
*कुमार राकेश
ये क्या हो गया अपने देश भारत को ? देखते देखते सब कुछ तबाह होता जा रहा है.जनता अपनी जिद में ,सरकार अपने रौ में .कोरोना अपनी गति में .सब कुछ गडबड हो गया है .सब भ्रमित हो गए हैं .अचानक कोरोना नियंत्रित होते होते अनियंत्रित कैसे हो गया? कोरोना तो दलगत भावना से ऊपर उठकर काम कर रहा है.उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना संक्रमित तो सपा के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी संक्रमित .किसी को नहीं बख्शा इस कोरोना ने.
आखिर कहाँ कमी रह गयी? कौन जिम्मेदार है ? अब तो हमारे पास टीका भी हैं .11.43 करोड़ से ज्यादा लोग टीकाकृत हो चुके हैं.टीकाकरण कार्य अभी जारी है.आगे भी जारी रहेगा.साथ ही कोरोना से लड़ाई भी.सब एक दुसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं .परन्तु खुद सावधानियां नहीं बरत रहे हैं .क्यों ? आखिर कोरोना और चुनावी राजनीति का रिश्ता क्या कहलाता है ? कौन परिभाषित करेगा इस रिश्ते को ?
मुझे लगता है कि राजनेताओ के सत्ता लोभ ने देश को कोरोना कि इस भयावह स्थिति में लाकर छोड़ दिया है.ज्यो ज्यो चुनाव होता गया ,कोरोना का प्रतिशत बढ़ता गया.कोरोना काल में पहला चुनाव बिहार में हुआ.कोरोना से निपटने और उसे निपटाने की तमाम नौटंकी की गयी .जैसे तैसे चुनाव हो गए .चुनाव परिणाम भी आ गया.फिर से नीतीश बाबु की सरकार बन गयी.कोरोना चर्चा समाप्त.फिर मार्च के अंतिम सप्ताह से पांच राज्यों के शुरू होने थे.उसके तीन महीनो पहले से चुनाव प्रचार जोर्रो पर रहा.क्या भाजपा,कांग्रेस ,तृणमूल कांग्रेस,अन्नाद्रमुक,द्रमुक,वाम दल सभी चुनावी सागर में जमकर डुबकी लगा रहे थे.खूब गोता भी लगाया.पर वो कम डूबे.डूबी तो बेचारी भोली भाली जनता.जैसे अब तक बेवकूफ बनती आ रही थी.फिर से महामूर्ख बनी और बनाई गयी.राजनेताओ को तो राज सत्ता मिली और मिलने वाली है.लेकिन बेचारी भावुक जनता को क्या मिला.खाली-पीली कोरोना.
यदि हम आंकड़े देखे तो सब कुछ समझ में आता है. 5 राज्यों में तमिलनाडु.पश्चिम बंगाल.असम,केरल और पुडुचेरी में चुनाव था.पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों के विधान सभा चनाव सम्पन्न हो गए.कोरोना के चौतरफा मार के बीच फंस गयी बेचारी पश्चिम बंगाल की जनता.अभी वहां तीन फेज के चुनाव होने हैं .अंतिम चरण २९ अप्रैल को हैं.अभी तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीनो फेज के चुनाव को एक ही चरण में करवाने की मांग चुनाव आयोग से कर डाली.लेकिन शायद उनकी नहीं सुनी गयी.क्यों सुनी जाये.कहते हैं, उनका पाप ही उनके सर पर चढ़कर उनके खिलाफ बोल रहा है.
जनवरी 2021 के अंतिम सप्ताह में मै भी पश्चिम बंगाल के एक चुनावी दौरे पर था.चुनावी रैलियों में कोरोना निर्देश की जिस तरह धज्जियाँ उड़ाई जा रही थी,मत पूछिए.एक रैली में तो मैंने ये सुना .ये कोरोना पीएम मोदी ने लाया है,लेकिन दीदी के बंगाल में कोरोना कुछ नहीं कर सकेगा.और आज दीदी चुनाव आयोग से गुहार लगा रही है कोरोना के कारण.सच में दीदी,ओ दीदी ,क्या हो गया आपको .वैसे कोरोना की धज्जियाँ सभी नेताओ की रैलियों में दिखाई पड़ी .शायद इसीलिए कोरोना ने भी सर्व दलीय संभव की वजह से सभी दलों के नेताओ पर एक साथ हमला किया है.क्या भाजपा ,क्या सपा.बंगाल से एक कांग्रेस उम्मीदवार रियाजुल हक तो अल्लाह के फज़ल से कोरोना निर्देश का पालन नहीं कर रहे थे,परन्तु वे अपने अल्लाह के प्यारे हो गए.कई लोगो ने उन्हें समझाया भी था.नहीं माने थे.कहते हैं कि कोरोना किसी कि सत्ता कबूल नहीं करता ,न ही करना चाहता.सिर्फ स्व नियंत्रण ही कोरोना का सबसे बड़ा दुश्मन है.जिसमे मास्क,दूरी और सफाई का कड़ाई से पालन है कोरोना को भगाने के लिये है जरुरी.
इन सभी राज्यों में चुनाव के होते होते कोरोना के आंकड़े बढ़ते गए.वैसे तो वो पहले भी बढ़ रहा था ,लेकिन कई सरकारी एहसानों से दबी मीडिया के एक वर्ग ने उसे उस ढंग से प्रचारित नहीं किया ,जैसे करना चाहिए था.
धर्म और कोरोना का भी एक रिश्ता है ,वो है दुश्मनी का.यदि आप धार्मिक नियमो का कड़ाई से पालन करे साथ में कोरोना को भगाने का ,तब आप सुरक्षित बच सकते हैं.जैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने हरिद्वार के कुम्भ मेले में किया.बिना कोरोना निगेटिव प्रमाण पत्र के किसी भी यात्री को हरिद्वार प्रवेश कि अनुमति ही नहीं दी.करीब दो लाख से ज्यादा तीर्थ यात्रियों को बिना स्नान के वापस बैरंग भेज दिया गया.किसी बेशर्म ने कुम्भ और मरकज़ की तुलना कर दी थी.परन्तु वे सत्य से दूर थे.उन्हें अभी भी शर्म नहीं आती कि देश भर में जान बूझकर अपने मुस्लिम समुदाय कि मदद से कोरोना फ़ैलाने के लिए दोषी मौलाना साद अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है ,क्यों ? केंद्र और दिल्ली सरकार उस मसले पर चुप क्यों है ?यदि चुप नहीं है तो मौलाना साद अभी तक पुलिस की पकड़ से बाहर क्यों है ?मीडिया भी चुप क्यों हैं ?ऐसे कई सवाल है आज भी जिंदा हैं .
कोरोना नियत्रंण को लेकर केंद्र सरकार व राज्य सरकारो की भूमिका को भी सराहनीय नहीं कहा जा सकता .वैसे मेरे विचार से सरकार से ज्यादा आम जनता ज्यादा जिम्मेदार है.सरकार तो एक व्यवस्था बनाती है.पालन तो आम जनता को करना पड़ता है.इस बारे में मेरे को सार्वजनिक स्थलों पर कई प्रकार के मिश्रित अनुभव हुए हैं .महाराष्ट्र,दिल्ली ,यूपी कि हालत पहले से ज्यादा खराब हो रहे हैं .
देश में पिछले 24 घंटो में में 2 लाख से ज्यादा मामले रिपोर्ट हुए हैं.परन्तु वास्तविक आंकड़े ज्यादा बताये जा रहे हैं .लखनऊ का हाल तो बेहाल हो गया.पिछले 14 अप्रैल को स्थानीय वैकुण्ठ धाम में लोगो के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बचे थे,तो कई पार्को को श्मशान स्थलों में बदल दिया गया.तमिलनाडु में पिछले एक महीनो में हजारो केस बढ़ गए.असम का भी यही हाल है.बिहार भी बेहाल है.छतीसगढ़ की स्थिति भी भयावह है.दिल्ली में तो 15 अप्रैल से वीकेंड कर्फ्यू लागो कर दिया गया हैं.परन्तु सिनेमा हाल या साप्ताहिक बाजारों को खोलकर क्या सन्देश दिया गया है वो तो लोगो को भ्रमित करने में माहिर मुख्यमंत्री केजरीवाल ही जाने.
वैसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा है कि कोरोना नियत्रंण के लिए कम से कम 2-3 सप्ताह का लॉकडाउन लगा दिया जाये.परन्तु सरकार ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है .केंद्र सरकार को भी कम से कम तीन सप्ताह के लॉक डाउन के लिए विचार करना चाहिए.महाराष्ट्र ने शाम 8 बजे से सुबह 7 बजे तक का कर्फ्यू लागू कर दिया हैं
कोरोना पर काबू पाने के लिए इन सबसे आगे हमको ,आपको सबको सजग होने की जरुरत हैं.सजग करना पड़ेगा.स्वयं के साथ आसपास को .घर भी .बाहर भी.सरकार पर भरोसा कम.स्वयं पर भरोसा ज्यादा करना पड़ेगा.सरकार कुछ भी कर ले .यदि आप नियम-कानूनों को नहीं मानेगे तो कोई क्या कर लेगा .वैसे अब हमारे पास टीका भी है.परन्तु सबसे बड़ी दवाई ,स्वयं से कड़ाई.तभी होगी हम सबकी भलाई.
*कुमार राकेश