श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी योद्धा डॉ. रामविलास दास वेदांती का निधन

वा में धार्मिक आयोजन के दौरान बिगड़ी तबीयत, 67 वर्ष की आयु में हुआ निधन

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  • श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख स्तंभ और संत नेता डॉ. रामविलास दास वेदांती का सोमवार को निधन ।
  • मध्य प्रदेश के रीवा में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान अचानक स्वास्थ्य खराब होने से उनका देहांत हुआ।
  • वे राम जन्मभूमि न्यास और विश्व हिंदू परिषद से लंबे समय तक जुड़े रहे।
  • 1996 और 1998 में भाजपा के टिकट पर दो बार लोकसभा सांसद भी रहे।

समग्र समाचार सेवा
अयोध्या।रीवा,16 दिसंबर: श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में शामिल और उसके अग्रणी योद्धा डॉ. रामविलास दास वेदांती का सोमवार, 15 दिसंबर को 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे लंबे समय से श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे और जीवन भर इस आंदोलन के लिए संघर्ष करते रहे। जानकारी के अनुसार, वे मध्य प्रदेश के रीवा में एक धार्मिक आयोजन में शामिल होने गए थे, जहां अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनका निधन हो गया।

7 अक्टूबर 1958 को मध्य प्रदेश के रीवा जिले के गुढ़वा गांव में जन्मे डॉ. वेदांती बचपन में ही अयोध्या आ गए थे और महंत अभिराम दास के शिष्य बने। रामजन्मभूमि आंदोलन में योगदान देने वाले जिन संतों और महापुरुषों के नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं, उनमें डॉ. वेदांती का नाम भी प्रमुखता से शामिल है। अपनी धार्मिक सक्रियता, समर्पण और प्रभावशाली वक्तृत्व कला के कारण उन्होंने एक विशिष्ट पहचान बनाई। वे विश्व हिंदू परिषद और राम जन्मभूमि न्यास जैसे संगठनों के प्रमुख चेहरों में गिने जाते थे।

1980–90 के दशक में निभाई अहम भूमिका
1980 और 1990 के दशक में अयोध्या में मंदिर निर्माण आंदोलन को गति देने में डॉ. वेदांती की भूमिका को इतिहास हमेशा याद रखेगा। आंदोलन के कठिन दौर, गोलीकांड और राजनीतिक दबावों के बावजूद उनका संकल्प अडिग रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने आंदोलन की लौ बुझने नहीं दी और वे इसके प्रमुख किरदारों में अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे। उन्होंने संस्कृत और धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन किया था, जिसका प्रभाव उनके विचारों और वक्तव्यों में स्पष्ट झलकता था।

रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान उन्होंने कई बार कहा था कि दुनिया की कोई शक्ति उस भूमि पर मंदिर बनने से नहीं रोक सकती। आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने और उसे जनांदोलन का स्वरूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। धार्मिक रैलियों, कार्यक्रमों और कथा-सत्रों के माध्यम से उन्होंने लोगों को संगठित किया। वे राम जन्मभूमि न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे।

विध्वंस मामले में बयान और अदालत की कार्यवाही
1992 के बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद जिन नेताओं और संतों पर मुकदमा चला, उनमें डॉ. वेदांती का नाम भी शामिल था। बाद में सीबीआई की विशेष अदालत ने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में डॉ. वेदांती का कहना था कि “हमने मस्जिद नहीं, बल्कि मंदिर के खंडहर को तोड़ा।” अदालत में दिए अपने बयान में उन्होंने कहा था कि उस स्थल पर धनुष-बाण, शंख, चक्र और गदा जैसे हिंदू प्रतीक मौजूद थे। उनका दावा था कि वहां राजा विक्रमादित्य द्वारा 84 कसौटी के खंभों पर बनवाया गया मंदिर था, जो समय के साथ खंडहर में बदल चुका था, इसलिए खंडहर हटाकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया।

विध्वंस से लेकर निर्माण तक के साक्षी
डॉ. रामविलास दास वेदांती बाबरी ढांचे के विध्वंस से लेकर राम मंदिर निर्माण तक की पूरी प्रक्रिया के साक्षी रहे। नौ नवंबर 1989 को राम मंदिर निर्माण के लिए हुए पहले शिलान्यास में वे स्वामी वामदेव, महंत अवेद्यनाथ, परमहंस रामचंद्र दास, नृत्य गोपाल दास और अशोक सिंघल के साथ उपस्थित थे।
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा में भी वे शामिल रहे। यह यात्रा 30 अक्तूबर को अयोध्या में कारसेवा के साथ समाप्त होनी थी। उस दिन बड़ी संख्या में रामभक्त अयोध्या पहुंचे, जिन पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के दौरान पुलिस कार्रवाई हुई। दो नवंबर को भी रामभक्तों के एकत्र होने पर तनावपूर्ण हालात बने।

राजनीति में भी निभाई भूमिका
डॉ. वेदांती ने धार्मिक नेतृत्व के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वे दो बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद रहे—1996 में मछलिशहर और 1998 में प्रतापगढ़ से जीत हासिल कर संसद पहुंचे। उनकी राजनीतिक सक्रियता ने राम मंदिर आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर और मजबूती प्रदान की।

राम मंदिर पर विचार और विरासत
डॉ. वेदांती का मानना था कि अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन आज़ादी के बाद किसी मंदिर के लिए चला सबसे लंबा आंदोलन रहा है। सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले का उन्होंने स्वागत करते हुए इसे सदियों की तपस्या का फल बताया था। 2020 में हुए भूमि पूजन और मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को वे अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में मानते थे। उनका कहना था कि अयोध्या में बनने वाला राम मंदिर विश्व का सबसे भव्य मंदिर होगा और एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रूप में उभरेगा।

शोक की लहर
डॉ. रामविलास दास वेदांती के निधन के बाद अयोध्या, संत समाज और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सनातन धर्म के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि उनका जीवन धर्म, समाज और राष्ट्र को समर्पित रहा। राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में डॉ. रामविलास दास वेदांती को एक संत, एक आंदोलनकारी और एक जनप्रतिनिधि के रूप में सदैव याद किया जाएगा। उनके विचार, त्याग, संघर्ष और समर्पण ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को नई दिशा दी और उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।

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