देखिए उस तरफ उजाला है, जिस तरफ रोशनी नहीं जाती

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Anshu Sarda  'Anvi'
Anshu Sarda ‘Anvi’
  * अंशु सारडा’अन्वि’ 
चलते-चलते यह साल आ पहुंचा है अपने अंतिम पड़ाव पर। साल का आखिरी महीना दिसंबर शुरू हो चुका है, चारों तरफ फैले कोहरे और धुंध ने अपने क्षेत्र का विस्तार कर लिया है। गेंदा, डहलिया, सिनेरेरिया, कैलेंडुला, पिटूनिया जैसे फूल ऋतु परिवर्तन का संकेत दे रहे हैं। गेंदे की खुशबू तो मन में एक सुकून दिए जा रही है। एक तरफ केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की पहली बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं वहीं दूसरी ओर ऑमिक्रॉन ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है और बाजारों में भीड़ यूं ही जस की तस है। बच्चों ने जैसे- तैसे घर से बाहर निकलकर स्कूल जाना शुरू किया था कि कोरोना वाले डेल्टा अंकल गए नहीं थे कि ऑमिक्रॉन बाबा आ गए हैं देश में। बुजुर्गों में एक बार फिर घरों में कैद हो जाने वाले पूर्वानुमानों का डर सता रहा है तो कहीं बेखौफ लोगों की भीड़ नियमों से संबंधित ऐसा कुछ भी सुनने, मानने, समझने और देखने की जरूरत भी नहीं समझती है।
       कुछ वाकयों से सीख लेनी जरूरी होती है। हम हमेशा पढ़ते आए हैं कि एक चुप सौ दु:ख को दूर करता है। इससे बहुत से फायदे भी हैं। शांत बैठने से डैड ब्रेन सेल्स दोबारा जनरेट हो जाती है और दिमाग तेज काम करने लगता है। यादाश्त मजबूत होती है, नींद और डिप्रेशन के शिकार लोगों के लिए भी यह अच्छा होता है। मेरी बुआ सास खाना खाते समय कुछ भी नहीं बोलती थी, यहां तक कि कुछ चाहिए होने से भी इशारे से ही सब समझा देती थीं। ऐसा अभ्यास मैं समझती हूं कि पुरानी पीढ़ी के कई लोगों में आज भी होगा। कहते हैं कि खाना खाते समय शांत रहने से न सिर्फ सेहत अच्छी रहती है बल्कि खाने का स्वाद भी आता है लोग कहते हैं कि शांत रहने से रिश्तों में सुधार आता है। चिल्लाने वालों को चिल्लाने दीजिए, खुद चुप होकर उसका मजा लीजिए। इन सब बातों से मैं भी सकारात्मक इत्तेफाक रखती हूं। जो कुछ भी मैंने ऊपर लिखा उसमें कहीं कोई नयापन वाली बात नहीं थी। सब जाने-बूझे  हुए तथ्य हैं पर अब समय परिवर्तित हो चुका है। समय के साथ नई थ्योरी को, नए इनोवेशंस को स्वीकार करने का समय आ गया है।
        कहा जाता था और आज भी यही उम्मीद की जाती है कि दूसरों की खुशी में खुशी है लेकिन यह एकपक्षीय खुशी कब तक हमें खुशी देगी इस पर भी बात होनी चाहिए। क्योंकि जब आपका मन अंदर से आक्रांत है तो आप कितना देर दूसरों की खुशी के लिए मुस्कुराएंगे। अगर मुस्कुरा भी लिए तो आपके अंदर जो इस नकली मुस्कुराहट को कायम रखने में ज्वार-भाटा बन रहा है उसे कोई भी तो शांत नहीं कर पाएगा और न ही वह आपको खुश रख पाएगा। खुश होने के लिए खुशी देने के साथ-साथ खुद को खुश रखना भी तो जरूरी है। मैंने देखा है कि परिवार में कहीं बड़ो को तो कहीं छोटों को परिवार की इज्जत मान- मर्यादा का हील-हव्वा दिखा कर अपना पक्ष नहीं रखने दिया जाता है। या उसके पक्ष का इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि पारिवारिक सम्मान के नाम पर उसके आत्मसम्मान का मान -मर्दन कर दिया जाता है। पर क्यों? आप दूसरों का ध्यान रखते हैं, उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हैं पर वे लोग मौका मिलते ही उन्हें ठेस पहुंचाते हैं तो इस अन्याय को सहने वाले आप गलती कर रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी तो शिशुपाल की सौ गलतियां माफ़ करने के बाद उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया था। लोग कहते हैं कि ‘ क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात’। पर ऐसा बड़प्पन भी क्या काम का जो कि आपको ही आपसे आंखें मिलाने लायक भी ना छोड़े।
        सबके साथ से ही परिवार बनता है। परिवार का साथ बहुत जरूरी भी है। आपकी समस्या, आपकी उलझन को आपसे बेहतर तरीके से  न तो  कोई समझा सकता है और न ही सुलझा सकता है। अपना पक्ष  आप खुद जितने बेहतर तरीके से रखेंगे,  कोई भी नहीं रख सकता है। लोग सोचते हैं कि अपनी बात को रखना स्वार्थ की निशानी है, अपने बारे में सोचना स्वार्थ की निशानी है। तो किस समय में जी रहे हैं जनाब। जब आपकी भावनाओं की ही सामने वाला कोई कदर ना करे तो हम कब तक चिराग को अपने हाथों को झुलसा कर जलाएं खेंगे। अपने आत्मसम्मान को बचाने की कवायद कोई गुनाह नहीं बल्कि यह अधिकार है हमारा। परिवार को टूट से बचाने के लिए खुद को भी तो टूटने से बचाना जरूरी है। अगर आपको लगता है कि अपनी बात रखने से या अपने मन की चाहना करने से हम परिवार को या लोगों को खो देंगे तो याद रखिए एक बात–हर वह व्यक्ति जिसे आप खोते हैं वह आप की हानि है, ऐसा आप सोचते हैं।  कई बार ऐसे लोगों को खोना, उनसे दूर होना हमारे लिए, हमारी जिंदगी के लिए एक सकारात्मक पहलू बन जाता है।  तो जिंदगी में कुछ नयापन चाहते हैं कुछ इनोवेटिव करना चाहते हैं तो अपने अंदर की ऊर्जा को, अपने अंदर की बेचैनी को, उत्साह को यूं न जाया होने देना चाहिए क्योंकि कोई आएगा मुझे रास्ता दिखाएगा या मेरा मार्गदर्शन करेगा या मेरा सहारा बनेगा, नहीं।  लीक को तोड़ो, आदर्श बनो पर इतने नहीं कि लोग आपकी भावनाओं के साथ खेलने लग जाएं। ‌ तोड़ दो उन नियमों को जो आपको आप नहीं बने रहने देते हैं।
         दुष्यंत कुमार ने भी कहा है कि
           ” देखिए उस तरफ उजाला है, 
            जिस तरफ रोशनी नहीं जाती।”
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