‘विमर्श 2025’: सांस्कृतिक मार्क्सवाद पर हुई बड़ी चर्चा
कमला नेहरू कॉलेज में YUVA के तीन दिवसीय राष्ट्रीय संवाद का समापन; वक्ताओं ने 'सांस्कृतिक मार्क्सवाद' को संवैधानिक ढांचे के लिए चुनौती बताया।
- यूथ यूनाइटेड फॉर विजन एंड एक्शन (YUVA) द्वारा आयोजित ‘विमर्श 2025’ का दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में समापन हुआ।
- मुख्य वक्ता प्रफुल्ल केतकर ने ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ को संविधान, राष्ट्र और लोकतंत्र विरोधी बताया।
- यूजीसी सचिव प्रो. मनीष आर. जोशी ने भारतीय सभ्यतागत मूल्यों को संविधान के मूल सिद्धांतों (स्वतंत्रता, समानता, बंधुता) से जोड़ा।
समग्र समाचार सेवा
पटना, 10 नवंबर: युवा-नेतृत्व वाले संगठन यूथ यूनाइटेड फॉर विजन एंड एक्शन (YUVA) द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संवाद “विमर्श 2025” का सफलतापूर्वक समापन हो गया है। इस विमर्श में देशभर के शिक्षाविदों, प्रबुद्ध चिंतकों और युवा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और राष्ट्र निर्माण एवं संवैधानिक चुनौतियों पर गहन चर्चा की।
समापन सत्र का केंद्रीय विषय “संवैधानिक द्वंद्व: सांस्कृतिक मार्क्सवाद के संदर्भ में चुनौतियाँ और समाधान” था, जो वर्तमान समय में भारतीय बौद्धिक जगत में चल रहे सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है। सत्र की शुरुआत में, डॉ. प्रतिभा त्रिपाठी जी ने पूरे तीन दिनों की चर्चाओं का सार प्रस्तुत किया और इस आयोजन को “युवा विचारों के संवाद और राष्ट्र निर्माण की भावना का प्रतीक” बताया।
🚩 ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ संविधान के लिए गंभीर चुनौती: प्रफुल्ल केतकर
ऑर्गनाइज़र पत्रिका के संपादक और मुख्य वक्ता श्री प्रफुल्ल केतकर ने अपने संबोधन में ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ की विचारधारा पर तीखी आलोचना की। उन्होंने इसे भारत के संवैधानिक ढांचे के लिए एक गंभीर चुनौती बताया।
केतकर ने स्पष्ट किया:
“सांस्कृतिक मार्क्सवाद की यह विचारधारा संविधान, राष्ट्र और लोकतंत्र — तीनों का विरोध करती है। इतिहास गवाह है कि जहाँ-जहाँ मार्क्सवाद फैला है, वहाँ लोकतंत्र का गला घोंटा गया है।”
उन्होंने भारतीय संविधान से जुड़ी दो बड़ी भ्रांतियों (मिथ्याओं) को खारिज किया। पहली भ्रांति यह कि संविधान केवल ब्रिटिश मॉडल की नकल है, और दूसरी यह कि इसे किसी एक समुदाय के हितों के लिए बनाया गया है। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि “भारत लोकतंत्र से अनजान नहीं था; हम संसद और उसकी प्रक्रियाओं को भलीभांति जानते थे।”
केतकर ने जोर देकर कहा कि डॉ. अंबेडकर ने स्वयं कम्युनिस्ट और समाजवादी दलों को संविधान के प्रमुख आलोचक कहा था। उनके अनुसार, ये विचारधाराएँ भारत-केंद्रित नहीं बल्कि चीन-केंद्रित हैं और इनका एकमात्र उद्देश्य देश को जाति, भाषा, समुदाय और क्षेत्र के आधार पर बाँटने का प्रयास करना है।
संविधान के मूल सिद्धांत, सनातन परंपरा से जुड़े: प्रो. जोशी
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. मनीष आर. जोशी (सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग – UGC) ने भारतीय संविधान और भारत के सभ्यतागत मूल्यों के बीच के गहरे संबंध पर प्रकाश डाला। उन्होंने “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूर्ण होने पर देशवासियों को बधाई दी और इसे भारत माता से भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक बताया।
प्रो. जोशी ने संविधान की प्रस्तावना के तीन मूल सिद्धांतों — स्वतंत्रता, समानता और बंधुता — को भारत की सनातन परंपराओं से गहराई से जोड़ा:
स्वतंत्रता और समानता: उन्होंने “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” (सत्य एक है, विद्वान उसे अनेक नामों से बुलाते हैं) को स्वतंत्रता और समानता का आधार बताया।
बंधुता: उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम्” (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) को बंधुता का सार कहा।
उन्होंने युवाओं से किसी भी प्रकार की हीन भावना को त्यागने और अपनी महान भारतीय धरोहर को पहचानने तथा अपनाने का आग्रह किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. (डॉ.) पवित्रा भारद्वाज (प्राचार्या, कमला नेहरू कॉलेज) ने इस आयोजन को “विचारों का उत्सव” बताया। उन्होंने कहा कि YUVA युवाओं को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला ‘परिवर्तनकारी एजेंट’ बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
🌐 YUVA की नई वेबसाइट का हुआ शुभारंभ
इस सत्र की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि YUVA की नई वेबसाइट का औपचारिक शुभारंभ रही। यह वेबसाइट संगठन के डिजिटल विस्तार और युवा-नेतृत्व वाले राष्ट्र निर्माण के मिशन को और गति प्रदान करेगी।
YUVA (Youth United for Vision and Action) एक ऐसा युवा-नेतृत्व वाला संगठन है जिसका उद्देश्य रचनात्मक संवाद और भारत की सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित राष्ट्र निर्माण को प्रोत्साहित करना है। कार्यक्रम का समापन डॉ. मीनू रानी के धन्यवाद ज्ञापन और सामूहिक रूप से राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” के गायन से हुआ।