अत्यंत संवेदनशील: क्या ब्रिटेन 90 लाख मुसलमानों की नागरिकता छीन रहा है?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
पूनम शर्मा
खबर और हकीकत के बीच की खाई

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मूल के 90 लाख मुसलमानों की नागरिकता रद्द करने की कथित घोषणा एक ऐसा दावा है जो न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए गहन विश्लेषण की माँग  करता है। इस खबर के केंद्र में गृह सचिव ‘शबाना मोहम्मद’ का नाम, ‘जिहाद’ के कथित समर्थन पर ब्रिटिश जनता का विरोध और अमेरिकी प्रशासन द्वारा इसी राह पर चलने की अटकलें शामिल हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस पूरे प्रकरण में 90 लाख मुसलमानों की नागरिकता सीधे तौर पर रद्द करने की कोई आधिकारिक घोषणा ब्रिटिश गृह सचिव द्वारा नहीं की गई है, न ही किसी गृह सचिव ‘शबाना मोहम्मद’ का नाम सामने आया है, बल्कि वर्तमान गृह मंत्री शबाना महमूद (जो खुद मुस्लिम हैं) हैं।

यह खबर संभवतः ‘रिप्रीव’ और ‘रैनीमेड ट्रस्ट’ जैसे मानवाधिकार संगठनों की हालिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। इन रिपोर्ट्स में यह चेतावनी दी गई है कि ब्रिटेन में मौजूदा ‘राष्ट्रीयता और सीमा शुल्क अधिनियम’ (Nationality and Borders Act) के तहत गृह सचिव के पास एक गुप्त और अत्यधिक शक्ति है, जिसके दुरुपयोग से देश की लगभग 13% आबादी, यानी 90 लाख लोग अपनी ब्रिटिश नागरिकता खो सकते हैं, और इनमें से अधिकांश लोग दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका मूल के मुस्लिम हो सकते हैं, जिनके पास किसी अन्य देश की नागरिकता मिलने की संभावना है। यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हित के नाम पर नागरिकता छीनने का अधिकार देता है।

संवैधानिक और ऐतिहासिक संदर्भ

ब्रिटेन की नागरिकता कानून प्रणाली ‘ब्रिटिश नागरिकता अधिनियम 1981’ और बाद के संशोधनों, जैसे कि ‘राष्ट्रीयता और सीमा शुल्क अधिनियम 2022’ द्वारा शासित है। नागरिकता रद्द करने की शक्ति गृह सचिव के पास एक लंबे समय से है, लेकिन इसका उपयोग आमतौर पर आतंकवाद या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले गंभीर मामलों में किया जाता रहा है।

नागरिकता और नस्लीय भेदभाव: मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि यह कानून, जिसके तहत नागरिकता छीनने की शक्ति का विस्तार किया गया है, नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह नियम उन नागरिकों को निशाना बना सकता है जिनका जुड़ाव दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका से है—वे क्षेत्र जहां से ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा आता है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां ‘विदेशी मूल’ के नागरिकों के अधिकार ‘मूल ब्रिटिश’ नागरिकों की तुलना में कमज़ोर हो जाते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, ब्रिटेन एक बहु-सांस्कृतिक समाज रहा है, जिसने कॉमनवेल्थ देशों से लाखों प्रवासियों को स्वीकार किया है। लेकिन ब्रेक्जिट और बढ़ते अप्रवासन के कारण, ब्रिटेन के मूल निवासियों में ‘अपनी पहचान’ खोने की चिंता बढ़ी है।

अप्रवासन और ‘जनसंख्या जिहाद’ का नैरेटिव

खबर में ‘ब्रिटेन पर कब्ज़ा करने की कोशिश’ और ‘20% मुसलमानों का जिहाद समर्थन’ जैसे दावे एक व्यापक राजनीतिक विमर्श का हिस्सा हैं जो यूरोप और पश्चिमी देशों में अप्रवासन विरोधी आंदोलनों द्वारा फैलाया जा रहा है।

आंकड़ों का विश्लेषण:

मुस्लिम आबादी: 2021 की जनगणना के अनुसार, ब्रिटेन की कुल आबादी में मुसलमानों का हिस्सा लगभग 6.5% (लगभग 41 लाख) है, न कि 90 लाख। हालांकि, यह आबादी अन्य समुदायों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है।

जिहाद पर सर्वे: ब्रिटिश मीडिया द्वारा 20% मुसलमानों के ‘जिहाद’ का समर्थन करने का दावा एक संवेदनशील और विवादास्पद आंकड़ा है। ऐसे सर्वेक्षणों की कार्यप्रणाली और संदर्भ की सटीकता की जांच आवश्यक है, क्योंकि यह आंकड़ा अक्सर अप्रवासन विरोधी राजनीतिक विमर्श को हवा देने के लिए इस्तेमाल होता है। यह एक अत्यंत विवादास्पद नैरेटिव है जो एक पूरे समुदाय को कट्टरपंथी के रूप में चित्रित करता है।

ब्रिटेन के मूल नागरिकों की घटती संख्या और अप्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंताएँ वास्तविक हैं, जिसे नेता टॉमी रॉबिन्सन जैसे व्यक्ति अपने प्रदर्शनों के माध्यम से मुखर करते हैं।

यूरोप और अमेरिका में असर

खबर के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भी इसी तरह का फैसला लेने की तैयारी है। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भी जन्मसिद्ध नागरिकता को सीमित करने की कोशिश की थी, जिसे अमेरिकी अदालत ने ‘स्पष्ट रूप से असंवैधानिक’ करार दिया था। इसके अलावा, ट्रंप ने मुस्लिम-बहुल देशों पर यात्रा प्रतिबंध (ट्रैवल बैन) भी लगाया था। यह दर्शाता है कि अमेरिका में भी अप्रवासी-विरोधी भावनाओं का एक राजनीतिक आधार मजबूत है, हालांकि संवैधानिक बाधाएं इसे तुरंत लागू करने से रोकती हैं।

यूरोप के अन्य देशों में भी शरणार्थी और अप्रवासी नीतियों को सख्त किया गया है। इटली, जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों ने शरणार्थियों को वापस भेजने या उनकी सुविधाओं में कटौती करने जैसे कदम उठाए हैं। यह दिखाता है कि पूरे पश्चिमी जगत में अप्रवासी-विरोधी लहर चल रही है, लेकिन 90 लाख मुसलमानों की एक साथ नागरिकता रद्द करने जैसा कोई अभूतपूर्व कदम अभी तक किसी भी संवैधानिक लोकतंत्र ने नहीं उठाया है।

निष्कर्ष: एक चेतावनी या दुष्प्रचार?

यह ‘खबर’ संभवतः एक अर्ध-सत्य (Half-Truth) पर आधारित है, जहाँ  एक मानवाधिकार रिपोर्ट में मौजूद ‘संभावित खतरे’ को एक ‘पुष्टि की गई घोषणा’ के रूप में पेश किया गया है।

90 लाख मुसलमानों की नागरिकता रद्द करने की घोषणा ब्रिटिश गृह सचिव शबाना महमूद (नाम में समानता, लेकिन ‘शबाना मोहम्मद’ नहीं) ने नहीं की है, बल्कि मानवाधिकार समूहों की रिपोर्ट ने मौजूदा कानून के तहत इतने लोगों के लिए ऐसा होने की संभावना जताई है।

यह पूरी घटना दो अलग-अलग वास्तविकताओं को उजागर करती है:

कानूनी अस्पष्टता: ब्रिटिश सरकार के पास नागरिकता छीनने की एक व्यापक शक्ति मौजूद है, जिसे उपयोग में लाया जाना चाहिए । राजनीतिक डर: पश्चिमी देशों में अप्रवासन विरोधी भावनाएँ  अपने चरम पर हैं, जिससे ऐसे दावे एक मजबूत राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन जाते हैं। यह मामला लोकतांत्रिक सिद्धांतों, मानवाधिकारों और एक बहु-सांस्कृतिक समाज के भविष्य के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करता है,  लेकिन जब नागरिकों के अस्तित्व की बात हो तो ऐसा  करना तर्कपूर्ण है ।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.