महिला कारीगरों में डिजिटल उद्यमिता पर बड़ा शोध

MRIIRS की शोधार्थी उमा अनुराग को पीएच.डी.; डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनाने पर अहम अध्ययन

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  • महिला कारीगरों की डिजिटल उद्यमिता पर विस्तृत विश्लेषणात्मक अध्ययन
  • “eSWADESHI – Holding Hands, Crafting Future™” मॉडल शोध का रूपांतरणकारी योगदान

समग्र समाचार सेवा
फरीदाबाद, 4 दिसंबर: मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज (MRIIRS), फरीदाबाद द्वारा कॉमर्स स्कूल (School of Commerce – SOC) की शोधार्थी उमा अनुराग को सभी शैक्षणिक एवं शोध मानकों को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Ph.D.) की उपाधि प्रदान की गई है। यह उपलब्धि न केवल संस्थान के लिए गर्व का विषय है बल्कि भारत की महिला कारीगरों के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।

डॉ. उमा अनुराग का शोध कार्य कॉमर्स स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सिमरन कौर के निर्देशन में पूर्ण हुआ। उनका शोध प्रबंध “महिला कारीगरों की उद्यमिता हेतु डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनाने पर एक विश्लेषणात्मक अध्ययन” शीर्षक पर आधारित है, जिसमें यह विश्लेषण किया गया कि डिजिटल माध्यम किस प्रकार महिला कारीगरों की उद्यमी क्षमता को मजबूत बना सकते हैं।

शोध में यह उजागर किया गया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म—जैसे ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया मार्केटिंग, ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम और डिजिटल ब्रांडिंग—भारत की महिलाओं के लिए नए आर्थिक अवसर उत्पन्न कर रहे हैं। अध्ययन में महिला कारीगरों के बीच डिजिटल उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु कई रणनीतिक सुझाव दिए गए हैं, जो देश के हस्तशिल्प क्षेत्र में समावेशी एवं सतत विकास को गति देने में महत्वपूर्ण साबित होंगे।

इस शोध का सबसे उल्लेखनीय योगदान है—“eSWADESHI – Holding Hands, Crafting Future™” मॉडल, जिसे महिला कारीगरों की आजीविका, कौशल और बाज़ार पहुँच को बढ़ाने वाले एक रूपांतरणकारी ढांचे के रूप में देखा जा रहा है। यह मॉडल डिजिटल सशक्तिकरण, सामुदायिक समर्थन और बाज़ार-उन्मुख दृष्टिकोण का एक समन्वित समाधान प्रस्तुत करता है।

डॉ. उमा अनुराग ने अपनी पीएच.डी. भारत की महिला कारीगरों को समर्पित की है। उन्होंने कहा कि यह समर्पण देश की कारीगर महिलाओं की रचनात्मकता, दृढ़ता और उनके अमूल्य सांस्कृतिक योगदान के प्रति सम्मान है। उनकी यह पहल महिला उद्यमिता को डिजिटल युग में नई पहचान देने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

MRIIRS प्रशासन ने कहा कि यह शोध देश की ग्रामीण और शहरी महिला कारीगरों के लिए नीति निर्धारण, सरकारी योजनाओं और विकास कार्यक्रमों में उपयोगी साबित हो सकता है। डिजिटल इंडिया अभियान और महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के राष्ट्रीय प्रयासों के संदर्भ में यह अध्ययन अत्यंत सामयिक और उपयोगी है।

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