जम्मू-कश्मीर में संविधान दिवस पर प्रस्तावना वाचन अनिवार्य

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पूनम शर्मा
जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष 26 नवंबर का संविधान दिवस एक विशेष राजनीतिक और राष्ट्रीय महत्व के साथ मनाया जाएगा। केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद यह पहला अवसर है जब सरकार ने प्रदेश की सभी शैक्षणिक, सरकारी, अर्ध-सरकारी और प्रशासनिक संस्थाओं को औपचारिक निर्देश जारी किए हैं कि वे भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) का सामूहिक वाचन कराएँ। अधिकारियों ने इसे एक “ऐतिहासिक कदम” करार दिया है, जो जम्मू-कश्मीर को भारतीय गणराज्य की संवैधानिक मुख्यधारा से और अधिक मजबूती से जोड़ने की दिशा में निर्णायक महत्व रखता है।

अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद संवैधानिक चेतना की दिशा में आगे कदम

2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में तेज़ी से शुरू हुए प्रशासनिक और संवैधानिक सुधारों की यह एक और कड़ी है। केंद्र सरकार का स्पष्ट मत है कि संविधान दिवस के व्यापक आयोजन से नागरिकों—खासकर युवा पीढ़ी—में भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ और सम्मान बढ़ेगा। अधिकारियों का कहना है कि “जम्मू-कश्मीर अब पूरी तरह भारतीय संविधान के अनुरूप चलता प्रदेश है, इसलिए उसके हर संस्थान में संविधान की भावना का प्रसार होना स्वाभाविक और आवश्यक है।”

सभी विभागों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सभी विभागों को एक सर्कुलर जारी करते हुए निर्देश दिया है कि:

26 नवंबर की सुबह सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और सरकारी कार्यालयों में समूह में प्रस्तावना का वाचन कराया जाए।

कार्यक्रम में आधिकारिक उपस्थिति दर्ज की जाए।

जहाँ संभव हो वहाँ संविधान पर आधारित व्याख्यान, पोस्टर प्रदर्शनी, क्विज, निबंध प्रतियोगिता और चर्चाएँ भी आयोजित की जाएँ।

कार्यक्रमों की रिपोर्ट बाद में जिला व मंडल प्रशासन को भेजी जाए।

कई जिलों—जैसे श्रीनगर, जम्मू, पुलवामा, बारामुला और उधमपुर—ने पहले ही अपनी-अपनी रूपरेखा तैयार कर ली है। शिक्षा विभाग ने स्कूलों को कहा है कि वे संविधान दिवस को “गंभीर और प्रेरणादायी” ढंग से मनाएँ, ताकि बच्चों में नागरिक चेतना मजबूत हो।

क्यों महत्वपूर्ण है प्रस्तावना का वाचन?

संविधान की प्रस्तावना केवल एक औपचारिक पाठ नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र का नैतिक और वैचारिक आधार है—
‘We, the People of India…’ से शुरू होने वाला यह घोषणापत्र भारत को सार्वभौमिक, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है।

 मुख्य उद्देश्य है:

नागरिकों को यह याद दिलाना कि संविधान ही सर्वोच्च है,

हर भारतीय समान अधिकारों और कर्तव्यों वाला नागरिक है,

और लोकतंत्र जिम्मेदार भागीदारी से चलता है, केवल अधिकारों से नहीं।

विशेषज्ञों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में संवैधानिक जागरूकता सामाजिक स्थिरता, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक सौहार्द को मजबूत करती है।

जम्मू-कश्मीर की नई पहचान और संविधान दिवस का महत्व

2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में कई संवैधानिक सुधार हुए—
नई पंचायत प्रणाली, केंद्र द्वारा संचालित नीतियाँ, सामाजिक न्याय पर आधारित योजनाएँ, और कानूनों का राष्ट्रीय एकरूपता की ओर बढ़ना। इन बदलावों के बीच संविधान दिवस का व्यापक आयोजन एक “नई पहचान” को सुदृढ़ करता है—एक ऐसा जम्मू-कश्मीर जो भारत के संवैधानिक ढाँचे के साथ पूर्ण रूप से एकीकृत है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह कदम संकेत देता है कि अब प्रदेश में संवैधानिक मूल्यों, विधि के शासन, और लोकतांत्रिक भागीदारी को एक केंद्रीय स्तंभ के रूप में स्थापित किया जा रहा है।

स्कूलों और कॉलेजों में उम्मीद से अधिक उत्साह

कई शैक्षणिक संस्थानों में 26 नवंबर को विशेष कार्यक्रमों की तैयारी शुरू हो चुकी है।
श्रीनगर के एक सरकारी कॉलेज के प्राचार्य ने बताया कि कॉलेज में—

संविधान निर्माण की प्रक्रिया पर सेमिनार,

डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन और योगदान पर व्याख्यान,

और छात्रों द्वारा “हमारा संविधान, हमारी पहचान” विषय पर गतिविधियाँ आयोजित होंगी।

स्कूलों में बच्चों को प्रस्तावना का अर्थ समझाने के लिए चार्ट, दृश्य सामग्री और लघु नाटकों का उपयोग किया जाएगा।

संविधान दिवस अब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक

भारत में संविधान दिवस 2015 से मनाया जा रहा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. आंबेडकर के सम्मान में इस दिन को स्मृति-उत्सव के रूप में घोषित किया। पर जम्मू-कश्मीर के लिए यह आयोजन केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी है।

कारण साफ है—किसी भी प्रदेश की लोकतांत्रिक मजबूती सीधे उसके नागरिकों की संवैधानिक समझ और भागीदारी से तय होती है।

सरकार का संदेश: “संविधान ही हमारा पथप्रदर्शक”

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्पष्ट कहा है कि यह पहल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक-राष्ट्रीय महत्व की है।
सरकारी प्रवक्ता के शब्दों में—
“हम चाहते हैं कि संविधान केवल कानून की किताब न रहे, बल्कि हर नागरिक के जीवन का हिस्सा बने।”

उनके अनुसार, प्रस्तावना का सामूहिक वाचन नागरिकों को याद दिलाता है कि वे एक साझा राष्ट्रीय संकल्प के भागीदार हैं—समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के।

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