समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा व्यवस्था में लाखों घर खरीदारों को राहत दी है। अदालत ने कहा कि घर खरीदारों का हित सुनिश्चित करना बैंकों के हित से ज्यादा जरूरी है। अगर कोई रियल एस्टेट कंपनी बैंक का लोन चुकाने और पजेशन हैंडओवर करने में नाकाम रहे तो घर खरीदारों के हित को प्राथमिकता मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डिवेलपमेंट) ऐक्ट (रेरा) और सिक्युरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फायनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्यूरिटीज ऐक्ट के तहत रिकवरी प्रक्रिया के बीच टकराव की स्थिति में रेरा प्रभावी होगा। सरकार ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड (आईबीसी) में बदलाव करते हुए घर खरीदारों को कंपनी का भविष्य तय करने वाली क्रेडिटर्स कमिटी का हिस्सा बना दिया था मगर बकाये के भुगतान में उन्हें प्राथमिकता नहीं दी।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की अपील खारिज
जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की बेंच ने राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की अपील खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि अगर बैंकों ने प्रमोटर के डिफॉल्ट के बाद सिक्योर्ड क्रेडिटर के रूप में पजेशन लिया है तो उनके खिलाफ रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) में शिकायत की जा सकती है।
यहां पूरा केस समझ लीजिए
राजस्थान रेरा ने आदेश जारी कर बैंक नीलामी को रद्द कर दिया। निर्देश दिया कि अधूरे प्रॉजेक्ट का पसेशन रेरा को दिया जाए। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने इसके खिलाफ याचिका दायर की। बैंक का तर्क था कि वह रेरा के दायरे में नहीं आता क्योंकि बैंक ‘प्रमोटर्स’ की कैटिगरी में नहीं हैं, रेरा रिकवरी प्रक्रिया को रोक नहीं सकता। राजस्थान हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर बैंक ने प्रमोटर के डिफॉल्ट के बाद पजेशन ले लिया है तो उसके खिलाफ रेरा में शिकायत की जा सकती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले से ‘पूर्ण सहमति’ जताते हुए कहा है कि यह व्यवस्था तब लागू होगी जब घर खरीदारों की तरफ से हितों की रक्षा के लिए रेरा प्रक्रिया शुरू होगी।