भारत में 45.4 फीसदी लड़कियां नहीं जाती स्कूल

शीतकालीन सत्र में संसद को बताया गया कि प्री-स्कूल से 12वीं तक लगभग आधी लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं, कई बड़े राज्यों की स्थिति चिंताजनक।

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  • देश में औसतन 45.4 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जातीं।
  • महाराष्ट्र में सबसे खराब स्थिति, 66% लड़कियां शिक्षा से बाहर।
  • केरल, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर।
  • आंकड़े प्री-स्कूल से 12वीं तक के हैं, FY 2022–26 पर आधारित।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 17 दिसंबर: भारत में लड़कियों की शिक्षा को लेकर संसद के शीतकालीन सत्र में सामने आए आंकड़े
बेहद चिंताजनक हैं। एक लिखित प्रश्न के उत्तर में केंद्र सरकार ने बताया कि
देशभर में अब भी 45.4 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जातीं। यह स्थिति देश की
शैक्षिक प्रगति और सामाजिक बराबरी के प्रयासों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

सरकार द्वारा साझा किए गए ये आंकड़े प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12वीं तक की
छात्राओं से संबंधित हैं। रिपोर्ट पिछले पांच वित्तीय वर्षों
(FY 2022 से FY 2026) के आधार पर तैयार की गई है।
वर्ष 2025 और 2026 के आंकड़े अस्थायी बताए गए हैं, जिनमें आगे संशोधन संभव है।

महाराष्ट्र में सबसे खराब स्थिति

राज्यवार विश्लेषण में यह सामने आया है कि लड़कियों के स्कूल न जाने के मामले में
महाराष्ट्र की स्थिति देश में सबसे खराब है। राज्य में 66 प्रतिशत लड़कियां
स्कूल नहीं जातीं, जो राष्ट्रीय औसत 45.4 प्रतिशत से कहीं अधिक है।

राज्यवार स्कूल न जाने वाली लड़कियों का प्रतिशत

संसद में साझा किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार विभिन्न राज्यों में
लड़कियों की शिक्षा की स्थिति इस प्रकार है:

राज्य स्कूल न जाने वाली लड़कियों का प्रतिशत (%)
राष्ट्रीय औसत 45.4%
महाराष्ट्र 66%
हिमाचल प्रदेश 54.8%
जम्मू-कश्मीर 53.7%
मिजोरम 53.8%
ओडिशा 49.5%
उत्तर प्रदेश 47.2%
राजस्थान 46.2%
बिहार 45.7%
मध्य प्रदेश 37.8%
केरल 33.2%

केरल और मध्य प्रदेश का बेहतर प्रदर्शन

लड़कियों के स्कूल जाने के मामले में केरल अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर
प्रदर्शन करता नजर आया है। केरल में केवल 33.2 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से बाहर हैं।
मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 37.8 प्रतिशत दर्ज किया गया, जो राष्ट्रीय औसत से कम है।

वहीं राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में
लड़कियों के स्कूल न जाने की दर राष्ट्रीय औसत के आसपास बनी हुई है,
जो दर्शाता है कि इन राज्यों में शिक्षा तक पहुंच तो है, लेकिन
ड्रॉपआउट रोकने की चुनौती अभी भी बनी हुई है।

लड़कियों की शिक्षा बनी बड़ी चुनौती

विशेषज्ञों के अनुसार गरीबी, बाल विवाह, घरेलू जिम्मेदारियां,
सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं और स्कूलों तक पहुंच की कमी
लड़कियों के स्कूल न जाने के प्रमुख कारण हैं।
सरकारी योजनाओं के बावजूद जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन की कमी
इन आंकड़ों में साफ दिखाई देती है।

संसद में पेश किए गए ये आंकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि
लड़कियों की शिक्षा को लेकर केवल नीतियां बनाना ही नहीं,
बल्कि उनके प्रभावी क्रियान्वयन और सामाजिक सोच में बदलाव
भी उतना ही जरूरी है।

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