कुरुक्षेत्र में मोदी जी ने किया ‘पाञ्चजन्य’ स्मारक का लोकार्पण

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पूनम शर्मा
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को एक साथ जोड़ने वाली ऐतिहासिक घटनाओं का संगम मंगलवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में देखने को मिला, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र शंख—‘पाञ्चजन्य’— की स्मृति में बनाए गए भव्य स्मारक का लोकार्पण किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहादत दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में भी भाग लिया। यह आयोजन न केवल भारत के वैदिक, पौराणिक और गुरुपंथी इतिहास का प्रतीक है, बल्कि उसमें आधुनिक भारत की सांस्कृतिक चेतना और आत्मगौरव की झलक भी स्पष्ट दिखाई देती है।

पाञ्चजन्य स्मारक: धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक

कुरुक्षेत्र की पवित्र धरती, जहाँ भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, सदियों से धर्म, साहस और सत्य के लिए खड़े होने की प्रेरणा देती है। इसी ऐतिहासिक स्मृति को अमर करते हुए पाञ्चजन्य स्मारक बनाया गया है। यह विशाल शंख लगभग 5 से 5.5 टन वजनी और 4 से 5 मीटर ऊंचा है।

पाञ्चजन्य केवल एक पौराणिक वस्तु नहीं, बल्कि धर्म-युद्ध की उद्घोषणा, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है। इसे स्मारक के रूप में स्थापित करना भारत की आध्यात्मिक परंपरा का पुनरुत्थान है — जो वर्तमान पीढ़ियों को गर्व और प्रेरणा दोनों देता है।

महाभारत अनुभव केंद्र: विरासत और तकनीक का संगम

प्रधानमंत्री ने ‘महाभारत अनुभव केंद्र’ का भी अवलोकन किया, जिसे पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत विकसित किया गया है। लगभग 200 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह केंद्र भारत की पौराणिक कथा, दर्शन और इतिहास को आधुनिक तकनीक — ऑडियो-विजुअल इंस्टॉलेशन, डिजिटल अनुभव और 3D प्रस्तुति — के माध्यम से जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।

ऐसे समय में जब नई पीढ़ी इतिहास को पुस्तकों से अधिक अनुभवों के माध्यम से समझना चाहती है, यह केंद्र सांस्कृतिक शिक्षा और पर्यटन दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।

गुरु तेग बहादुर के 350वें शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि

कार्यक्रम का दूसरा महत्वपूर्ण भाग था गुरु तेग बहादुर जी के शहादत दिवस का 350वाँ स्मरण।
प्रधानमंत्री ने उन्हें नमन करते हुए कहा कि गुरु तेग बहादुर जी ने सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा को ही अपना धर्म माना।
उनका बलिदान इस धरती पर धार्मिक स्वतंत्रता, मानव अधिकार और साहस की सर्वोच्च मिसाल है।

कुरुक्षेत्र का यह आयोजन विशेष था क्योंकि—

यह वही भूमि है जहाँ लगभग सभी सिख गुरुओं के चरण पड़े

यही वह स्थान है जहाँ गुरु तेग बहादुर जी ने अपने तप और त्याग का अमिट चिन्ह छोड़ा

और आज, उनकी 350वीं शहादत पर देश ने एक स्वर में उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त की

आस्था और इतिहास का अनोखा संगम: पीएम मोदी की भावनात्मक टिप्पणी

पीएम मोदी ने कहा कि आज भारत की दो महान आध्यात्मिक परंपराएं — रामायण और महाभारत — का “अद्भुत संगम” देखने को मिला।
उन्होंने कहा:

“सुबह मैं अयोध्या में था, रामायण की भूमि पर; और शाम को कुरुक्षेत्र में, गीता की भूमि पर। आज हम सभी गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहादत दिवस पर उन्हें नमन करने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। यह भारत की विरासत का अद्भुत मेल है।”

उन्होंने 2019 की एक स्मृति का भी उल्लेख किया—
जब राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के दिन वे करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए डेरा बाबा नानक में थे।
उनकी यह याद दिलाती है कि भारत के आध्यात्मिक मार्ग और उसके ऐतिहासिक फैसले अक्सर अनायास एक-दूसरे से जुड़ते चले जाते हैं।

कुरुक्षेत्र—वह भूमि जहाँ संस्कृति, धर्म और साहस मिले

कुरुक्षेत्र केवल धर्म-स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा का केंद्र है।
चाहे पाञ्चजन्य का उद्घोष हो, गीता का संदेश, या गुरु तेग बहादुर का बलिदान—यह स्थान सदियों से भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतिनिधि रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जैसे महापुरुष इतिहास में दुर्लभ हैं।
उनका साहस, त्याग और मानवीय मूल्य भारत की सांस्कृतिक चेतना का स्थायी स्तंभ हैं।

समापन: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और आधुनिक भारत का नया युग

कुरुक्षेत्र में आयोजित यह कार्यक्रम केवल एक स्मारक का उद्घाटन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक स्मृति, अध्यात्म और ऐतिहासिक चेतना को पुनर्जीवित करने की दिशा में बड़ा कदम है।
पाञ्चजन्य स्मारक, महाभारत अनुभव केंद्र और गुरु तेग बहादुर जी की जयंती—तीनों ने मिलकर संदेश दिया है कि—

भारत का भविष्य तभी मजबूत है, जब उसका अतीत गर्व और सम्मान के साथ जीवित रखा जाए।

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