उत्तराखंड: छत की जगह एक पतला सा तिरपाल और बिस्तर की जगह मवेशियों का चारा…ये है इस गांव के लोगों की जिन्दगी
समग्र समाचार सेवा
देहरादून, 28मई। उत्तराखंड में एक अमानवीय तस्वीर सामने आई जिसे देख हर कोई हैरान है। जहां एक तरफ देश में प्रगति और अच्छें दिन की बात की जा रही है वहीं छत की जगह एक पतला सा तिरपाल और बिस्तर की जगह मवेशियों का चारा…जानवरो की तरह जिंदगी बीता रहें है वन गुज्जर। कोविड-19 के नाम पर छीने गए बुनियादी अधिकार पर हाई कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को फटकार भी लगाई है। अगर कोई नियम संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, तो? यही सवाल तब खड़ा हुआ जब उत्तराखंड में एक अमानवीय तस्वीर सामने आई. छत की जगह एक पतला सा तिरपाल और बिस्तर की जगह मवेशियों का चारा… इन हालात में वन गुज्जरों के 20 परिवारों को करीब एक महीना गुज़ारना पड़ा क्योंकि कोविड-19 महामारी का हवाला देकर गोविंद वन्यजीव अभयारण्य में इन्हें प्रवेश देने से रोक दिया गया। इस मामले में मंगलवार को हाई कोर्ट ने सरकार और वन विभाग को असंवेदनशील बताते हुए फटकार लगाई.
हाई कोर्ट ने सरकार और वन विभाग की आलोचना करते हुए कहा कि मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और फ़ौरन इस मामले में उचित कदम उठाते हुए इन परिवारों को आने जाने की आज़ादी दी जाए. एक रिपोर्ट की मानें तो बेंच ने उत्तरकाशी ज़िले के कलेक्टर मयूर दीक्षित और अभयारण्य डिप्टी डायरेक्टर कोमल सिंह को आदेश दिए कि प्रतिबंधित किए गए परिवारों के कोविड टेस्ट करवाए जाएं और निगेटिव रिपोर्ट होने पर उन्हें नागरिकों की तरह आज़ादी दी जाए।
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ‘आप इंसान के साथ जानवर से भी बदतर सलूक नहीं कर सकते… वो जानवर नहीं हैं. आपकी और हमारी तरह ही वो भी इंसान हैं और उनके पास भी आपकी और हमारी तरह ही मौलिक अधिकार व मानवाधिकार हैं। कोर्ट ने फौरन इन परिवारों के हक बहाल करने के निर्देश दिए।
मामले कोर्ट तक कैसे पहुंचा?
एक एक्टिविस्ट अर्जुन कसाना ने हाई कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल करते हुए कोर्ट को सूचित किया था कि वन गुज्जरों के साथ कैसा अमानवीय सलूक हो रहा है. इस एफिडेविट के साथ एक तस्वीर भी लगाई गई थी, जिसमें प्रतिबंधित परिवारों का एक बच्चा मरी हुई भैंस के साथ सोता हुआ दिख रहा था. कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए अमानवीयता पर हैरानी जताते हुए कहा ‘डिप्टी डायरेक्टर के टस से मस न होने पर ताज्जुब होता है.’