बिहार चुनाव 2025: NDA की ऐतिहासिक जीत के पीछे 5 बड़ी वजहें

डबल इंजन’ नैरेटिव से लेकर महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी तक—कैसे NDA ने बिहार में रिकॉर्ड बहुमत हासिल किया

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  • सटीक और विवाद-मुक्त सीट शेयरिंग ने NDA की रणनीतिक मजबूती सुनिश्चित की।
  • ‘जंगल राज’ की याद दिलाकर NDA ने कानून-व्यवस्था को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया।
  • महिलाओं और EBC वोटर्स के अभूतपूर्व समर्थन ने सत्ता का समीकरण बदल दिया।
  • नीतीश कुमार का तजुर्बा और JD(U) की वापसी ने गठबंधन को निर्णायक बढ़त दी।

समग्र समाचार सेवा
पटना, 14 नवंबर: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने ऐतिहासिक बढ़त दर्ज करते हुए 243 में से लगभग 208 सीटें जीतने की राह बना ली है। इस चुनाव ने राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा, जहां स्थिरता, विकास और सामाजिक समावेशन पर आधारित अभियान ने मतदाताओं के साथ गहरा जुड़ाव बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ‘डबल इंजन सरकार’ का संदेश इस बार अभूतपूर्व रूप से प्रभावी रहा।

2025 के चुनावों में रिकॉर्ड वोटिंग देखने को मिली, जिसमें महिलाओं और युवाओं ने NDA को बड़ी ताकत दी। महिलाओं की भारी भागीदारी ने कई सीटों पर परिणामों की दिशा बदल दी, जबकि युवा वोटर्स ने रोजगार, सुरक्षा और बेहतर शासन की उम्मीदों के साथ NDA पर भरोसा जताया। इसके साथ ही गठबंधन की रणनीतिक राजनीतिक तैयारी, मजबूत सामाजिक समीकरण और विपक्ष के ‘जंगल राज’ काल की याद दिलाने वाली भावनात्मक अपील ने भी माहौल NDA के पक्ष में मोड़ दिया।

1. फ्लॉलेस सीट शेयरिंग—NDA की जीत की रीढ़

2025 में NDA की जीत का सबसे बड़ा आधार उसकी बेहतरीन सीट बंटवारा रणनीति रही। चुनाव से काफी पहले सीट शेयरिंग को पूरी तरह शांतिपूर्ण वातावरण में अंतिम रूप दिया गया।

BJP और JD(U) ने बराबर-बराबर 101–101 सीटों पर चुनाव लड़कर गठबंधन की परिपक्वता का संकेत दिया।

छोटे सहयोगी जैसे LJP (राम विलास) को 29 और HAM(S) को 6 सीटें मिलीं, जबकि शुरुआती असहमति सहज रूप से दूर कर ली गई।

इस बार सीटों की संख्या के बजाय उनकी ‘क्वॉलिटी’ पर जोर दिया गया, यानी हर पार्टी को वही सीटें दी गईं जहां उसका जमीनी प्रभाव मज़बूत था। इससे वोट बंटवारा रुका और एकजुट अभियान चला। जitan Ram Manjhi जैसे नेताओं के खुले समर्थन और एकता के संदेश ने गठबंधन को और मजबूत किया।

2. ‘जंगल राज’ की याद भावनात्मक नैरेटिव जिसने वोटरों को जोड़ा

NDA ने अपने अभियान के दौरान पुराने ‘जंगल राज’ यानी लालू राबड़ी शासनकाल की कानून-व्यवस्था की खराब छवि को प्रभावी ढंग से सामने रखा।
डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के काफिले पर हुए हमले को इस नैरेटिव के केंद्र में रखा गया, जिसे RJD से जुड़े गुंडों की करतूत के रूप में प्रचारित किया गया।

हालांकि 2025 के चुनाव अब तक के सबसे शांतिपूर्ण माने जा रहे हैं और किसी भी बूथ पर दोबारा मतदान की जरूरत नहीं पड़ी, फिर भी अराजकता के डर का यह भावनात्मक मुद्दा मतदाताओं को स्थिरता की ओर ले गया। इसी तुलना में NDA ने अपने विकास कार्यों और शासन की स्थिरता को उजागर किया।

3. विस्तृत जातीय गठबंधन—‘ME फैक्टर’ का कमाल

बिहार की राजनीति में लंबे समय तक MY (मुस्लिम–यादव) समीकरण हावी रहा, लेकिन 2025 में NDA ने एक बिल्कुल नया सामाजिक समीकरण खड़ा किया—ME (महिला + EBC)।

JD(U) ने EBC और कुर्मी वोट को मजबूती से साधा, जो राज्य की लगभग 36% आबादी है।

BJP ने परंपरागत ऊपरी जातियों और युवा वोटर्स में अपनी पकड़ मजबूत रखी।

LJP(R), HAM(S) और RLM ने दलित–पिछड़ा आधार को जोड़कर गठबंधन का सामाजिक दायरा व्यापक किया।

इस व्यापक जातीय विस्तार ने RJD के पारंपरिक वोट बैंक को कमजोर किया और NDA को लगभग 49% वोट दिलाए, जबकि महागठबंधन 38% पर सिमट गया।

4. महिलाओं की रिकॉर्ड भागीदारी—NDA की गुप्त ताकत

इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत महिलाओं का अभूतपूर्व मतदान रहा। कई जिलों—जैसे सुपौल, किशनगंज, मधुबनी—में महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों से 10–20 अंक ज्यादा रहा।

चुनाव आयोग की 1.8 लाख जीविका दीदियों की तैनाती ने महिलाओं और नए वोटरों को बूथ तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

NDA सरकार की महिला-सशक्तिकरण स्कीमें—स्वयं सहायता समूह, सुरक्षा योजनाएँ, सामाजिक सुरक्षा—ने उन्हें NDA के प्रति आश्वस्त किया।

14 लाख नए युवा वोटर्स (जिनमें बड़ी संख्या महिलाएं थीं) का समर्थन NDA के लिए निर्णायक साबित हुआ।

5. नीतीश फैक्टर और JD(U) की दमदार वापसी

नीतीश कुमार अभी भी बिहार की राजनीति का सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं। उम्र को लेकर सवालों के बावजूद उनकी प्रशासनिक छवि और ‘सुशासन बाबू’ की प्रतिष्ठा कायम है।
“बिहार का मतलब नीतीश कुमार” और “टाइगर अभी जिंदा है” जैसे नारे ने उनकी लोकप्रियता को नए सिरे से मजबूत किया।

JD(U) की बराबरी वाली सीट साझेदारी ने गठबंधन के भीतर उसके महत्व को फिर से स्थापित किया। नीतीश का EBC–कुर्मी वोट और BJP का युवा–ऊपरी जाति वोट एक साथ आकर NDA के लिए अपराजेय समीकरण बन गया।

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