
’तेरी आंखों में तेरे इरादे हमने पहले ही पढ़ लिए थे
जब तक खंजर तेरे हाथ में आता हमने डग भर लिए थे’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को अपनी दाओस यात्रा बीच में ही छोड़ कर मुंबई लौटना पड़ सकता है। दरअसल, दोनों ‘वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम’ की मीटिंग में शिरकत करने के लिए दाओस जा रहे हैं, यह मीटिंग 15 से 19 जनवरी के बीच आहूत है। पर इस बीच पीएम मोदी 19 जनवरी को मुंबई पहुंच रहे हैं, जहां उन्हें नवी मुंबई मेट्रो का विकास थीम के तहत उद्घाटन करना है। सो, पीएम के मुंबई दौरे को अंतिम रूप देने के लिए फड़णवीस व शिंदे दोनों दिल्ली तशरीफ लाए थे, फड़णवीस जब पीएम से मिलने पहुंचे तो उनके साथ महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी थे। फड़णवीस ने पीएम से मिलते ही शिंदे के खिलाफ शिकायतों का पिटारा खोल दिया। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद पीएम ने बावनकुले को इस मंशा के साथ कमरे से बाहर जाने को कहा ताकि वे फड़णवीस से आमने-सामने की बात कर पाएं। बावनकुले के कमरे से बाहर जाते ही पीएम फड़णवीस पर फट पड़े, पीएम ने उनसे दो टूक कहा-’देवेंद्र देखिए, बुरा मत मानना पर मैं साफ कर देना चाहता हूं कि यदि एकनाथ जी हटते भी हैं तो सीएम आप नहीं बनेंगे। सो, आप एकनाथ जी को डिस्टर्ब मत करिए, पार्टी ने आपको बहुत कुछ दिया है, अब आपकी बारी है पार्टी को कुछ देने की।’ जाहिर है इस पर फड़णवीस अपना सा मुंह लेकर रह गए।
शिंदे व भाजपा में क्या पक रहा है?
इस दफे जब शिंदे दिल्ली आए तो उनकी मुलाकात भी भाजपा शीर्ष के साथ हुई। बातचीत के दरम्यान जब यह मुद्दा प्रमुखता से उभरा कि शिंदे को अब अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर देना चाहिए, तो शिंदे ने भाजपा शीर्ष को समझाना चाहा कि ’अगर अभी वे अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करते हैं तो उनके अधिकांश विधायक अपने पुराने घर यानी शिवसेना में लौट जाएंगे, सो अगर उन्हें अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करना भी है तो यह 2024 के आम चुनाव से पहले हो।’ लगता है भाजपा शीर्ष ने भी शिंदे के इस प्रस्ताव पर हामी भर दी है।
जयंत क्यों मिले नड्डा से
केंद्रीय मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल की आहटों के बीच एनडीए के सहयोगी दलों के नेताओं के भाजपा शीर्ष से मिलने का सिलसिला जारी है। भाजपा के वैसे नेता गण भी पार्टी शीर्ष की परिक्रमा कर रहे हैं जिनका राजनैतिक कैरियर अब अवसान पर है, वे बस एक और मौका पाने के लिए अमित शाह के घर की परिक्रमा कर रहे हैं। भाजपा शीर्ष से मिलने वालों में चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश और अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल के नाम भी शामिल हैं। पर सबसे हैरतअंगेज तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लोकदल नेता जयंत चौधरी का मिलने जाना था। जयंत अब भी अखिलेश की पार्टी सपा के गठबंधन पार्टनर हैं, अपनी भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में जब राहुल यूपी से गुजरे तो जयंत और उनकी पार्टी ने बढ़-चढ़ कर राहुल को अपना नैतिक समर्थन दिया। पर नड्डा से हुई उनकी इस हालिया मुलाकात से यूपी की सियासत में एक नया घमासान छिड़ सकता है।
प्रियंका क्यों मिलीं खड़गे से
पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने उनके घर पहुंची तो इन अटकलों ने जोर पकड़ लिया कि प्रियंका को पार्टी का महासचिव संगठन बनाया जा रहा है, ताकि वह राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से पैदा हुए सकारात्मक माहौल में कांग्रेस कैडर को नया खाद-पानी दे सके। सूत्रों की मानें तो खड़गे ने बकायदा इस बारे में सोनिया से बात भी की, पर सोनिया ने यह कहते हुए खड़गे के आग्रह को टाल दिया कि ’ऐसा होने पर भाजपा को हम पर हमला बोलने का मौका मिल जाएगा कि कांग्रेस अब भी परिवार से बाहर नहीं आ पा रही है, बेटा पार्टी नेता के तौर पर देश भर में अलख जगा रहा है और बेटी संगठन का कामकाज संभाल रही है।’ खड़गे को भी बात समझ में आ गई।
राहुल-प्रियंका क्या दोनों लड़ेंगे चुनाव?
सूत्रों का कहना कि इस दफे के सीडब्ल्यूसी का चुनाव राहुल और प्रियंका दोनों ही लड़ना चाहते हैं। एआईसीसी का सत्र फरवरी के आखिर में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आहूत है। जिसमें कांग्रेस वर्किंग कमेटी के लिए चुनाव होने हैं। सनद रहे कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी में अध्यक्ष समेत इसके 25 मेंबर होते हैं। 12 सदस्यों को पार्टी अध्यक्ष मनोनीत करता है, जबकि शेष 12 सदस्यों का चुनाव एआईसीसी के सदस्य वोटिंग के जरिए करते हैं, एआईसीसी के अभी 1450 मेंबर हैं। अब कांग्रेस में इस बात को लेकर मंथन चल रहा है कि ’अगर राहुल व प्रियंका दोनों ही चुनाव में उतर गए तो और इनमें से एक को कम वोट आए तो इससे पार्टी की ही फजीहत होगी।’ सो, फिलवक्त यह तय हुआ है कि सोनिया गांधी को तो नॉमिनेट कर दिया जाए और बाकी के पूर्व अध्यक्षों के बीच चुनाव हो जाए।
शिवराज के राज में सब ठीक नहीं
मध्य प्रदेश का भगवा आकाश आपसी रंजिश व खींचतान की नई कहानी बयां कर रहा है। आर्थिक आधार पर आरक्षण, बिना जांच ’एट्रोसिटी एक्ट’ में गिरफ्तारी रोकने समेत अपने 22 सूत्री मांगों को लेकर करणी सेना भोपाल के जंबूरी मैदान पर अभी महाआंदोलन चला रही है। करीब 3 लाख लोग इस आंदोलन में शिरकत कर रहे हैं। करणी सेना के अधिकांश मांगों को सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मान लिया है, पर पेंच एससी एक्ट में गिरफ्तारी को लेकर फंसा हुआ है। शिवराज के एक मुंहलगे पत्रकार ने उनसे पूछ ही लिया कि ’आपके राज में इतनी बड़ी भीड़ आपके घर में ही कैसे इकट्ठी हो गई और आपको इसका अंदाजा भी नहीं हुआ?’ सूत्रों की मानें तो इस पर शिवराज खुद को रोक नहीं पाए, वे फट पड़े यह कहते हुए कि ’दिल्ली में बैठे एक क्षत्रीय नेता हैं, उनके सपने इन दिनों ज्यादा बड़े हो गए हैं, क्योंकि उनकी नज़रें हमारी सीएम की कुर्सी पर है, यह भीड़ उनकी ही प्रायोजित है।’ शिवराज यहीं नहीं रुके उन्होंने कहना जारी रखा-’पिछली बार तो उन्हें ग्वालियर से भागना पड़ा था, देखना है इस बार कहां से जीतेंगे?’ ऐसा लगा जैसा शिवराज का इशारा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर था।
पायलट की उड़ान से कौन है परेशान
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कौन उनके साथ चलता हुआ दिखेगा इसका फैसला राहुल के सिक्यूरिटी इंचार्ज पीके बायजू करते हैं। सो, इस दफे जब राहुल की यात्रा पंजाब पहुंची तो सचिन पायलट ने यात्रा में शामिल होने के लिए बायजू को फोन किया और उनसे कहा कि ’उन्हें 3-4 घंटे राहुल के साथ यात्रा करनी है।’ बायजू ने सचिन से कहा कि ’वे राहुल से बात कर उन्हें रात में फोन कर देंगे।’ ऐसा ही हुआ, रात में बायजू का फोन सचिन के पास आया, बायजू ने उन्हें बताया कि राहुल जी ने कहा है कि ’यात्रा में आपका सहर्ष स्वागत है, पर हर बार की तरह इस बार सचिन उनसे राजस्थान को लेकर कोई चर्चा न करें, क्योंकि उनकी यात्रा का मकसद गैर राजनीतिक है।’ सनद रहे कि इससे पूर्व पायलट राजस्थान में राहुल की यात्रा में उनके साथ चले थे। इसके बाद पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में पायलट राहुल की यात्रा में शामिल हुए, पायलट के साथ पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी ने भी इस यात्रा में शिरकत की, ध्यान रहे कि चौधरी को राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का धुर विरोधी माना जाता है।
बिहार की राजनीति को अलविदा कहेंगे नीतीश?
इस साल बिहार का बजट वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बतौर सीएम आखिरी बजट साबित हो सकता है। इसके बाद नीतीश दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो सकते हैं, राजद नेता और प्रांत के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को वे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकते हैं। सो, नीतीश ने तय किया है कि ’अपने इस आखिरी बजट में वे राज्य की गरीब जनता के लिए एक बड़ी कल्याणकारी योजना लेकर आएंगे।’ कहते हैं नीतीश की इस ‘रेवड़ी योजना’ से राज्य के खजाने को 8 से 10 हजार करोड़ रुपयों की चपत लग सकती है। सो, तेजस्वी ने नीतीश से आग्रह किया है कि ’राज्य के ऐसे वित्तीय हालात को देखते हुए वे इतना बड़ा फैसला न लें जिसकी भरपाई मुश्किल हो जाए,’ सो कहते हैं कि तेजस्वी ने नीतीश से आग्रह किया है कि ’दिल्ली जाने से पहले वे सिर्फ अंतरिम बजट पेश कर दें।’ क्या इसे भावी मुख्यमंत्री का आदेश समझा जाए?
…और अंत में
हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट की राजनीति को आकार देने में भाजपा की एक महती भूमिका रही है। एक गैर जाट मुख्यमंत्री के कंधे पर राज्य की बागडोर डाल भाजपा ने राज्य के तमाम जातीय संतुलनों को साध लिया है। कांग्रेस ने इस दफे भूपिंदर सिंह हुड्डा में अपना पूरा भरोसा दिखाया है, जिससे एक तरह से जाट पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में लामबंद्द हो रहे हैं। पर इस जाट बनाम गैर जाट की राजनीति ने एक तीसरे प्लेयर के लिए मैदान में जगह बना दी है, माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी इस बार हरियाणा में एक तीसरी ताकत बन कर उभर सकती है। गैर जाट वोटों का रुझान अभी से आप की ओर दिखने लगा है।