लाल क़िले की पार्किंग में तीन घंटे बैठा आतंकवादी
आधुनिक ‘लास्ट सेफ पॉइंट’ रणनीति का सबसे खतरनाक संकेत
पूनम शर्मा
दिल्ली जैसे हाई-सिक्योरिटी ज़ोन में, वह भी लाल क़िले की पार्किंग में, एक आतंकी का तीन घंटे तक बैठे रहना—यह केवल सुरक्षा एजेंसियों के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए एक चौंकाने वाला संकेत है। शुरुआती इनपुट्स और एजेंसी ब्रीफिंग्स के अनुसार यह पूरी तरह “ट्रांसलोकेटेड टेरर” की रणनीति थी—यानी हमला शहर के भीतर नहीं, बल्कि शहर के सबसे आख़िरी सुरक्षित बिंदु पर हथियार को असेंबल कर शुरू करना। यह वही पैटर्न है जिसे जैश-ए-मोहम्मद और उससे जुड़े मॉड्यूल लंबे समय से अपनाते रहे हैं।
तीन घंटे की पार्किंग: आख़िर कर क्या रहा था वह?
सूत्रों के अनुसार, संदिग्ध के पास:
प्री-असेंबल्ड कॉम्पोनेंट्स,
वायरिंग सिस्टम,
बेसिक बम मॉड्यूल,
और ‘लास्ट-मिनट फ्यूज़िंग’ की सामग्री पहले से मौजूद थी।
वह पार्किंग में बैठकर इन सभी हिस्सों की फ़ाइनल असेम्बली कर रहा था। इतने भीड़भाड़ वाले स्थान पर तीन घंटे बैठना अपने आप में असामान्य है। और सबसे चिंताजनक यह कि ना पब्लिक, ना किसी सुरक्षा कर्मी ने उस पर संदेह जताया—जो हमारे सामाजिक सतर्कता स्तर पर गंभीर सवाल उठाता है।
क्यों चुनते हैं आतंकी ‘लास्ट सेफ पॉइंट’?
जैश और उससे जुड़े मॉड्यूल का स्पष्ट पैटर्न है:
बम के सभी प्रमुख हिस्से किसी सुरक्षित स्थान पर तैयार करना,
शहर में घुसने के बाद उसे केवल आख़िरी सुरक्षित जगह पर जोड़ना,
और फिर:
या तो खुद उसे लेकर लक्ष्य तक पहुँच जाना
या वहीं छोड़ देना और हैंडलर द्वारा रिमोट ट्रिगर कराना।
दिल्ली की इस घटना में वही पैटर्न बार-बार दिखाई देता है।
मीडिया नैरेटिव, वायरल वीडियो और असल समस्या घटना के 24 घंटे बाद एक वीडियो मीडिया में आया और वायरल हो गया। यहाँ बड़ा सवाल है:
यह वीडियो आया कहाँ से? सुरक्षा कैमरों की फुटेज केवल सरकारी एजेंसियों के पास होती है। फिर यह क्लिप कैसे सार्वजनिक हुई?
वायरल वीडियो हमेशा दो नुकसान करते हैं:
जनता में भ्रम फैलाते हैं,
और आतंकियों को उनके ऑपरेशन की ‘पोस्ट-मॉर्टम स्टडी’ करने में मदद करते हैं।
इस केस में भी वही हुआ—मेम्स बने, राजनीतिक कथाएँ गढ़ी गईं, और मूल सुरक्षा खतरा पब्लिक डिस्कोर्स में दब गया।
क्या यह ‘असफल हमलावर’ था? बिल्कुल नहीं।
कुछ शुरुआती रिपोर्टों में इसे “गलती से फट गया”, “नवसिखिया था”, “भागने का समय नहीं मिला” जैसी कहानियों में ढालने की कोशिश की गई।
लेकिन अब एजेंसियों के पास स्पष्ट है:
यह एक 100% सुसाइड मिशन था।
उसकी विस्फोटक तैयारी, फ्यूज़िंग, और डिटेलिंग की तकनीक किसी ट्रेनिंगशुदा आतंकी से कम नहीं थी।
इतनी ट्रेनिंग कहाँ से मिली?
यह समझना बचकाना होगा कि कोई आतंकी यूट्यूब देखकर “बम बनाना” सीख सकता है। जो इस मॉड्यूल में मिला है, वह है:
सही मिश्रण अनुपात (mixing ratios),
सही स्टेबलाइज़ेशन केमिकल्स,
और सीक्वेंस्ड वायरिंग—
जो केवल प्रोफेशनल ट्रेनिंग से ही संभव है।
एजेंसियों को संदेह है कि यह मॉड्यूल पाकिस्तान में मौजूद जैश के टेक्निकल विंग से ट्रेनिंग लेकर आया था।
68 मोबाइल फ़ोन – असली खेल कहाँ छिपा है
घटना के बाद इंटेलिजेंस ने एक चौंकाने वाली चीज़ पकड़ी: घटना क्षेत्र से 68 संदिग्ध फ़ोन एक ही समय में सक्रिय थे। यानी यह हमला ‘वन-मैन ऑपरेशन’ नहीं था, बल्कि:
ग्राउंड असेंबलर
तकनीकी मॉनिटर
और ऑफ-साइट हैंडलर
—तीनों की टीमवर्क का नतीजा था।
कौन-कौन अभी तक पकड़ा नहीं गया?
इनपुट्स के अनुसार कम से कम:
एक स्थानीय गाइड,
एक तकनीकी हैंडलर,
और एक मॉनिटर
अभी भी रडार पर हैं।
कवर्स्टोरी: मेडिकल प्रोफेशनल का नक़ाब
सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि संदिग्ध ने एक पूरे प्लान के साथ ‘मेडिकल प्रोफेशनल’ का फर्जी प्रोफाइल बनाया था।
हालाँकि उसका असली काम सिर्फ इतना था:
अपने आप को भी सुरक्षित रखना
और विस्फोटक को भी सुरक्षित ले जाना।
ऐसी प्रोफाइलिंग के पीछे उद्देश्य साफ है—
संदेह से बचना और चेकपोस्ट से आसानी से निकल जाना।
क्यों डरा हुआ था मॉड्यूल?
इंटरसेप्शन के डर ने इनके ऑपरेशन को अस्थिर कर दिया था।
एजेंसियों ने पिछले महीनों में कई मॉड्यूल पकड़े हैं, जिससे इनके नेटवर्क को पता है कि:
मोबाइल ट्रैकिंग,
डिजिटल सिग्नल इंटरसेप्शन,
और फाइनेंशियल मुवमेंट
अभी बहुत सख़्ती से मॉनिटर किए जा रहे हैं।
इसलिए इनका ऑपरेशन पूरी तरह क्लॉक-टिकिंग मोड में था—तेज़, गुप्त और बैकअप-रहित।
निष्कर्ष: यह केवल हमला नहीं था—यह एक ट्रेलर था
यह घटना बताती है कि:
मॉड्यूल टेक्निकली अपग्रेड हो चुके हैं,
वे शहर के भीतर ही “लास्ट-मिनट असेंबली” कर सकते हैं,
और समाज की सामान्यता को अपने लिए ढाल बना रहे हैं।
सबसे खतरनाक बात यह है कि
एजेंसियों के अनुसार यह हमला किसी बेहद बड़े लक्ष्य की तैयारी थी,
लेकिन ऑपरेशन का एक हिस्सा समय से पहले इंटरसेप्ट हो गया।
भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ इस मॉड्यूल को “केमिकल-टेक्निकल सुसाइड नेटवर्क” मान रही हैं—और जाँच का असली फ़ोकस है वह हैंडलर जो अभी भी पकड़ से बाहर है।