दिल्ली-एनसीआर की हवा खतरनाक, स्वास्थ्य आपातकाल जैसे हालात
AIIMS विशेषज्ञ बोले—AQI 300–400 की रेंज गंभीर खतरा, सांस, हृदय और फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ीं
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दिल्ली-एनसीआर का AQI लगातार 374 के आसपास, डॉक्टरो ने कहा, यह स्वास्थ्य आपातकाल जैसे हालात हैं।
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पुराने अस्थमा/सांस के मरीजों में बीमारी तेजी से बढ़ी, खांसी 3–4 दिनों से बढ़कर 3–4 हफ्तों तक जारी।
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शोधों के अनुसार देश में 9.3% लोग COPD से पीड़ित भारत में 69.8% COPD मौतें प्रदूषण के कारण।
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बच्चों की फेफड़ों की ग्रोथ 8–15 दिनों के एक्सपोजर से प्रभावित, लंबे समय में क्षमता 20% तक घट सकती है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 19 नवंबर: दिल्ली-एनसीआर की हवा एक बार फिर जानलेवा स्तर पर पहुंच गई है। राजधानी में मंगलवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 374 दर्ज किया गया, जो ‘बेहद खराब’ श्रेणी में आता है। AIIMS के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञों ने वर्तमान स्थिति को सीधे-सीधे स्वास्थ्य आपातकाल (Health Emergency) बताया है। उनका कहना है कि जिस स्तर पर प्रदूषण कई दिनों से बना हुआ है, उससे सामान्य और संवेदनशील दोनों प्रकार के लोगों पर गंभीर असर पड़ रहा है।
AIIMS के पल्मोनरी विभागाध्यक्ष डॉ. अनंत मोहन के अनुसार, सांस और अस्थमा के ऐसे कई मरीज जो पहले स्थिर थे, अब बढ़ी हुई तकलीफ के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं। पहले जो खांसी कुछ दिनों में ठीक हो जाती थी, अब हफ्तों तक चल रही है। उन्होंने साफ कहा कि जब तक प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल नहीं माना जाएगा, तब तक स्थिति काबू में नहीं आएगी।
डॉ. सौरभ मित्तल, सहायक प्रोफेसर, AIIMS, ने सलाह दी है कि ऐसे मौसम में N-95 मास्क ही सबसे असरदार सुरक्षा है। उनके अनुसार, व्यक्तिगत स्तर पर संरक्षण के लिए मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य हो चुका है। वहीं AIIMS के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. गोपी चंद खिलनानी ने हाल में सुझाव दिया था कि दिसंबर के अंत में लोग कुछ समय के लिए दिल्ली छोड़ने पर विचार करें, ताकि श्वसन संबंधी समस्याओं से राहत मिल सके।
प्रदूषण से कितने दिनों में क्या असर पड़ता है?
1–3 दिन
गले, आंख और नाक में जलन, सिरदर्द, थकान और हल्की सांस लेने में परेशानी।
4–7 दिन
तीव्र खांसी, अस्थमा रोगियों में अटैक की संभावना, रक्तचाप बढ़ सकता है।
8–15 दिन
ब्रोंकाइटिस जैसे लक्षण, बच्चों के फेफड़ों की ग्रोथ पर असर शुरू।
30 दिन या उससे अधिक
अस्थमा स्थायी रूप से बिगड़ सकता है, बच्चों की फेफड़ों की क्षमता 10–20% तक कम होने का खतरा।
COPD का बढ़ता खतरा: नौ में से एक भारतीय प्रभावित
प्रदूषण, धूम्रपान और घरेलू बायोमास ईंधन के कारण COPD (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में लैंसेट और JAMA में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार:
- भारत में हर 100 में से 9.3 व्यक्ति COPD के मरीज हैं।
- विश्वभर में COPD मौतों का 35% कारण धूम्रपान है,
लेकिन भारत में 69.8% COPD मौतों की वजह वायु प्रदूषण है। - महिलाओं में बीमारी का प्रतिशत 13.1% है, जिसका कारण रसोई के धुएं का लंबे समय तक सामना करना माना गया है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर की मौजूदा स्थिति में बच्चे जब युवावस्था में पहुंचेंगे, तो उनमें COPD होने का बड़ा जोखिम रहेगा।
डॉ. विवेक नांगिया (मैक्स अस्पताल) ने चेतावनी दी कि यदि प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया तो बच्चे अस्थमा और COPD की ओर बढ़ सकते हैं, जिससे हृदय रोग का खतरा भी बढ़ जाता है।
भविष्य में राहत की उम्मीद
JAMA के शोध के मुताबिक अगले 25 वर्षों में भारत में COPD का बोझ 2% तक घट सकता है, जिसकी वजह है,
- घरों में बायोमास ईंधन का कम उपयोग,
- LPG/PNG की ओर बढ़ता रुझान,
- औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण के बेहतर उपकरण,
- वेंटिलेशन में सुधार।