खालिदा जिया के निधन से किस ओर पलटेगा बांग्लादेश चुनाव?

खालिदा जिया के बाद बांग्लादेश की राजनीति: सहानुभूति लहर या कट्टरपंथ की बढ़त?

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  • खालिदा जिया के निधन से बांग्लादेश की चुनावी राजनीति में बड़ा शून्य पैदा हुआ
  • बेटे तारिक रहमान को सहानुभूति वोट मिलने की संभावना
  • अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने पर मुकाबला और जटिल
  • जमात-ए-इस्लामी के उभार से क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका

समग्र समाचार सेवा
ढाका, 30 दिसंबर: बांग्लादेश की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख खालिदा जिया के निधन ने चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव अब केवल सत्ता परिवर्तन का सवाल नहीं रह गए हैं, बल्कि यह तय करेंगे कि बांग्लादेश किस वैचारिक दिशा में आगे बढ़ेगा।

यह पहली बार होगा जब चुनावी मैदान में “दो बेगमों” की पारंपरिक राजनीति नहीं दिखेगी। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग चुनावी दौड़ से बाहर है, और अब पूरा फोकस BNP, उसके नेतृत्व और संभावित सहयोगियों पर टिक गया है।

तारिक रहमान: विरासत और जिम्मेदारी का इम्तिहान

खालिदा जिया के निधन के साथ ही BNP की कमान पूरी तरह उनके बेटे तारिक रहमान के हाथों में आ गई है। 17 वर्षों के राजनीतिक निर्वासन के बाद उनकी वापसी पहले ही पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भर चुकी थी। अब मां के जाने से भावनात्मक जुड़ाव और सहानुभूति का तत्व भी जुड़ गया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सहानुभूति वोट में बदल सकती है, खासकर ग्रामीण इलाकों और उन सीटों पर जहां खालिदा जिया की व्यक्तिगत पकड़ मजबूत रही है। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है। तारिक को सिर्फ “उत्तराधिकारी” नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद राष्ट्रीय नेता के रूप में खुद को साबित करना होगा।

बोगरा की विरासत और प्रतीकात्मक राजनीति

बोगरा क्षेत्र BNP के लिए केवल एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतीक है। यही इलाका पार्टी संस्थापक जियाउर रहमान की पहचान से जुड़ा रहा है। खालिदा जिया ने यहीं से कई बार जीत दर्ज कर अपनी राजनीतिक मजबूती दिखाई थी। अब सवाल यह है कि क्या यह विरासत तारिक रहमान को उसी मजबूती के साथ आगे बढ़ने में मदद करेगी या नहीं।

जमात की भूमिका: संतुलन बिगाड़ने वाला कारक?

चुनाव की दूसरी बड़ी धुरी है जमात-ए-इस्लामी। अंतरिम सरकार के दौरान प्रतिबंध हटने के बाद जमात फिर से खुलकर सक्रिय हुई है। इसके साथ ही धार्मिक ध्रुवीकरण और हिंसक घटनाओं की आशंकाएं भी बढ़ी हैं।

भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता यही है कि अगर मुख्यधारा की राजनीति कमजोर पड़ी, तो कट्टरपंथी ताकतों को अप्रत्यक्ष बढ़त मिल सकती है। हालांकि तारिक रहमान ने सार्वजनिक रूप से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द की बात कही है, लेकिन जमीनी स्तर पर गठबंधन राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह अभी साफ नहीं है।

आगे की राह

खालिदा जिया का जाना केवल एक नेता का अंत नहीं, बल्कि एक पूरे राजनीतिक अध्याय का समापन है। अब बांग्लादेश का चुनाव सहानुभूति, विरासत, संगठन क्षमता और वैचारिक संघर्ष—इन चारों के बीच तय होगा। यह देखना अहम होगा कि देश स्थिर लोकतांत्रिक रास्ता चुनता है या फिर अस्थिरता और कट्टरता की ओर बढ़ता है।

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