
बरेली जाए और वहां की चाट ना खाएं तो बरेली प्रवास अधूरा माना जाता है। सड़क के दोनों तरफ के चाट के ठेले और उनसे उठती खुशबू हमारी भूख को और अधिक बढ़ा रही थी। खैर, चाट के चटखारे लेने के बाद तय हुआ कि आइसक्रीम भी खाई जाए तो इतने सभी आइसक्रीम विक्रेताओं के बीच एक छोटे लड़के के काउंटर पर नजर जा टिकी। बातों से मालूम हुआ कि वह लड़का कक्षा 7 का छात्र था जो कि दिन में पढ़ाई के साथ-साथ शाम को आइसक्रीम का काउंटर लगाता है। वह अकेला ऐसा बच्चा नहीं होगा जो कि शिक्षा और जीविका दोनों साथ-साथ चला रहा हो। आइसक्रीम का स्वाद कुछ बुझा सा लगने लगा था। क्योंकि हम से बात करते हुए उन दो आंखों की नमी उस आइसक्रीम को बेस्वादा कर रही थी। उसके मन का अंतर्द्वंद, उसके अंदर के सपने किसी भी संवेदनशील मन को उद्वेलित करने के लिए काफी थे। जब हमारा मन संवेदनशील होता है तो वह स्वयं ही अपने आसपास घटित होने वाली बातों को गहराई से अनुभव करने लगता है, शायद यही भावनाओं का मार्मिक रूपांतरण होता है। इस तरह की घटनाएं हमें मनन-चिंतन को प्रेरित करती हैं, कांच के टूटने जैसा एहसास होता है। तो क्या यह हारने का डर था? पर फिर मेरे मन ने अचानक इस भीरूता के लबादे को उतार फेंका और उस बच्चे को उस चंदन की समान समझा जो कि बिना घिसे भी महक रहा था, खड़ा था पूरे साहस के साथ, निर्भीकता के साथ। वह भविष्य में जरूर और अधिक महकने लगेगा। उसकी अनछुई महक को पाने के लिए हमें अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा। जरूर उस बच्चे को कोई तो सही परखने वाला मिलेगा, जिसे सामान्य लकड़ी और चंदन की लकड़ी का भेद पता होगा।