संस्कृति- राष्ट्रीय संगोष्ठी – भारत की एकात्मता और जन जातीय संस्कृति (7)
स्वाधीनता संग्राम में जन जातीय नायकों का योगदान
पार्थसारथि थपलियाल। (6-7 अगस्त 2022 को अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र सभागार में आयोजित संगोष्ठी का श्रृंखलाबद्ध सार)
दूसरे दिन 7 अगस्त को कार्यक्रम के औपचारिक शुरुआत से पहले स्टेज पर रेखा बहन आदिवासी परंपरा के कुछ भजन सुना रही थी। वे अपनी प्रस्तुति से पहले भजन का भाव भी बता रही थी। जैसे-ब्याह कारिज में सबसे पहले गणपति को आमंत्रित किया जाता है।
भजन- हिंडता फिरता अंगणे में आया….
गणपति आव रे…
सोने की थाली म लड्डू प्रॉया रे..
जीमण बैठा रे…
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की आमंत्रित मुख्य अतिथि थी, जन जातीय कार्य मंत्रालय में राज्यमंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरुता। स्वागत सत्कार की परंपरा के साथ आरम्भ में स्वाधीनता संग्राम में जन जातीय नायकों के योगदान को स्मरण किया गया।
जनजातीय नायकों के गौरवपूर्ण युद्धों का जिक्र करते हुए मुख्य वक्ता श्री लक्ष्मण सिंह मरकम (मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्यालय में उप सचिव) ने कहा- हम आज़ादी का अमृतमहोत्सव मना रहे हैं, यह स्वागत योग्य कदम है। इस अवसर पर हमें यह भी जानना चाहिए कि भारत के इतिहास में आक्रांताओं के विरुद्ध वनवासी लोगों के योगदान को वह सम्मान नही मिला जिसके वे हकदार थे। सक्षम लोगों ने इतिहासकारों के माध्यम से अपने गुणगान लिखा दिए और अनेक वनवासी नायकों के गौरव और स्वाभिमान को भुला दिया। यह स्वाधीनता तब तक अधूरी है जब तक “स्व” की यात्रा नही। यह स्व भारत का स्वाभिमान है।उन्होंने बताया कि भारत की प्राचीन पुस्तकों में वनवासियों के योगदान की चर्चा है। रामायण और महाभारत में अनेक वनवासियों का उल्लेख है। भगवान राम के साथ जो वानर जुड़े थे, वे अपनी परिभाषा स्वयं बता रहे हैं। वानर अर्थात वन या जंगल मे रहने वाला नर / इंसान। क्या बंदर मनुष्य जैसा दिमाग रखता है? बाली, सुग्रीव, हनुमान आदि वानर जाति के थे जो वनवासी ही थे। महाभारत में उल्लेख है कि अनेक वनवासी कबीलों ने कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों और कौरवों के मध्य युद्ध मे भाग लिया था। यहां तक कि हिडम्बा, घटोत्कच (खाटू श्याम जी आज भी पूजनीय है )आदि वनवासी ही थे।
आधुनिक भारत के इतिहास में मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में लिखा कि सिकंदर जब भारत आया तो पश्चिमी सीमांत पर उसका मुकाबला आदिवासी कबीलों से हुआ जिन्होनें 6 माह तक उसे भारत मे घुसने नही दिया। चाणक्य ने इन लोगों को आटविक कहा है। आटविक के दो अर्थ है- पहला वन में रहनेवाला और दूसरा अर्थ है 6 प्रकार की सेनाओं में से एक, जो वन में निष्ठापूर्वक युद्ध करने में पारंगत हो। मुस्लिम व मुगल शासन काल में बादशाहों ने जंगलों में घुसने के प्रयास किये लेकिन वे सफल नही हुए।
अंग्रेजों के साथ अनेक युद्ध हुए लेकिन उनके पास बन्दूकें थी जिन्होंने हज़ारों की संख्या में वनवासियों के कत्ल किये।
20 मई 1998 को वास्कोडिगामा भारत मे कालीकट आया। उज़के बाद यूरोपीय व्यापारी आये और उन्होंने कलकत्ता में बसना शुरू किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब पंख फैलाये और अंग्रेज़ी सत्ता स्थस्पित हुई उसके बाद जन जातियों और अंग्रेज़ो के मध्य काम से कम 50 युद्ध व संघर्ष हुए। इन संघर्षों में सर्वाधिक बंगाल क्षेत्र में अंग्रेज़ो से हुए। कार्नवालिस के कार्यकाल में उसने कॉर्नवालिस कोड लगा दिया। स्थाई बंदोबस्त कर आदिवासियों की ज़मीन पर भी अधिकार जमा लिया।
अंग्रेजों के साथ भारत की वनवासी जाति के लोगों ने 1857 से100 साल पहले 1757 में संघर्ष करना शुरू कर दिया था। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए 1766 में चुआड़ विद्रोह, 1778 में छोटा नागपुर में विद्रोह, सन 1780 में (दामिन विद्रोह) और 1784 में करों के विरोध में विद्रोह तिलका माझी के नाम है। 1828 से 32 तक बुधुभगत द्वारा चलाया गया लड़का आंदोलन. 1855 में सिद्धू कान्हा द्वारा चलाये गए संघर्ष में 10 हज़ार आदिवासी मारे गए। निमाड़ का पहला आदिवासी भील तांतिया उर्फ टांटिया वर्ष 1888 में अंग्रेज़ो के साथ संघर्ष में शहीद हुए। सन 1900 में अंग्रेजों के साथ विरोध व युद्ध करने पर अनेक यातनाओं के बाद जेल में मृत्यु। इस प्रकार लगभग 50 विद्रोह जनजाति के समाज ने किए। यह संख्या किसी समुदाय विशेष के योगदान में सर्वाधिक है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने वाले कुछ जन जातीय नायकों में आजीवन हैं– निरंग फिदु, भागोजी नायक, सीता राम राजू, रानी गैदींनल्यू आदि। बिरसा मुंडा को आदिवासियों में भगवान की तरह माना जाता है।