पूनम शर्मा
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमेशा अंकों का खेल रहा है, लेकिन चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (SIR) से जो ताज़ा आंकड़े निकलकर आ रहे हैं, वे सत्ता के गणित को पूरी तरह बदलने का संकेत दे रहे हैं। सालों से विपक्ष “वैज्ञानिक धांधली” और “फर्जी मतदाताओं” का आरोप लगाता रहा है। अब, चुनाव आयोग की ड्राफ्ट रोल रिपोर्ट उन आरोपों को एक सांख्यिकीय आधार दे रही है, जो तृणमूल कांग्रेस (TMC) के वर्चस्व को हिला सकता है।
हटाने का गणित
आंकड़े चौंकाने वाले हैं। कुल 7.66 करोड़ मतदाताओं में से पहले चरण में ही 58 लाख से अधिक नामों को हटाने के लिए चिह्नित किया गया है। इसका विवरण किसी भी राजनीतिक दल के लिए चिंता का विषय है: 24 लाख मृत, 12 लाख गायब, और लगभग 20 लाख स्थानांतरित या डुप्लिकेट मतदाता।
लेकिन असली “झटका” अभी बाकी है। विशेष समीक्षक सुब्रत गुप्ता ने 1.34 करोड़ प्रविष्टियों को “संदिग्ध” या “तार्किक रूप से विसंगतिपूर्ण” करार दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह संख्या 1.7 करोड़ तक जा सकती है। यदि इनमें से 1.25 करोड़ नाम भी कट जाते हैं, तो पिछले चुनाव में TMC और BJP के बीच रहा 10% का अंतर पूरी तरह खत्म हो सकता है।
शहरी किलों पर खतरा
TMC के लिए सबसे बड़ी चिंता उसके शहरी गढ़ हैं। कोलकाता जैसे शहरों को कभी ममता बनर्जी का अभेद्य किला माना जाता था। हालांकि, SIR रिपोर्ट बताती है कि जोरासांको और चौरंगी जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में हर तीन या पाँच में से एक मतदाता का नाम काटा जा रहा है।
जमीनी हकीकत यह बताती है कि “डर का माहौल” बदल रहा है। पहले यह कहा जाता था कि तृणमूल के कार्यकर्ता अपार्टमेंट और हाउसिंग सोसायटियों में जाकर निवासियों को घर पर रहने की “सलाह” देते थे, जबकि उनका वोट “डाल दिया जाता था।” यह व्यवस्था स्थानीय बाहुबलियों के डर पर टिकी थी।
अब चुनाव आयोग ने एक मास्टरस्ट्रोक खेला है: हाउसिंग सोसायटियों के अंदर ही पोलिंग बूथ। जब मतदान केंद्र अपार्टमेंट की इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर होगा, तो स्थानीय दबंगों का नियंत्रण खत्म हो जाएगा। यदि शहरी मध्यम वर्ग और “खामोश मतदाता” बिना किसी डर के वोट डाल पाते हैं, तो कोलकाता और उसके आसपास के इलाकों के नतीजे रातों-रात पलट सकते हैं।
“बड़े भाई” की चाल
विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग की यह सख्ती “बड़े भाई” (केंद्र सरकार/ECI) के सक्रिय होने का संकेत है। 50 लाख से अधिक मतदाताओं को हटाना केवल एक प्रशासनिक सफाई नहीं है; यह उस पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त करना है जो ज्योति बसु के समय से चली आ रही थी—एक ऐसी प्रणाली जिसे तृणमूल ने विरासत में पाया और उसे और अधिक “कारगर” बनाया।
ममता बनर्जी को पिछले चुनाव में 2.74 करोड़ वोट मिले थे। यदि “संदिग्ध” नामों के हटने से उनके वोटों में बड़ी कमी आती है, तो 2026 में नबन्ना (सचिवालय) तक पहुँचने की राह बहुत कठिन हो जाएगी। बंगाल में जहाँ अक्सर चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होते हैं, चुनाव आयोग ने चुनाव से पहले ही एक ऐसा “शॉकर” दिया है जिसने सत्ताधारी खेमे की चिंता बढ़ा दी है।