कक्षा 7 के पाठ्यक्रम में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’: भारतीय चिंतन की वैश्विक गूँज

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पूनम शर्मा
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा कक्षा 7 के सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अध्याय को शामिल करना केवल एक शैक्षणिक संशोधन नहीं है, बल्कि यह भारत की उस सनातन वैचारिक परंपरा का पुनः स्मरण है, जिसने सदियों पहले ही विश्व को एक परिवार मानने का संदेश दिया था। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दुनिया युद्ध, संघर्ष, असहिष्णुता और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही है।

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ संस्कृत का वह सूत्रवाक्य है, जिसका अर्थ है— “पूरी पृथ्वी एक परिवार है।” यह विचार ऋग्वेद और महा उपनिषद जैसी प्राचीन ग्रंथ परंपराओं से निकलकर भारतीय सभ्यता की आत्मा बन चुका है। NCERT द्वारा इसे स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना इस बात का संकेत है कि भारत अपने बच्चों को केवल सूचना नहीं, बल्कि मूल्य-आधारित शिक्षा देना चाहता है।

शिक्षा से संस्कार तक की यात्रा

नई शिक्षा नीति (NEP-2020) का मूल उद्देश्य शिक्षा को केवल परीक्षा-केंद्रित न रखकर जीवनोपयोगी, नैतिक और वैश्विक दृष्टिकोण से युक्त बनाना है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अध्याय इसी दिशा में एक ठोस कदम है। यह अध्याय छात्रों को यह समझाने का प्रयास करता है कि विविधता में एकता केवल एक नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति है।

इस अध्याय के माध्यम से विद्यार्थियों को यह बताया जाएगा कि मानवता, सह-अस्तित्व, करुणा, पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक जिम्मेदारी जैसे मूल्य भारतीय परंपरा में कितने गहरे समाहित हैं। इससे बच्चों में “हम बनाम वे” की संकीर्ण मानसिकता के बजाय सहयोग और समन्वय की भावना विकसित होगी।

वैश्विक संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण

आज जब राष्ट्रवाद कई जगह संकीर्णता का रूप लेता जा रहा है, तब भारत का यह संदेश अलग पहचान बनाता है। G-20 शिखर सम्मेलन में भी भारत ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को अपना मूल मंत्र बनाया था। NCERT का यह अध्याय उसी वैश्विक दृष्टि को जमीनी स्तर पर, यानी कक्षा 7 के छात्रों तक पहुंचाने का प्रयास है।

यह पहल यह भी दर्शाती है कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को छिपाने या उससे दूरी बनाने के बजाय, उसे आधुनिक संदर्भों में पुनर्परिभाषित कर रहा है। यह अध्याय किसी धर्म विशेष का प्रचार नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक सार्वभौमिक विचार को प्रस्तुत करता है।

आलोचनाओं से परे एक संतुलित पहल

कुछ आलोचक इसे ‘संस्कृतिकरण’ या ‘वैचारिक झुकाव’ के रूप में देखने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन वस्तुतः यह अध्याय किसी भी प्रकार के राजनीतिक या धार्मिक आग्रह से मुक्त है। यह मानवीय मूल्यों पर आधारित है, जो संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर भी स्वीकार्य हैं—जैसे शांति, समानता, सतत विकास और पर्यावरणीय संतुलन।

NCERT ने इस अध्याय को तथ्यों, उदाहरणों और गतिविधियों के माध्यम से इस तरह तैयार किया है कि छात्र इसे आलोचनात्मक सोच के साथ समझ सकें, न कि केवल रटने के लिए।

भविष्य की पीढ़ी के लिए संदेश

कक्षा 7 का छात्र वह उम्र होती है, जब सोच आकार लेती है। ऐसे में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसे विचार बच्चों को बचपन से ही यह सिखाते हैं कि दुनिया की समस्याओं का समाधान टकराव में नहीं, बल्कि संवाद और सहयोग में है।

यह अध्याय छात्रों को वैश्विक नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित करता है—ऐसे नागरिक, जो अपनी जड़ों से जुड़े हों, लेकिन दृष्टि से वैश्विक हों।

निष्कर्ष

NCERT द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना भारत की उस बौद्धिक परंपरा का पुनरुद्धार है, जो मानवता को विभाजित नहीं, बल्कि जोड़ने की बात करती है। यह पहल आने वाली पीढ़ियों को न केवल बेहतर छात्र, बल्कि संवेदनशील, जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।

आज जब दुनिया को सबसे अधिक आवश्यकता समझ, सहानुभूति और सहयोग की है, तब भारत का यह शैक्षिक संदेश वास्तव में समयोचित और दूरदर्शी कहा जा सकता है।

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