समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9जुलाई। हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है. इस साल यह एकादशी 10 जुलाई दिन रविवार को मनाई जाएगी. मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. यही कारण है कि इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है.
इस विधि से करें देवशयनी एकादशी का व्रत
देवशयनी एकादशी के दिन विधि-विधान से व्रत व पूजन किया जाता है. अगर आप भी इस दिन व्रत करने वाले हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखें. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें. ध्यान रखें कि हाथ में जल, अक्षत और फूल को लेकर संकल्प लिया जाता है. इसके बाद मंदिर की सफाई कर उसमें भगवावन विष्णु की शयन मुद्रा वाली मूर्ति स्थापित करें.
एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती का पूजन किया जाता है. पूजन के दौरान पीले रंंग के वस्त्र धारण करें. इसके बाद पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते और पंचामृत भगवान विष्णु को अर्पित करें. इस दौरान ‘ओम भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्र का जान करते रहें. पूजन के बाद एकादशी व्रत की कथा पढ़ें और आरती के साथ पूजा का समापन करें.
देवशयनी एकादशी के दिन फलाहार के साथ व्रत किया जाता है और रात में भी अन्न ग्रहण नहीं करते. व्रत का पारण अगले दिन सुबह तुलसी का पूजन के बाद ही होता है. एकादशी का व्रत कर रहे हैं तो रात्रि के समय जागरण करना चाहिए और अगली सुबह स्नान के बाद ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान दें.
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
एक बार श्री कृष्ण से युधिष्ठिर ने कहा कि आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व क्या है, तब श्री कृष्ण ने बताया कि इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से इसके महत्व और विधि के बारे में पूछा तो उन्होंने इससे संबंधित व्रत कथा सुनाई ब्रह्मा जी ने कहा कि इस व्रत को पद्मा एकादशी भी कहा जाता है जो भी इस व्रत की कथा को करता है उससे भगवान विष्णु बेहद ही प्रसन्न होते हैं. एक बार सूर्यवंश में एक महान प्रतापी राजा मांधाता राज करते थे राजा बहुत चक्रवर्ती और प्रजा के हित में सोचने वाले थे. धन धान्य से परिपूर्ण उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था. लेकिन एक बार लगातार 3 साल तक बारिश ना होने की वजह से अकाल पड़ गया. अकाल पड़ने के कारण प्रजा को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. कमी होने के कारण सारे धार्मिक कार्य बंद हो गए. जब राजा तक यह बात पहुंची तो जंगल में अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे. जब उनसे आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने सारी बात बता दी. तब उन्होंने देवशयनी एकादशी के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि आप पूरी प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करें. ऐसा करने से प्रजा को अकाल पड़ने से मुक्ति मिलेगी. ऐसा करके अकाल से मुक्ति मिली और राज्य धन धान्य से संपन्न हो गया.