संस्कृति : लोकमंथन (21)- लोक परंपराओं में संस्कार और कर्तव्य बोध-2

(संदर्भ-भारतीय समाज मे कामगार जातियां)

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पार्थसारथि थपलियाल
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)

क्रमशः….
प्रश्न- शास्त्रों में जो बताया जाता है वह अधिकतर दिखाई क्यों नही देता?
प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा- यह बात सही है कि हमारी बहुत सी लोक परंपराएं लुप्त हो गईं हैं। उसके प्रमुख कारण सामाजिक स्थितियों में बदलाव और राज व्यवस्था में परिवर्तन हैं। राज व्यवस्था ने सामाजिक ताने बाने को प्रभावित किया है। पहले ग्रामवासी श्रमदान से अपने गांव का विकास स्वयं कर देते थे। अब लोग राज्याश्रित हो गए। पुराने समय में शास्त्र सम्मत बातें लोक व्यवहार में होती थी। मेगस्थनीज ईसा से 300 वर्ष पूर्व भारत आया था। उसने अपनी पुस्तक इंडिका में लिखा कि भारत में यदि दो राजाओं की सेनाएं आपस में युद्ध कर रही हों तो केवल सेना लड़ती थी। धर्म की मर्यादा का इतना पालन किया जाता था कि खेतों में काम करनेवाले किसान युद्ध के ही समय अपने खेतों में काम कर रहे होते थे। खेतों में काम कर रहे लोग भले ही दुश्मन राजा की प्रजा हो, तब भी उस पर आक्रमण नही करते थे। समाज का लोक संस्कार महाभारत काल में भी दिखाई देता है। महाभारत के प्रसंग में द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर सब कुछ हार गए। वनवास में एक दिन भीम ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर से कहा भैया, वचनबद्धता को तोड़ना पाप है लेकिन उसका प्रायश्चित भी है। शास्त्रों में लिखा है कि यदि किसी भारवाहक बैल को भरपेट चारा खिला दिया जाय तो पाप का प्रायश्चित ही जाता है। हम क्यों न दुर्योधन से अपना राजपाट वापस ले लें, और भारवाहक बैल को भरपेट चारा खिलाकर प्रायश्चित्त कर लें। युधिष्ठिर ने कहा यह वचनबद्धता की अवधारणा के विपरीत है। ऐसा करना नैतिकता के विरुद्ध है। भारतीय जीवन सामाजिक मर्यादाओं, लोक लाज और नैतिकताओं पर चलता रहा। आधुनिकता ने सामाजिक मर्यादाओं को दर किनार किया उसका प्रभाव देखिये- भारतीय परिवारों में माँ का बहुत बड़ा मान था। आज के लोक जीवन में माँ सबसे कमजोर कड़ी बन गई। संबंधों में व्यावसायिकता आ गई। महिलाओं को देखने की दृष्टि बदल गई। मीडिया अपना व्यवसाय फैलाने के लिए जितनी मर्यादाओं और अनैतिकताओं का प्रचार कर रहा है उससे हमारी सामाजिक मान्यताएं, धारणाएं और परम्पराएं क्षीण हो रही हैं।

  • प्रश्न-जाति क्या है और औद्योगिक प्रगति में उसकी क्या भूमिका है?

आचार्य भंवर जी- जाति शब्द की उत्पत्ति जात शब्द से हुई है।
जाति का मुख्य आधार कौशल है। जब हम कोई कार्य करते हैं तो करते करते उसमें विशेष जानकारी वाले हो जाते हैं यह विशेषज्ञता ही उसकी परंपरा बन जाती है।

  • प्रश्न-क्या लोक परंपरा और इतिहास का कोई संबंध है?

प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा- अधिकतर लोक परंपराओं का ऐतिहासिक आधार होता है। थोड़ा गंभीरता से खोज करनी पड़ती है। एक उदाहरण से जाने। दिल्ली से 60 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान है दनकौर। यह हस्तिनापुर का एक किनारा बनता है। यहाँ पर द्रोणाचार्य का एक आश्रम था जहाँ पर वह राजपुत्रों को प्रशिक्षण देते और उनका दीक्षांत समारोह आयोजित करते थे। यहां पर महाभारत कालीन एक स्टेडियम भी है, जिसमें 2500 लोग बैठ सकते हैं। यह द्रोणाचार्य का किनारा आज बदलते बदलते दनकौर बन गया।
लोक परंपरा के ऐतिहासिक पक्ष के बारे में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में रामलीला खेलना एक सामान्य बात लगती है लेकिन सुमंत- शांतनु की नृत्यनाटिका में भगवान राम की दादी इंदुमती की कथा है यह प्रसंग भारत में नही पाया जाता। परंपराएं जीवित रहती हैं तो इतिहास समृद्ध होता है।

  • प्रश्न- क्या भारत औद्योगिक आधार पर यूरोप से पिछड़ा था?

आचार्य बनवारी जी- यूरोप के पास ऐसा कुछ विशेष नही था। भारत, यूरोप से ज्यादा सम्पन्न था। भारत के व्यापारी अपना सामान बेचने के लिए दुनिया के अनेक देशों में जाते थे। भारत और चीन की विकास दर 30 प्रतिशत से अधिक थी। पश्चिम के लोग भारत और चीन से सामान ले जाया करतें थे। यूरोप में 1830 से 1870 के मध्य औद्योगिक क्रांति आयी तबतक बिजली का आविष्कार भी नही हुआ था। लगभग 800 साल भारत पर आक्रांताओं के लूट खसोट और विदेशी शासकों के अत्याचार के कारण भारत की प्रगति कुछ हद तक पिछड़ गई।

क्रमशः संवाद की तीसरी कड़ी…

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