पूनम शर्मा
तीन साल की लंबी खींचतान के बाद केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में मनरेगा को तत्काल प्रभाव से दोबारा शुरू करने का आदेश जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत यह मंजूरी दी गई है और संबंधित आदेश राज्य सरकार को भेज दिए गए हैं। लेकिन इस फैसले ने ममता बनर्जी सरकार को भड़का दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक मंच से न केवल मनरेगा के नए दिशानिर्देशों वाले नोट को फाड़ दिया, बल्कि इसे “अपमानजनक” और “राजनीतिक दबाव” करार दिया।
ममता बनर्जी क्यों भड़कीं?राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके पीछे कई कारण हैं:
मोदी सरकार के खिलाफ अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने का प्रयास । ममता बनर्जी खुद को प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सबसे मजबूत विपक्षी चेहरा दिखाना चाहती हैं। इसलिए केंद्र द्वारा लिया गया कोई भी फैसला, विशेषकर आर्थिक या प्रशासनिक हस्तक्षेप, राजनीतिक टकराव में बदल जाता है।
भ्रष्टाचार के आरोप और केंद्र की सख्त शर्तें -मनरेगा फंड में भारी अनियमितताओं की शिकायतों के बाद ही केंद्र ने 2022 में बंगाल के भुगतान रोके थे। जाँच में भारी गड़बड़ियां सामने आईं—
फर्जी जॉब कार्ड
बिना काम के भुगतान
अपात्र लोगों को घर निर्माण का पैसा
पंचायत-स्तर पर बड़े पैमाने पर कमीशन
केंद्र चाहता है कि अब से हर श्रमिक का KYC और आधार सत्यापन अनिवार्य हो, ताकि पैसा सीधे मजदूर के खाते में जाए। यही शर्तें बंगाल सरकार को नागवार गुजर रही हैं।
भविष्य में ‘कमाई बंद’ होने का डर
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मनरेगा के फंड “स्थानीय सत्ता संरचनाओं” का बड़ा आधार थे। यदि पैसा सीधे मजदूरों के खाते में जाएगा, तो स्थानीय स्तर पर होने वाली ‘कट-मनी’ की राजनीति खत्म हो जाएगी। इसी वजह से नया सिस्टम ममता सरकार को परेशान कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की दखल और केंद्र की मजबूरी-हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि बंगाल में मनरेगा भुगतान कब शुरू होगा। कोर्ट ने साफ कहा कि मजदूरों को उनके हक का पैसा मिलना चाहिए। इसी क्रम में केंद्र ने नए दिशा-निर्देशों के साथ फंड जारी करने का फैसला लिया।
केंद्र का तर्क यह है कि—
हर लाभार्थी का KYC पूरा हो
भुगतान सीधे DBT से हो
काम का सत्यापन डिजिटल हो
फर्जी जॉब कार्ड की दोबारा जाँच की जाए
ये बदलाव राष्ट्रीय स्तर पर लागू हैं, पर बंगाल में सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है।
ममता का राजनीतिक दांव
ममता बनर्जी ने मंच से कहा कि “बंगाल दिल्ली से भीख नहीं मांगेगा।” उन्होंने केंद्र पर “राजनीतिक बदले की भावना” से काम करने का आरोप लगाया।
पर विशेषज्ञों का कहना है कि ममता का यह तेवर चुनावी रणनीति का हिस्सा है। बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक और ग्रामीण गरीब तबका उनसे जुड़ा है। मनरेगा इन्हीं वर्गों के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है।
ममता जानती हैं कि—42% से अधिक वोट उन्हें ग्रामीण मुसलमान और गरीब हिंदुओं से मिले ,मनरेगा बंद होने का ठीकरा वे केंद्र पर फोड़ती रही हैं अब इसे फिर से राजनीति का हथियार बनाना चाहती हैं । लेकिन इस बार समस्या यह है कि केंद्र ने अदालत के आदेश पर फंड जारी किया है। ऐसे में केंद्र-विरोधी बयानबाज़ी का प्रभाव सीमित हो सकता है।
भ्रष्टाचार की पुरानी कहानी
बंगाल के कई जिलों में मनरेगा के नाम पर घोटालों की कहानियाँ लंबे समय से आती रहती हैं। उदाहरण के तौर पर—“तालाब खोदने” के नाम पर लाखों रुपये जारी लेकिन तालाब मिला ही नहीं “घर निर्माण” का पैसा उन लोगों को दिया गया जिनके पास पहले से पक्का घर है । पंचायत अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी मजदूर । एक ही व्यक्ति के नाम पर कई कार्ड । इन अनियमितताओं पर केंद्र ने कड़ा रुख अपनाया और भुगतान रोक दिया। इसी से टकराव की नींव पड़ी।
चुनावी असर कितना?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मनरेगा विवाद का सीधा चुनावी असर बहुत बड़ा नहीं पड़ेगा, लेकिन— ग्रामीण क्षेत्रों में नाराज़गी फैल सकती है
तृणमूल इसे “बंगाल की अस्मिता” का मुद्दा बना सकती है भाजपा इस मुद्दे को “भ्रष्टाचार की सफाई” के रूप में पेश करेगी हालांकि आंकड़े बताते हैं कि
बंगाल के सबसे गरीब मुसलमानों और दलितों में भाजपा का समर्थन थोड़ा बढ़ा है भाजपा का संगठन गांवों में पहले से मजबूत हुआ है TMC का कोर वोट बैंक अभी भी ममता के साथ है । इसलिए इसे निर्णायक मुद्दा कहना जल्दबाज़ी होगी।
सबसे बड़ा नुकसान किसका?
इस पूरे टकराव में सबसे ज्यादा नुकसान बंगाल के मजदूरों का हुआ है— तीन साल से उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिला । डिजिटल सत्यापन पूरा न होने से कई गरीब श्रमिक फंड से बाहर हो गए । राजनीतिक लड़ाई के बीच रोज़गार गारंटी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम का हश्र गिरता गया
निष्कर्ष
मनरेगा पर केंद्र और बंगाल सरकार के बीच यह टकराव सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि गहरी राजनीतिक लड़ाई है। केंद्र जहां पारदर्शिता और भ्रष्टाचार रोकने की बात कर रहा है, वहीं ममता सरकार इसे राजनीतिक बदले का नाम दे रही है। अगले चुनावों में यह मुद्दा कितना असर डालेगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन अभी स्पष्ट है कि— बंगाल की जनता मनरेगा की राजनीति की सबसे बड़ी पीड़ित है।