हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति, लेखक विनोद कुमार शुक्ल का निधन
प्रयोगधर्मी और सहज लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध शुक्ल का रायपुर एम्स में 88 वर्ष की आयु में निधन, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने जताया शोक
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल का 88 वर्ष की आयु में निधन
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लंबे समय से बहु-अंग संक्रमण से पीड़ित थे, रायपुर स्थित एम्स में उपचार के दौरान अंतिम सांस
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने शोक व्यक्त कर साहित्यिक योगदान को बताया अमूल्य
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‘नौकर की कमीज’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसी कृतियों से हिंदी साहित्य को दी नई दिशा
समग्र समाचार सेवा
रायपुर | 24 दिसंबर: हिंदी साहित्य के प्रख्यात रचनाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर स्थित एम्स में उपचार के दौरान निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। लंबे समय से वे कई अंगों में संक्रमण से जूझ रहे थे और शाम 4:48 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि ज्ञानपीठ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का जाना हिंदी साहित्य जगत के लिए अत्यंत दुखद है। उन्होंने कहा कि शुक्ल का साहित्यिक योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि विनोद कुमार शुक्ल का निधन साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है और उनकी सादगीपूर्ण लेखन शैली उन्हें हमेशा जीवित रखेगी।
छत्तीसगढ़ से साहित्य तक का सफर
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ था। उन्होंने अध्यापन को पेशा बनाया, लेकिन अपना संपूर्ण जीवन साहित्य सृजन को समर्पित कर दिया।
पहली कविता से मिली पहचान
उनकी पहली कविता ‘लगभग जय हिंद’ वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। इसी रचना से हिंदी साहित्य में उनके उल्लेखनीय साहित्यिक सफर की शुरुआत हुई।
उपन्यासों ने दिलाई विशेष पहचान
उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं।
‘नौकर की कमीज’ पर 1979 में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मणि कौल ने फिल्म बनाई थी। वहीं ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सहजता और प्रयोगधर्मिता थी पहचान
विनोद कुमार शुक्ल की लेखन शैली प्रयोगात्मक होने के बावजूद अत्यंत सरल और सहज थी। वे रोजमर्रा के जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं को गहन संवेदना और अर्थपूर्ण कथ्य में पिरोने के लिए जाने जाते थे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान दिलाई और पाठकों में नई चेतना का संचार किया।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मान
वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके साथ ही वे छत्तीसगढ़ के पहले और ज्ञानपीठ से सम्मानित होने वाले 12वें हिंदी लेखक बने।
साहित्य में अमिट विरासत
हिंदी साहित्य में विनोद कुमार शुक्ल का योगदान अद्वितीय और अविस्मरणीय है। उनका निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी रचनात्मक विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।