तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने संस्कृत को ‘मृत भाषा’ बताया
तमिलनाडु के डिप्टी सीएम के बयान पर BJP का पलटवार—कहा, हिंदू संस्कृति और भाषाई विरासत का अपमान
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BJP ने आरोप लगाया कि उदयनिधि हिंदू संस्कृति और भाषाई विरासत का अपमान कर रहे हैं।
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तमिलिसाई और अन्य नेताओं ने कहा, तमिल और संस्कृत दोनों समृद्ध भाषाएँ हैं, एक को नीचा दिखाना गलत।
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BJP ने DMK पर भाषाई नफ़रत फैलाने, तर्कहीन राजनीति करने और तमिल विकास के नाम पर भ्रष्टाचार छुपाने का आरोप लगाया।
समग्र समाचार सेवा
चेन्नई | 24 नवंबर: तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने एक बार फिर विवाद को जन्म दे दिया है। चेन्नई में 21 नवंबर को आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने संस्कृत को “मृत भाषा” बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार तमिल के विकास के लिए केवल 150 करोड़ रुपये देती है, जबकि संस्कृत जैसी “मृत भाषा” के लिए 2,400 करोड़ रुपये आवंटित कर रही है।
उनके इस बयान पर भाजपा ने कड़ी नाराज़गी व्यक्त की है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि उदयनिधि स्टालिन हिंदुओं के प्रति “घृणा” फैलाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 2023 में उदयनिधि ने खुद को “क्रिश्चियन” बताते हुए सनातन धर्म को मलेरिया और डेंगू की तरह खत्म करने की बात कही थी और अब एक बार फिर हिंदू समुदाय और उनकी सांस्कृतिक विरासत का अपमान कर रहे हैं।
भाजपा नेता भाटिया ने कहा, “संस्कृत हमारी संस्कृति, धार्मिक ग्रंथों और करोड़ों हिंदुओं की आस्था की नींव है। इसे ‘मृत भाषा’ कहना बेहद घटिया और अपमानजनक है।”
तेलंगाना की पूर्व राज्यपाल और भाजपा नेता डॉ. तमिलिसाई सौंदरराजन ने भी उदयनिधि की टिप्पणी पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “एक भाषा को बढ़ाने के लिए दूसरी को नीचा दिखाना गलत है। तमिल भाषा में भी कई संस्कृत शब्द सम्मिलित हैं। यह उसकी महानता है, कमजोरी नहीं।”
तमिलनाडु भाजपा के मुख्य प्रवक्ता नारायणन तिरुपाठी ने X पर लंबा पोस्ट लिखते हुए आरोप लगाया कि DMK कई दशकों से भाषाई भावनाओं को भड़का कर नफरत की राजनीति कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया—यदि उदयनिधि सच में तीन-भाषा नीति के खिलाफ हैं, तो क्या वे अपने परिवार द्वारा संचालित ‘सनशाइन’ स्कूल में इसे हटाएंगे? “क्या तीन भाषाएँ सीखना सिर्फ अमीर बच्चों का अधिकार है? गरीब सरकारी स्कूलों के बच्चों को इससे क्यों वंचित किया जाए?” उन्होंने पूछा।
नारायणन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व स्तर पर तमिल भाषा की जितनी प्रशंसा की है, उतनी किसी भारतीय नेता ने नहीं की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि DMK तमिल भाषा को संरक्षण देने की बजाय अंग्रेज़ी-मिश्रित ‘थंगलिश’ को बढ़ावा दे रही है और तमिल की शुद्धता को नुकसान पहुँचा रही है।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि DMK नेताओं—करुणानिधि, स्टालिन, उदयनिधि, दयानिधि—के नाम भी संस्कृत से ही लिए गए हैं, जबकि वे सार्वजनिक रूप से संस्कृत का विरोध करते हैं।
नारायणन ने कहा कि संस्कृत किसी एक राज्य की मातृभाषा नहीं है, इसलिए इसकी प्राचीनता, ज्ञान, साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने DMK को चुनौती दी कि उदयनिधि तमिल विकास पर DMK सरकारों द्वारा किए गए खर्च का श्वेतपत्र जारी करने का साहस दिखाएँ।
सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कई यूजर्स ने लिखा कि DMK तमिल पहचान के नाम पर सिर्फ वोटबैंक की राजनीति कर रही है और संस्कृत को ब्राह्मणवादी भाषा बताकर जनता को भ्रमित कर रही है।
आलोचकों का कहना है कि DMK एक तरफ उर्दू–फारसी माध्यम के 270 से अधिक स्कूलों को समर्थन देती है, दूसरी तरफ संस्कृत का विरोध कर उसे सांस्कृतिक राजनीति का मुद्दा बनाती है। जबकि संस्कृत वह भाषा है जिसमें वेद, उपनिषद, दर्शन, साहित्य और सदियों की भारतीय ज्ञान परंपरा सुरक्षित