पूनम शर्मा
हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने अपनी क्लास VII सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक “Exploring Societies: India and Beyond – Part 2” जारी की है। यह सिर्फ एक नई किताब नहीं, बल्कि हमारी इतिहास-शिक्षा में एक बड़ा बदलाव है। यह बदलाव इतिहास को सिर्फ घटनाओं के ढेर के रूप में याद करने से हटाकर वस्तुनिष्ठ, व्यापक और तथ्य आधारित दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करता है। इसे छात्रों को सिर्फ तथ्यों का बोझ देने के बजाय, इतिहास को समझने, विचार करने और आत्मसात करने का एक अवसर माना जा रहा है।
पहले की पाठ्यपुस्तकों में मध्यकालीन आक्रमणों, राजनीतिक संघर्षों और संस्कृति के टकराव जैसे विषयों का चित्रण अक्सर संकीर्ण या आंशिक रूप में किया गया था। कई बार यह विवरण इतना सामान्य था कि विद्यार्थी न तो इतिहास की गंभीरता समझ पाते थे और न ही उसकी जटिल परतों को महसूस कर पाते थे। नई पाठ्यपुस्तक इस सोच को तोड़ते हुए इतिहास को एक समग्र, विविध और साक्ष्य-आधारित रूप में प्रस्तुत करती है।
इतिहास को ठोस प्रमाणों के साथ समझाना
इस नई पाठ्यपुस्तक की सबसे खास बात यह है कि यह इतिहास को फैक्ट-चेक्ड, प्रासंगिक और स्पष्ट ढंग से प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए, अब मह्मूद गज़नी के बारहवीं सदी के 17 बार के आक्रमणों का विस्तृत विवरण मिलता है—जिसमें केवल युद्ध विवरण नहीं बल्कि गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की विनाश, मंदिरों के खिलाफ हिंसा, और सामजिक-सांस्कृतिक प्रभाव भी शामिल हैं। इसके साथ ही यह बताया गया है कि इन मंदिरों के पुनर्निर्माण में लोगों ने कैसे योगदान दिया और वह प्रक्रिया क्या थी।
पहले के पाठ्यक्रमों में महमूद गज़नी को सिर्फ एक संक्षिप्त पैराग्राफ में शामिल किया जाता था, लेकिन अब उसे छह पृष्ठों पर विस्तृत रूप में पढ़ाया जाता है—जिससे विद्यार्थी उस समय की परिस्थितियों, सामाजिक प्रभाव और ऐतिहासिक परिणामों को गहराई से समझ पाते हैं।
इसी तरह, बख्तियार खिलजी, कुतुबुद्दीन ऐबक, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात शिक्षण संस्थानों के विनाश का विशद विवरण, उनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व तथा इन घटनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों की जानकारी भी दी गई है। छात्रों को यह दिखाया गया है कि इतिहास सिर्फ तारीखों और नामों का समूह नहीं है, बल्कि समाजिक चेतना, संस्कृति और जीवन के बहुत गहरे स्तरों को प्रभावित करने वाली घटनाओं का परिणाम है।
इतिहास का संतुलित दृष्टिकोण
नई पाठ्यपुस्तक सिर्फ आक्रान्ताओं के अत्याचारों पर ध्यान केंद्रित नहीं करती, बल्कि भारत की प्राचीन, मध्यकालीन और क्षेत्रीय विविधता को भी उभारती है। जब पाठ्यक्रम में काकतीय, पल्लव, होयसला, पूर्वी गंग, बृह्मपाला जैसे स्थानीय राजवंशों के योगदान को समान सम्मान मिलता है, तो छात्र यह समझते हैं कि भारतीय इतिहास केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश की विविध परतों में फैला हुआ है।
इतिहास के साथ-साथ, यह पाठ्यपुस्तक भवन निर्माण, साहित्य, दर्शन और भक्ति आंदोलन जैसे विषयों को भी जोड़ती है। प्राचीन मंदिर, स्थापत्य कला, अलवर-नयनार संतों के योगदान और सामाजिक-आध्यात्मिक कारणों को समझाने से विद्यार्थी भारतीय सामाजिक संरचना की व्यापक छवि को आत्मसात करते हैं।
सांस्कृतिक सहिष्णुता और वैश्विक दृष्टिकोण
एक अन्य महत्वपूर्ण पहल यह है कि अब पाठ्यपुस्तक में “वसुधैव कुटुम्बकम” का विचार भी शामिल किया गया है—इसका मतलब है “संसार एक परिवार है।” अब विद्यार्थी यह नहीं सीखेंगे कि भारत सिर्फ शासकों और युद्धों का देश है, बल्कि यह भी जानेंगे कि कैसे यहां अलग-अलग समुदाय जैसे यहूदी और पारसी, अत्याचार से भागकर आए और यहां फल-फूल सके।
इस पाठ्यपुस्तक में भारत के पड़ोसी देशों के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सम्बन्धों को भी समझाया गया है। इससे छात्रों को यह ज्ञान मिलता है कि आज के भू-राजनीतिक रिश्ते भी इतिहास, संस्कृति और साझा अनुभवों से कितना गहरा जुड़े हैं।
सारांश
संक्षेप में, NCERT की यह नई पाठ्यपुस्तक इतिहास को बिना किसी पूर्वाग्रह, कम से कम विवादास्पद मान्यताओं और अधिक से अधिक प्रमाणों पर आधारित रूप में प्रस्तुत करती है। यह छात्रों को सिर्फ जानकारी देने का काम नहीं करती, बल्कि उन्हें सोचने, समझने और इतिहास की विविधता और जटिलता को आत्मसात करने का मौका देती है।
ऐसे बदलाव से यह उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी इतिहास को आंखें बंद करके न तो श्रेष्ठ करे, न ही अवहेलना—बल्कि उसे एक संतुलित, तार्किक, और समग्र दृष्टिकोण से समझेगी।