धर्म के नाम पर बहुत बातें समाज में प्रचलित हैं,,लोग इस्लाम को धर्म मानते हैं,,हिन्दू धर्म,, क्रिश्चनिटी,,सिख धर्म,, यहूदियत,, पारसी,, जैन धर्म,, बौद्ध धर्म,,
मनु महाराज वेद को धर्म का मूल बताते हैं–वेदो अखिलो धर्ममूलम,,
वेद सम्पूर्ण धर्म का मूल है,,लेकिन बात फिर वहीँ अटक गई कि धर्म क्या है??
क्योंकि #वेद को धर्म के मूल में माना तो कुछ लोग #कुरान को धर्म के मूल में मानने लगेंगे,, कुछ #गुरुग्रंथ को,, कुछ #धम्मपद को,, कुछ #समयसार को तो कुछ #बाईबल या #जेंदावेस्ता को,,लेकिन प्रश्न वही है कि ये ग्रन्थ या किताबें तो मूल में हैं,,
आखिर धर्म क्या है??
क्योंकि इन सम्प्रदायों की किताबों में एक वर्ग विशेष की बात की जाती है,, कुरान इस्लाम की बात करती है,, बाईबल क्रिश्चनिटी की,,ऐसे ही सब अपनी अपनी बात करते हैं,,
ऋषि कहते हैं कि धर्म वह नियम जो पूरी पृथ्वी पर किसी भी देश काल में बदले नहीं,, धर्म दो का गुण है,, #जड़ और #चेतन का,,
जड़ के धर्म जैसे जल का धर्म यानी गुण है शीतलता,,पूरी धरती पर जल शीतल ही रहेगा,, गर्म भी कर दोगे तो गर्मी का कारण हटते ही शीतल हो जाएगा,, सूर्य का धर्म है प्रकाश और ऊर्जा,, चाहे कुछ भी हो वह देगा ही,, वायु का धर्म है बहना और प्राण देना,, पशु, पक्षी, मनुष्य, पेड़ सबको वह प्राण देती हुई बहेगी ही,,
चेतन में हम सब आते हैं,,ऋषियों ने पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए सन्देश दिया है,, बिना अपना मजहब बदले,, क्योंकि मजहब अलग अलग हो सकते हैं धर्म नहीं,,
#यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि स धर्म:–महर्षि #कणाद,, वैषेशिक दर्शन,,
जिस तत्व विशेष के कारण मनुष्य मात्र की बाहरी और आंतरिक समृद्धि सिद्ध हो वही धर्म है,,
#धारणात् स धर्म:–वे नियम जो मनुष्य मात्र को धारण करते हैं वो धर्म है,,
तो फिर भी सवाल मन में रह सकता है कि वे गुण या नियम या वह तत्व क्या है जो हमें धारण करना चाहिए,,
तो #मनुस्मृति में महाराज मनु कहते हैं कि–धृति: क्षमा दमोस्तेयं शौचं इद्रीयनिग्रहात ! धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम!!
जिस मनुष्य में #धैर्य, क्षमा, मन पर काबू,, दूसरे की वस्तु लेने की सोचना भी नहीं,,स्वच्छ रहना बाहर और अंदर से,,विषयों से इंद्रियों को हटाना,,सात्विक बुद्धि,,सत्य बोलना,, क्रोध न करना,, ये वैदिक धर्म है,,यही धर्म का लक्षण है,,
और पूरे #विश्व में कोई भी यह नहीं कह सकता कि ऊपर लिखी 10 बातें पालन नहीं करनी चाहिए,, बल्कि इन गुणों को स्वीकार करेगा ही सार्वजनिक तौर पर तो,, भले ही आचरण में न ला पाए,,
#सनातन का अर्थ है जिसका प्रारम्भ न हो,, याने जो हमेशा से है,,यानी जब से मनुष्य पृथ्वी पर आया और जब अंत में सब जाएंगे तब तक,,
मनुष्य को कैसे जीना चाहिए,, कैसे खेती, व्यापार,राष्ट्र सुरक्षा करनी चाहिए,,पर्यावरण और पशु पक्षियों के साथ कैसे बरतना चाहिए यह सब #वेद में है ही,,
हम वैदिक संस्कृति के हिस्से हैं,, हम सब सनातनी हैं,,,ये बातें इसलिए नहीं लिखी जा रही हैं क्योंकि हम हिन्दू हैं और ये हमारे ग्रन्थों में है,,
बल्कि इसलिए लिखा जा रहा है कि उपरोक्त गुणों को धारण करना ही धर्म है,,,, और ये उद्घोष वैदिक #ऋषियों द्वारा मानव मात्र के कल्याण के लिए किया गया है,,
यहां कोई #दढ़ियल पागल बम बांध के नहीं फट रहा है,, या तुम्हे #तलवार की नोक पर मजबूर नहीं कर रहा है कि फलां फ़्ला पर ईमान लाओ तब जन्नत मिलेगी,,
ऋषि तो कह रहे हैं कि तुम जहां भी रहो धैर्य से रहो,,क्षमा करना सीखो,, प्रकृति के साथ दुर्व्यवहार न करो,, आंतरिक शांति प्राप्त करो और बाहर से समर्द्ध भी रहो बिना किसी को नुकसान पहुंचाए,,
इससे पवित्र धर्म की और क्या व्याख्या हो सकती है,,
साभारा- सोशल मीडिया