“दान का पैसा, देशविरोधी काम ?

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पूनम शर्मा

अल-फलाह यूनिवर्सिटी विवाद के बाद बढ़ा अविश्वास

जब से अलफलाह यूनिवर्सिटी से पढ़ने वाले छात्रों का मुसलमान छात्रों का और आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होना और उससे संबंधित देश को भारत देश को नुकसान पहुँचाने की बहुत सारी योजनाओं का पता चला है। तबसे जितने भी मुसलमान संस्थान हैं उनके ऊपर एक संशय हो गया है । और जब जम्मू में वैष्णोदेवी के चढ़ावे से मेडिकल कॉलेज हैं उसका पता चला है कि वहाँ पर सिर्फ मुसलमान छात्र पढ़ते हैं तो पूरे हिन्दू समाज में एक संशय का एक भय का माहौल है । भारत में ऐसा तो नहीं है कि किसी को पढ़ने का अधिकार नहीं है या किसी को डॉक्टर या इंजीनियर होने का अधिकार नहीं । बात ये है कि भारत में ही रह कर भारत के ही मुसलमान भारत के विरुद्ध अपनी शिक्षा को इस्तेमाल करें इन सब बातों का क्या तात्पर्य निकलता है? तो ज़ाहिर है कि ये लोग देशविरोधी काम करते हैं, बात बहुत सोचने वाली है।

वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में मुस्लिम बहुलता ने बढ़ाई चिंता

जम्मू के मेडिकल कॉलेज में और पचास सीटों में से 42 सीटें सिर्फ मुसलमानों को और 7 हिंदुओं को और एक सीट सिख के लिए । ये तो एक बहुत ही सोचने वाली बातहै लाल किले वाली घटना में सभी मुसलमान डॉक्टर सम्मिलित थे और ये भी कहा जा रहा है कि 200 और डॉक्टरों के इसमें लिप्त होने की संभावना है। जम्मू के मेडिकल कॉलेज में और पचास सीटों में से 42 सीटें सिर्फ मुसलमानों को और 7 हिंदुओं को और एक सीट सिख के लिए । ये तो एक बहुत ही सोचने वाली बातहै लाल किले वाली घटना में सभी मुसलमान डॉक्टर सम्मिलित थे और ये भी कहा जा रहा है कि 200 और डॉक्टरों के इसमें लिप्त होने की संभावना है। ये बहुत सोचने वाली बात है। विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री बजरंग बागड़ा ने जम्मू—कश्मीर के उपराज्यपाल और श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष मनोज सिन्हा को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा है, ”श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित विभिन्न शैक्षणिक संस्थाए…माता वैष्णो देवी को अर्पित भक्तिमय चढ़ावों से वित्त—पोषित हैं। इसलिए यहां की हर गतिविधि में माता के प्रति श्रद्धा एवं हिंदू सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति होनी चाहिए।” साथ ही नर्सिंग महाविद्यालयों के शिक्षकों में से अधिकांश मुस्लिम अथवा ईसाई हैं। ये तथ्य न केवल धार्मिक आस्था के विपरीत हैं, बल्कि स्थानीय एवं हिंदू समाज की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाते हैं।

नर्सिंग कॉलेजों में मुस्लिम–ईसाई शिक्षकों की बहुलता

माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मेडिकल और नर्सिंग महाविद्यालयों में प्रवेश और नियुक्तियों का यह पैटर्न गंभीर चिंता पैदा करता है। अधिकांश सीटों और शिक्षकीय पदों पर मुस्लिम व ईसाई चयन न केवल स्थानीय हिंदू समाज की भावनाओं को आहत करता है, बल्कि दान से संचालित पावन संस्थान की धार्मिक आस्था और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है।
माता वैष्णो देवी जी के इस पावन संस्थान की प्रवेश व्यवस्था में धार्मिक संवेदनशीलता, सांस्कृतिक विरासत और भावी समाज की अपेक्षाओं का भी उचित समायोजन होना आवश्यक है। साथ ही इन समस्त संस्थानों में हिंदू शिक्षक एवं कर्मचारी ही नियुक्त होने चाहिए।”

दान से बने संस्थानों में आस्था और पारदर्शिता का सवाल

दीर्घकालीन समाधान के लिए, यह विचार किया जा सकता है कि SMVDIME जैसे धार्मिक-संस्था-चालित कॉलेजों को न्याय संगत नीति ढांचा मिले, जिससे धार्मिक योगदान देने वाले समुदायों की अपेक्षाएँ और सामाजिक न्याय दोनों को संतुलित किया जा सके।
यह मामला केवल एक कॉलेज की भर्ती तक सीमित नहीं है — यह एक प्रतीकात्मक संघर्ष है कि धार्मिक संस्थाएं आधुनिक शिक्षा में अपना नैतिक और वित्तीय दायित्व कैसे निभाती हैं। अगर सही तरीके से हो, तो यह विवाद एक सीख बन सकता है कि कैसे भरोसे और जिम्मेदारी के साथ धार्मिक दान का उपयोग भारत के सुरक्षित भविष्य के लिए होना चाहिए न कि आतंकवादी गतिविधियों के ।

हिन्दू संगठनों की माँगों को हल्के में न लिया जाए:

एक संवाद शुरू किया जाना चाहिए, यह देखने के लिए कि दानदाताओं की भावनाओं और संस्थान की मेरिट सिस्टम के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है। दीर्घकालीन समाधान के लिए, यह विचार किया जा सकता है कि SMVDIME जैसे धार्मिक-संस्था-चालित कॉलेजों को न्याय संगत नीति ढांचा मिले, जिससे धार्मिक योगदान देने वाले समुदायों की अपेक्षाएँ और सामाजिक न्याय दोनों को संतुलित किया जा सके।

साथ ही, छात्रों की चयन प्रक्रिया में लोक-हित के मानदंड (जैसे सामाजिक ज़रूरत, क्षेत्रीय स्वास्थ्य मुद्दे) को भी शामिल करके, सिर्फ धार्मिक पहचान पर निर्भर ना रह कर व्यापक सामाजिक लाभ सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

यह मामला केवल एक कॉलेज की भर्ती तक सीमित नहीं है — यह एक प्रतीकात्मक संघर्ष है कि धार्मिक संस्थाएं आधुनिक शिक्षा में अपना नैतिक और वित्तीय दायित्व कैसे निभाती हैं। अगर सही तरीके से हो, तो यह विवाद एक सीख बन सकता है कि कैसे भरोसे और जिम्मेदारी के साथ धार्मिक दान का सामाजिक उपयोग हो सकता है।

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