बांग्लादेश में हिंदुओं पर ईशनिंदा के नाम पर बढ़ता अत्याचार

6 महीनों में 71 मामले, नाबालिग भी निशाने पर

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  • जून से दिसंबर 2025 के बीच ईशनिंदा के आरोपों में हिंदुओं के खिलाफ 71 मामले दर्ज
  • 30 से अधिक जिलों में हिंसा, 15–17 वर्ष के नाबालिग भी आरोपों में फंसे
  • सोशल मीडिया पोस्ट के बहाने भीड़ हिंसा और घरों में तोड़फोड़
  • मानवाधिकार संगठनों ने इसे सुनियोजित उत्पीड़न का पैटर्न बताया

समग्र समाचार सेवा
ढाका | 30 दिसंबर: बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों को आधार बनाकर हो रही हिंसा ने गंभीर चिंता खड़ी कर दी है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते छह महीनों में सामने आए मामलों ने यह साफ कर दिया है कि हिंदू समुदाय को एक व्यवस्थित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2025 से दिसंबर 2025 के बीच ईशनिंदा से जुड़े कम से कम 71 मामले दर्ज किए गए। ये घटनाएँ केवल किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि देश के 30 से अधिक जिलों में फैल चुकी हैं।

किन इलाकों में सबसे ज्यादा घटनाएँ

रिपोर्ट में रंगपुर, चांदपुर, चटगांव, दिनाजपुर, लालमोनिरहाट, सुनामगंज, खुलना, कोमिल्ला, गाजीपुर, टांगाइल और सिलहट जैसे जिलों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, इन इलाकों में बार-बार सामने आ रही घटनाएं अल्पसंख्यकों की बढ़ती असुरक्षा को उजागर करती हैं।

भीड़ हिंसा की भयावह तस्वीर

रिपोर्ट में सबसे गंभीर घटना 18 दिसंबर 2025 की बताई गई है। मयमनसिंह जिले के भालुका क्षेत्र में ईशनिंदा के आरोप लगाकर दीपू चंद्र दास नामक युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। आरोप है कि हत्या के बाद उसके शव को आग के हवाले कर दिया गया। इस घटना ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी।

एक आरोपी, पूरा मोहल्ला सजा का शिकार

रिपोर्ट के अनुसार, कई मामलों में एक व्यक्ति पर लगे आरोप का खामियाजा पूरे हिंदू मोहल्ले को भुगतना पड़ा। रंगपुर के बेटगारी यूनियन में 17 वर्षीय रंजन रॉय की गिरफ्तारी के बाद भीड़ ने 22 हिंदू घरों में तोड़फोड़ की। इसी तरह बरिशाल, चांदपुर और खुलना में भी गिरफ्तारी के बाद विरोध मार्च और हिंसा देखी गई।

नाबालिगों तक पहुँचा आरोपों का दायरा

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि ईशनिंदा के मामलों में फंसाए गए लोगों में बड़ी संख्या नाबालिगों की है। 15 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चों पर आरोप लगाए गए और उन्हें हिरासत का सामना करना पड़ा। अधिकांश मामलों में आरोप सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर लगाए गए, जिनके फर्जी या हैक किए गए होने की बात कही गई।

शिक्षा संस्थान भी बने निशाना

ईशनिंदा के आरोपों का असर शिक्षा व्यवस्था पर भी पड़ा है। कई विश्वविद्यालयों में हिंदू छात्रों को बिना तकनीकी जाँच के निलंबित या निष्कासित कर दिया गया। कुछ मामलों में छात्रों को पुलिस हिरासत और पूछताछ का सामना भी करना पड़ा, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय में भय का माहौल और गहरा गया।

सुनियोजित पैटर्न का आरोप

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह घटनाएँ  किसी संयोग का नतीजा नहीं हैं। पहले सोशल मीडिया पर आरोप लगाए जाते हैं, फिर भीड़ को उकसाया जाता है और अंत में पुलिस पर दबाव बनाकर कार्रवाई करवाई जाती है।

कार्यकर्ताओं के अनुसार, ईशनिंदा के आरोप अब अल्पसंख्यकों को डराने, चुप कराने और सामाजिक रूप से अलग-थलग करने का हथियार बन चुके हैं।

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