विरोध के बावजूद लोकसभा के एजेंडे में नया मनरेगा बिल, विपक्ष एकजुट

सरकार ने मनरेगा की जगह लाए गए “विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)” बिल को चर्चा और पारित कराने के लिए सूचीबद्ध किया, विपक्ष ने स्थायी समिति को भेजने की मांग की

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  • विपक्ष के विरोध के बावजूद नया मनरेगा बिल लोकसभा के एजेंडे में शामिल
  • मनरेगा की जगह “विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)” बिल पेश
  • 100 दिन की बजाय 125 दिन रोजगार की गारंटी का सरकार का दावा
  • महात्मा गांधी का नाम हटाने और केंद्र के योगदान घटने पर विपक्ष का कड़ा विरोध

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 17 दिसंबर: मनरेगा की जगह लाए गए नए रोजगार कानून को लेकर संसद में सियासी टकराव तेज हो गया है। विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने “विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)” बिल को आज लोकसभा के एजेंडे में शामिल कर दिया है। यह शीतकालीन सत्र का पहला बड़ा मुद्दा है, जिस पर लगभग सभी विपक्षी दल एकजुट दिखाई दे रहे हैं।

लोकसभा में हंगामा, स्थायी समिति की मांग

मंगलवार को बिल के इंट्रोडक्शन के दौरान लोकसभा में जोरदार हंगामा देखने को मिला। विपक्षी सांसदों ने नारेबाजी करते हुए इस बिल को संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की। उनका आरोप है कि सरकार बिना व्यापक चर्चा और सलाह के एक अहम सामाजिक कानून में बड़ा बदलाव करना चाहती है। हंगामे के बीच बिल पेश किया गया, जिसके बाद विपक्ष ने आज फिर संसद के भीतर और बाहर विरोध प्रदर्शन की तैयारी की है।

महात्मा गांधी का नाम हटने पर विवाद

नए बिल को लेकर सबसे बड़ा विवाद महात्मा गांधी के नाम को हटाए जाने पर है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जगह लाए गए इस कानून में गांधी जी का नाम नहीं है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वाम दलों ने इसे महात्मा गांधी का अपमान बताया है। विपक्ष का कहना है कि मनरेगा केवल एक योजना नहीं बल्कि गांधी जी के विचारों से जुड़ा सामाजिक सुरक्षा कानून था।

मंत्री की सफाई: गांधी के विचारों पर आधारित बिल

इन आरोपों को खारिज करते हुए ग्रामीण विकास मंत्री ने लोकसभा में कहा कि महात्मा गांधी उनके दिलों में बसते हैं और सरकार उनका पूरा सम्मान करती है। मंत्री ने कहा कि गांधी जी ग्राम स्वराज और राम राज्य की बात करते थे और नया बिल उन्हीं विचारों से प्रेरित है। सरकार का दावा है कि इस कानून का मकसद सबसे गरीब और वंचित वर्ग का पहले कल्याण करना है, जो गांधी जी की मूल भावना के अनुरूप है।

सरकार का दावा: 125 दिन रोजगार और ज्यादा बजट

ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक नए बिल में 100 दिन की जगह 125 दिन रोजगार की गारंटी का प्रावधान किया गया है। इसके लिए 1.51 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि का प्रावधान है। मंत्री ने लोकसभा में आंकड़े पेश करते हुए कहा कि UPA सरकार ने 2006 से 2014 के बीच मनरेगा पर 2.13 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि मोदी सरकार ने 2014 से अब तक 8.53 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। सरकार का कहना है कि इससे ग्रामीण रोजगार व्यवस्था और मजबूत होगी।

विपक्ष का आरोप: अधिकार कमजोर होंगे

वहीं विपक्ष का आरोप है कि नया बिल मजदूरों के रोजगार मांगने के कानूनी अधिकार को कमजोर करता है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि मनरेगा एक मांग-आधारित कानून था, जिसमें काम मांगना मजदूर का अधिकार था। लेकिन नए बिल में समय सीमा तय कर इसे सप्लाई ड्रिवन बना दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि इससे पंचायतों और ग्राम सभाओं की भूमिका भी कमजोर होगी।

केंद्र पर बोझ घटाने का आरोप

तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों ने आरोप लगाया है कि नए कानून में राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाला जा रहा है। विपक्ष का दावा है कि जहां पहले केंद्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च वहन करती थी, वहीं अब कई राज्यों में यह हिस्सा घटकर 60 प्रतिशत रह जाएगा। इससे मनरेगा जैसी योजना देशभर में कमजोर हो सकती है।

सियासी टकराव और तेज होने के आसार

कुल मिलाकर नया रोजगार बिल सरकार और विपक्ष के बीच बड़ी सियासी लड़ाई का कारण बन गया है। सरकार इसे ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे मनरेगा को कमजोर करने की साजिश करार दे रहा है। आने वाले दिनों में संसद में इस मुद्दे पर टकराव और तेज होने के आसार हैं।

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