अज्ञानता और आंतरिक शुद्धता इंसान के स्वभाव का सही आकलन प्रदर्षित करता है

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बब्बन कुमार सिंह।
इंसान अच्छे-बुरे स्वभाव के साथ जन्म लेता है। अज्ञानता से बुरे स्वभाव का पोषण होता है जबकि आंतरिक शुद्धता से अच्छे स्वभाव में वृद्धि होती है। दो ध्रुवों पर खड़े ये स्वभाव धीरे-धीरे हमारे शरीर पर भी कब्जा कर लेते हैं। हालांकि बुरी आदतें आसानी से ज्यादा से ज्यादा संसाधनों को अपने पक्ष में कर लेती हैं। इस काम में आतंरिक-बाह्य प्रकृति भी भी बुरे स्वभाव का समर्थन करती रहती है। इसीलिए इस दुनिया में रावण बनना बहुत आसान है। लेकिन जो प्रकृति आरंभिक चरणों में बुरी आदतों का कदम दर कदम समर्थन कर रही होती है वही एक समय के बाद अचानक साथ छोड़ देती है। इसीलिए आरंभिक चरणों में बुरी आदतों का कदम दर कदम समर्थन कर रहे बाहरी दुनिया के अपने लोग बुरे लोगों का साथ छोड़ जाते हैं पर अपने अहंकार में दुष्ट लोग अपनी कमियां देख नहीं पाते और रावण की तरह उनका पतन हो जाता है।

दूसरी ओर अच्छी आदतों वाले लोग लगातार प्रकृति का समर्थन पाते रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें प्रकृति से कितना लेना है। अगर कोई गलती करते हैं तो प्रारंभिक दौर से ही प्रकृति उन्हें दंडित कर उस दिशा में बढ़ने से रोक देती है। हालांकि इसके कारण आरम्भिक दौर में अच्छे लोग दुनिया की नजर में असफल साबित होते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। राजा दशरथ जब उन्हें कच्ची उम्र में ही राजगद्दी देना चाहते थे तो प्रकृति ने रानी केकई के माध्यम से न केवल उन्हें रोक दिया बल्कि उनके चहेते राम को 14 वर्ष के लिए जंगल भिजवा दिया। अगर राम मुख्यधारा के समाज से बाहर नहीं जाते व जीवन की वास्तविकताओं का सामना न किया होता वे मुख्यधारा के समाज में आदर्श राजा के रूप में नहीं जाते। बाल्मीकि ने अपने रामयण में राम के आदर्श राजा के रूप को ही सामने रखा है। उत्तर के समाज ने उन्हें भगवान बना दिया अन्यथा वे मर्यादा पुरुषोत्तम व आदर्श राजा के अलावा अन्य उदाहरण के रूप हमारे सामने नहीं होते!

ये सर्वकालिक सच्चाई है किसी एक काल की नहीं। इसीलिए हमारे तुलसी रामायण व पुराणों में भी प्रत्येक कल्प में राम की मौजूदगी की बात दर्ज है।

अन्य कालों की तरह आज का समाज भी राम-रावण के द्वंद से गुजर रहा है और हम भी अपने स्वभाव के अनुसार अपने-अपने राम व रावण का अनुसरण करने के लिए अभिशप्त हैं।

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