*डॉ कविता”किरण”
मेरे दिल में घर कर जा
आजा दिल पे दिल धर जा
अपनी साँसों की ख़ुशबू
मेरी साँसों में भर जा
जग झूठा है मेरी मान
मत उसकी बातों पर जा
बाहर से क्यूँ दे आवाज़
यार कभी तो भीतर जा
ऐ दिल इक अनजाने पर
जा मरता है तो मर जा
देस हुआ परदेस “किरण”
चल हंसा अपने घर जा
©️डॉ कविता”किरण