कि मन हमेशा नया बना रहे

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अंशु सारडा'अन्वि'
अंशु सारडा’अन्वि’
  ” नित नूतन, नित नवीन, नए कलेवर में हो मन,
    संकल्पित, सुरक्षित और सहज रहे हमारा जीवन।”

बरेली जाए और वहां की चाट ना खाएं तो बरेली प्रवास अधूरा माना जाता है। सड़क के दोनों तरफ के चाट के ठेले और उनसे उठती खुशबू  हमारी भूख को और अधिक बढ़ा रही थी। खैर, चाट के चटखारे लेने के बाद तय हुआ कि आइसक्रीम भी खाई जाए तो इतने सभी आइसक्रीम विक्रेताओं के बीच एक छोटे लड़के के काउंटर पर नजर जा टिकी। बातों से मालूम हुआ कि वह लड़का  कक्षा 7 का छात्र था जो कि दिन में पढ़ाई के साथ-साथ शाम को आइसक्रीम का काउंटर लगाता है। वह अकेला ऐसा बच्चा नहीं होगा जो कि शिक्षा और जीविका दोनों साथ-साथ चला रहा हो। आइसक्रीम का स्वाद कुछ बुझा सा लगने लगा था। क्योंकि हम से बात करते हुए उन दो आंखों की नमी उस आइसक्रीम को बेस्वादा कर रही थी। उसके मन का अंतर्द्वंद, उसके अंदर के सपने किसी भी संवेदनशील मन को उद्वेलित करने के लिए काफी थे। जब हमारा मन संवेदनशील होता है तो वह स्वयं ही अपने आसपास घटित होने वाली बातों को गहराई से अनुभव करने लगता है, शायद यही भावनाओं का मार्मिक रूपांतरण होता है। इस तरह की घटनाएं हमें मनन-चिंतन को प्रेरित करती हैं, कांच के टूटने जैसा एहसास होता है। तो क्या यह हारने का डर था? पर फिर मेरे मन ने अचानक इस भीरूता के लबादे को उतार फेंका और उस बच्चे को उस चंदन की समान समझा जो कि बिना घिसे भी महक रहा था, खड़ा था पूरे साहस के साथ, निर्भीकता के साथ। वह भविष्य में जरूर और अधिक महकने लगेगा। उसकी अनछुई महक को पाने के लिए हमें अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा। जरूर उस बच्चे को कोई तो सही परखने वाला मिलेगा, जिसे सामान्य लकड़ी और चंदन की लकड़ी का भेद पता होगा।

      चंदन से याद आया कि अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध चंदन के पेड़ पर बड़े-बड़े सांप लिपटे रहते हैं। भारत में चंदन की पैदावार विशेषकर दक्षिण के प्रदेशों में होती है। इससे बनने वाले इत्र और तेल के कारखाने उत्तर प्रदेश के कन्नौज में बहुतायत में हैं। कन्नौज शहर तो वैसे भी इस समय अपने इत्र व्यापारियों पर पड़ रहे छापों के कारण सुर्खियों में चल रहा है। उस बच्चे के भविष्य के प्रति आशावादी सोच ने मेरे मन की अकुलाहट को वैसे ही दूर किया जैसे समुद्र के उन्मुक्त लहरें रेत को अपने आगोश में लेती हैं और फिर पीछे को वापस चली जाती हैं तथा इसके बाद वह रेतीली सतह  एकदम सपाट- साफ हो जाती है कुछ नया उकेरने के लिए। मेरे मन में हमेशा कुछ अधिक प्राणसंपन्न, कुछ अधिक सजीव देखने का कौतूहल रहता है। वह जिसका मेरे मानस पटल पर चित्र अंकित हो जाए। इसे किसी भी तरह से आत्मपरक कथ्य न समझा जाए। मेरी जैसी ही कौतुकता अन्य कइयों में भी जरूर होगी। खुद को जानना और दूसरे को समझना बहुत आवश्यक है। वैसे भी दूसरों पर हंसने से कहीं ज्यादा अच्छा लगता है साथ मिलकर हंसना। मुझे लगता है कि यही नववर्ष का सबसे अच्छा संकल्प होगा कि किसी पर हंसने की जगह हम  साथ मिलकर हंसे। मुंहजबानी बातों या कोरी गल्प- लफ्फाजी का क्या? मन चाहे जितना हवाई किले बनाओ और फिर उससे बोर होकर उसे बंद कर दो या बिखेर दो। दिमाग को, अपने विचारों को एकाग्र करना जरूरी है  और यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
       नए साल में तरह-तरह के संकल्प (रेस्योलेशंस)  लेना उसी तरह से होता है जैसे कि सपनों को देखने की लालसा करना, फिर उन्हें नींद से जागकर अधूरा छोड़ देना और यह अधूरापन हमेशा अवसाद ही लाता है। ऐसे अवसाद से दूर रहने का एकमात्र उपाय है शिक्षित होने के साथ-साथ संस्कारित होना। शिक्षा की आवश्यकता एक रास्ते की आवश्यकता के समान है जबकि संस्कार की आवश्यकता रोशनी देने वाले चिराग के समान होती है, इसलिए आवश्यकता दोनों की ही बराबर होती है। अचानक मेरा ध्यान घर के पास में स्थित मिठाइयों की दुकान पर गया। उसके यहां एक बड़ी सी तई गरम हो चुकी है, जिसमें उसका हलवाई/कारीगर अपने सधे हुए हाथों से इमरती के लिए कपड़े में घोल लेकर डालने लग रहा है। बड़ी ही सुंदर सी बनावट वाली  इमरतियां वह बाहर निकालता है, उन्हें चाशनी में डूबोता है और यह लीजिए गर्मागर्म इमरती। सर्दी के इस मौसम में उसका स्वाद में मुंह में घूमने लगता है। कितना एकाग्र है वह, कितना सधे हुए हाथ है उसके, कितना कौशल है उसमें अपने काम के प्रति। शायद हां यही तो सीखना है हमें, एकाग्रता, कौशलता, अभ्यास और मिठास। यही तो है नए साल का पाठ….कैसी भी परिस्थितियां हों, गरम और प्रतिकूल पर इस एकाग्रता को भंग नहीं करना है।
       और अंत में जब सुबह-सुबह टी.वी. पर मां वैष्णो देवी के दरबार में श्रद्धालुओं की मौत की खबर मिली तो मन  दु:खी हुआ। पर क्या इसे सिर्फ पुलिस-प्रशासन की गलती मान कर छोड़ देना चाहिए? क्या यह श्रद्धालुओं की भी गलती थी जो कि मां के दरबार में दर्शन को गए। यह विचारणीय प्रश्न है क्यों बार-बार इस तरह के हादसे होते हैं हमारे देश में? श्रद्धा उजियारा लाती है हमारे जीवन में पर यह अंधकार, यह चीत्कार, यह क्यों? मनन करें, चिंतन करें और सजग बने। सकारात्मक दृष्टिकोण हमेशा ही जीवन का आधार होता है और जब जीवन में सकारात्मकता का भाव रहेगा तो जय-जय का सुखद अनुभव जरूर होगा। संकल्पित, सुरक्षित और सहज हो हमारा जीवन इन सबके साथ साथ-साथ सबसे ज्यादा जरूरी है कि हमारा मन हमेशा नया बना रहे।
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