बुत और idol को प्रतिमा नहीं कहा जा सकता

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 2 नवंबर। हर शब्द का एक संस्कार और एक इतिहास और धर्म होता है। जो यह कहते हैं कि शब्दों का धर्म नहीं होता, वह यह भूल जाते हैं कि हर शब्द एक सांस्कृतिक अवधारणा से जन्म लेता है, और वह सांस्कृतिक अवधारणा किसी न किसी धर्म या धार्मिक विश्वास से ही विकसित होती है। अत: लगभग हर संज्ञात्मक शब्द किसी न किसी अवधारणा का ही प्रतिबिम्ब होता है। आज हम उस शब्द के विषय में बात करेंगे जिसके कारण पिछले कई दिनों से हंगामा हुआ था, जो फैज़ की उस नज़्म में है:

जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से

सब बुत उठवाए जाएँगे 

अर्थात बुत, जिसे अनुवादक सहज मूर्ति या प्रतिमा के रूप में अनुवाद कर देते हैं। परन्तु एक प्रश्न ठहर कर सोचने का है, कि क्या वास्तव में बुत और idol का अर्थ प्रतिमा से लिया जा सकता है? क्या मजहबी तहजीब में प्रयोग किए जा रहे बुत को जीवंत हिन्दू धर्म की अवधारणा प्रतिमा के लिए प्रयोग किया जा सकता है?

यह समझना आवश्यक है कि जो बुत है वह प्रतिमा नहीं है, जो स्टैचू या आइडल है वह प्रतिमा नहीं है! कविता में बुत का अर्थ प्रतिमा नहीं है! बुत का मतलब क्या है, बुत परस्ती का मतलब क्या है और बुत परस्त का मतलब क्या है? शैतान के बुत पर पत्थर मारे जाते हैं! बुत को शैतान माना जाता है या फिर प्रेमिका के उस रूप को बुत कहा जाता है जो हिल डुल नहीं रही है या जबाव नहीं दे रही है, आइये कुछ पंक्तियाँ बुतों के विषय में पढ़ते हैं

वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया

जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया

हफ़ीज़ जालंधरी

वो दिन गए कि ‘दाग़’ थी हर दम बुतों की याद

पढ़ते हैं पाँच वक़्त की अब तो नमाज़ हम

दाग़ देहलवी

(अर्थात बुतों की याद दाग थी और अब नमाजी हो गए हैं अर्थात दाग और शैतान त्याग कर मुसलमान हो जाना!)

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं राहत

हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

राहत इन्दौरी

यह कुछ शायरी हैं जो बुत पर हैं, बुत का अर्थ या तो शैतान के अर्थ में है या फिर जिसमें जान न हो! कमोबेश यही अर्थ idol या statue का है। cambridge डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ है an object made from a hard material, especially stone or metal, to look like a person or animal:

एवं ईसाई रिलिजन में भी idol को शैतान ही माना जाता है एवं idol की पूजा करने वाले व्यक्ति को ही नहीं बल्कि देश को ही नष्ट हो जाना चाहिए, ऐसा उनका मानना है।

परन्तु क्या यही अर्थ हमारे समाज में प्रतिमा का है? हमारे यहाँ पर प्रतिमा का अर्थ है प्रतिमान! अर्थात हमने भावों को जीवंत किया है। हमारे यहाँ स्त्री को सौन्दर्य की प्रतिमा माना गया है, हमारे यहाँ स्त्री को ममता की प्रतिमा माना गया है! पत्थरों में प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत वह मात्र पत्थर नहीं रह जाता, उसमें प्रवाह होता है, उसमें हमारी भक्ति और शक्ति होती है। हर वर्ष माँ हमें प्रतिमा रूप में स्नेह देने आती हैं। वह बुत नहीं हैं और प्रेम भी हमारे यहाँ बुत नहीं है! प्रेम प्रतिमा है, जिसमें जीवन प्राण हैं।

गवान श्री राम ने जब अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था, तब उन्होंने माँ सीता की स्वर्ण प्रतिमा ही स्थापित की थी, एवं उस प्रतिमा को ही सीता माता मानकर यज्ञ किया था। वह प्रतिमा थी, जिसमें सीता माता का प्रतिमान समा गया था एवं एक वह प्रतिमा थी जिसने मीराबाई को प्रभु श्री कृष्ण की अनन्य भक्त बना दिया, एक प्रतिमा जिसमें कान्होपात्रा समा गईं, एक मूर्ति जिसमें अक्क महादेवी समा गईं!

वह जीवंत थीं! एक मूर्ति श्री राम की, जो नन्हे बालक हैं, जिनके लिए घर का मुकदमा लड़ा गया। कैसे कह देंगे कि बुत हैं वह? नहीं बुत नहीं प्रतिमा की संस्कृति है हमारी!

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है,

यह गाना भूल जाइए क्योंकि हमारे यहाँ तो पत्थर में प्राण हैं,

पत्थर की मूरत से मोहब्बत ही हो सकती है, परन्तु प्रेम तो प्रतिमा से होगा!

इसलिए अपने हर शब्द को अत्यंत सावधानी से चुनिए, अपने लेखन में, अपनी कविता में! हम बुत नहीं हैं, हम काफ़िर नहीं हैं! हमारी प्रतिमाओं में स्पंदन हैं, वह जीवंत हैं!

हर भाषा की अपनी एक पहचान होती है और हम जो भाषा प्रयोग करते हैं, हमारे संस्कार और सोच वैसी ही हो जाती है, इसलिए बुत, प्रतिमा और स्टेचू तीन अलग अलग संस्कृति के शब्द हैं, उनमें अंतर समझने की आवश्यकता है!

और एक और गाना हम गुनगुनाते हैं

“एक बुत बनाऊंगा तेरा और पूजा करूंगा,

मर जाऊंगा प्यार अगर मैं दूजा करूंगा!”

बुत से प्यार नहीं होता तभी माशूका को तब बुत कहा गया है जब वह इश्क का जबाव नहीं देती!

पूजा प्रतिमाओं की होती है क्योंकि उनमें प्राण प्रतिष्ठा होती है।

अंत में

वह हमें क्या क्या कहते रहे, और हम सुनते रहे,

हम भाषाओं से प्यार करते थे और करते रहे,

वह हमें मारते गए भाषाओं से ही लगातार,

और हम अपने शब्दों को बलिदान करते रहे!

पर दुर्भाग्य यही है कि लोग बुत, स्टेचू और प्रतिमा तीनों को समानार्थी मानते हैं, इसे अलग अलग ही मानना है और बुत को कभी भी प्रतिमा के लिए प्रयोग न किया जाए।

साभार- HINDUPOST.IN

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