के लिए ही सही,, स्वयं को मुक्त अनुभव करें,, करके देखें,, अद्भुत परिणाम होंगे,,
मैं भी #नर्मदा तट बैठा अपने यशस्वी पुरखों की स्मृतियों को यहां लिखकर संजो रहा हूँ,,आज उदय होते चंद्रमा का बिम्ब नर्मदा जी में ऐसा बन पड़ा है,,