दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति की दिल्ली हवेली, जहां हो रही है पुतिन की मेजबानी

1920 के दशक में बना हैदराबाद हाउस कभी निज़ाम की शाही हवेली था; आज भारत का सबसे अहम कूटनीतिक स्थल है।

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  • रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा के दौरान हैदराबाद हाउस मुख्य स्थल
  • 170 करोड़ रुपये (2023 मूल्य) की लागत से बना था यह महल
  • ब्रिटिश दौर में 21-गन-सल्यूट राज्य हैदराबाद के निज़ाम ने बनवाया था
  • 1974 में विदेश मंत्रालय के अधीन आने के बाद से यह पीएम का स्टेट गेस्ट हाउस

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 04 दिसंबर:रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली का ऐतिहासिक हैदराबाद हाउस एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। यह वही राजसी भवन है जिसे कभी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति कहे जाने वाले हैदराबाद के अंतिम निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने बनवाया था। उनकी अपार संपत्ति—मोती, हीरे और कीमती खजानों की कहानियाँ, इतनी मशहूर थीं कि ब्रिटिश सरकार द्वारा नई राजधानी दिल्ली बसाए जाने के दौरान जब रियासतों को प्लॉट दिये जा रहे थे, तब निज़ाम ने तुरंत अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की तैयारी कर ली।

ब्रिटिश सरकार ने वायसराय हाउस के पास का जो क्षेत्र बनाया, वहां कई महाराजाओं ने दिल्ली में अपने घर बनवाने की इच्छा जताई। लेकिन निज़ाम ने साधारण ज़मीन नहीं मांगी, उन्होंने प्रिंसेज़ पार्क, यानी वायसराय के नज़दीक सबसे प्रतिष्ठित जगह की मांग रख दी। ब्रिटिश इससे सहमत नहीं हुए, लेकिन अंततः हैदराबाद, बड़ौदा, पटियाला, जयपुर और बीकानेर, इन पांच राज्यों को किंग्सवे (आज का राजपथ) के छोर के पास प्लॉट दिए गए। इनमें से केवल हैदराबाद और बड़ौदा ने अपने भवनों के लिए विश्व-प्रसिद्ध वास्तुकार एडविन लुटियंस को चुना।

निज़ाम की इच्छा थी कि उनका घर वायसराय हाउस जितना भव्य दिखे, मगर सरकारी नियमों के कारण लुटियंस केवल उसका केंद्रीय गुंबद ही डिज़ाइन में शामिल कर सके। इसके बावजूद उन्होंने हैदराबाद हाउस को इतना ख़ूबसूरत और अनोखा बनाया कि यह सभी रियासती भवनों में सबसे अलग दिखाई दिया। लुटियंस ने इसे अपनी मशहूर ‘बटरफ्लाई प्लान’ शैली में बनाया, जिसमें भवन दो विशाल पंखों की तरह फैलता है। आज भी सड़क से देखने पर इसका फैलाव एक तितली जैसा प्रतीत होता है।

1920 के दशक में इसे 2 लाख पाउंड की लागत से बनाया गया था, जो आज के मूल्य के अनुसार करीब 1.4 मिलियन पाउंड यानी लगभग 170 करोड़ रुपये बैठता है। इसमें 36 कमरे, विशाल आर्च, यूरोपीय शैली की भव्य सीढ़ियाँ, फव्वारे, गुंबद और मुगल वास्तुकला की कोमल झलकें शामिल की गईं। इसकी मंज़िलों के संगमरमर के फर्श, गोलाकार लॉबी और रोमन पैंथियन से प्रेरित मेहराबें आज भी इसकी शाही कहानी बताती हैं। लुटियंस ने खिड़कियों के लिए फ्लोरेंस के उफ़ीज़ी पैलेस की शैली अपनाई, गोल व आयताकार मेहराबों का अनोखा संयोजन।

महल का ज़नाना भी चर्चित रहा, एक गोल आँगन जिसके चारों ओर 12 से 15 छोटे कमरे थे। ब्रिटिश अधिकारी हार्डिंग ने इन्हें “घोड़े के बॉक्स जितने छोटे कमरे” बताया था, जिनमें सिर्फ़ एक ऊँची खिड़की और साधारण बिस्तर होता था; बाथरूमों में नहाने के टब नहीं थे, केवल गर्म और ठंडे पानी के नल थे जिनके नीचे बैठकर नहाना पड़ता था।

हैदराबाद हाउस की भव्यता जो लुटियंस द्वारा 1921 से 1931 के बीच डिज़ाइन की गई दिल्ली के सभी रियासती भवनों में सबसे बड़ी थी, जिसे केवल वायसराय हाउस ही पीछे छोड़ता था। यह राजसी महल निज़ाम की अपार संपन्नता और ब्रिटिश साम्राज्य में उनकी उच्च स्थिति का प्रतीक था।

स्वतंत्रता के बाद परिस्थितियाँ बदलीं। 1947 के बाद रियासतों के विलय की प्रक्रिया शुरू हुई, और 1948 में ऑपरेशन पोलो के बाद हैदराबाद भारत में शामिल हुआ। निज़ाम का दिल्ली महल धीरे-धीरे कम इस्तेमाल होने लगा और अंततः यह भारतीय सरकार के अधीन आ गया। 1974 में विदेश मंत्रालय ने इसे औपचारिक रूप से अपने नियंत्रण में लेकर इसे भारत का प्रमुख स्टेट गेस्ट हाउस घोषित किया। इसके बाद भारत पर्यटन विकास निगम (ITDC) ने इसकी देखभाल, भोज और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की व्यवस्था संभाली।

धीरे-धीरे 1, अशोक रोड स्थित यह भवन भारत के कूटनीतिक कैलेंडर का सबसे महत्वपूर्ण स्थल बन गया। यहाँ अमेरिकी राष्ट्रपतियों बिल क्लिंटन और जॉर्ज बुश से लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता आधिकारिक बैठकों और भोज में शामिल हो चुके हैं। इसका स्थान, सुरक्षा, विशाल हॉल और औपचारिक कार्यक्रमों की क्षमता इसे प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय का सबसे पसंदीदा कूटनीतिक स्थल बनाते हैं।

आज, जब भारत पुतिन की मेजबानी कर रहा है, हैदराबाद हाउस अपने इतिहास, वास्तुकला और शाही विरासत के साथ फिर उसी चमक में दिख रहा है जिसके लिए यह कभी दुनिया के सबसे अमीर शासक का गर्व रहा था। एक ऐसा महल, जहाँ कभी निज़ाम की शान बसती थी, अब भारत के आधुनिक कूटनीतिक शक्ति का केंद्र है, एक प्रतीक कि समय बदलता है, लेकिन विरासत अपनी जगह अमर रहती है।

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